गुलमोहर
विशेषांक कहानियों में
यू.के. से शैल अग्रवाल की
कहानी
यादों के गुलमोहर
डाल–डाल फूल
पतियों से सजा, गरमियों के इन दो तीन महीनों
में पूरा का पूरा यूरोप कुछ और ही निखर जाता है . .
.दुल्हन–सा संवर जाता है। यों तो यहां भी वही धरती,
आकाश, हवा, पानी सब वही हैं, बस रंग ही कुछ और
ज्यादा शोख और चटक हो जाते हैं . . .आदमियों के ही नहीं
. . .धरती, आकाश, फूल पती सभी के। घास कुछ और
ज्यादा हरी दिखने लगती है और आसमान व समंदर कुछ और ही
गहरे और नीले। फिर वैनिस तो एक रूमानी शहर
है।आकाशचुंबी इमारतों की गोदी में इठला–इठलाकर बहती
नदी और मैंडेलिन व बैंजो की सुरीली धुनों पर हंसों
से गर्दन उठाए बहते गंडोले और इन सब में मंत्रमुग्ध
रेशमा।
और
पुराने
अंकों से
डॉ शांति देवबाला की हृदयस्पर्शी कहानी
गुलमोहर
°
हास्य
व्यंग्य में
अनूप शुक्ला जानना चाहते हैं
है
किसी का नाम गुलमोहर
°
प्रकृति
में
अर्बुदा ओहरी का तथ्यों से भरपूर आलेख
लाल
फूलों वाला गुलमोहर
°
ललित
निबंध में
पूर्णिमा
वर्मन
के
साथ
साहित्य
की
गलियों
में
गुलमोहर दर गुलमोहर
°
नाटक
में
मथुरा कलौनी की संवेदनशील
प्रस्तुति
संदेश
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