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सुमि ग़ौर से अखबार के पन्ने पलट
रही है। इस सबडिविजन में सिर्फ़ वे ही हैं जो अखबार खरीदते हैं
वरना अखबार खरीदने में यहाँ लोग पैसे खर्च नहीं करते। जब कोई बड़ी सेल आती है तो अलस्सुबह
गैस स्टेशन पर जाकर कूपन उठा लाते हैं।
आखिर कूपन ही तो चाहिए न।
सेल के कूपन। नहीं तो फिर अखबार की जरूरत
क्या है? सुमि को भी लगता है लोग ठीक ही करते हैं। किसे वक्त
है अखबार पढ़ने का! रवीश
को वह बार–बार टोकती भी है, "सारा समय तो ऑफिस में बीत जाता
है, कभी तो पढ़ते नहीं। इंटरनेट पर खबरें देख लेते हो। टी .वी
.है ही तो
फिर
घर में कचरा जमा करने की क्या जरूरत है?"
"दो कूपन भी उपयोग में आए तो अखबार की कीमत अदा हो गई न।"
"मैं पैसों की बात नहीं कर रही।" सुमि सफाई देती है। अमेरिका
में इतने वर्ष बिताकर भी वह पैसों और रुपयों की ही बात करती
है। डॉलर बोलना नहीं सीख पाई।
कल थैंक्सगिविंग सेल है।
लोग सुबह चार बजे से दूकानों के बाहर खड़े हो जाएँगे। सबकी
लंबी–लंबी लिस्ट होगी। फिर अगले दिन अखबारों में उनकी तस्वीरें
होंगी। वक्तव्य होंगे। उसने इतने सस्ते में यह
खरीदा और उसने वह। बेस्ट बाई में सबसे ज़्यादा भीड़ थी या सर्किट
सिटी में। मौसम की सबसे ज़्यादा सेल कहाँ हुई और वह पिछले सालों
से तुलनात्मक रूप में ज़्यादा थी या कम, वगैरह–वगैरह।
यह साल की सबसे बड़ी सेल है।
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