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पिछले सप्ताह
सामयिकी
में
उषा राजे सक्सेना की कलम से
प्रवासी भारतीय दिवस
महोत्सव
का एक और दृष्टिकोण
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'मंच मचान' में
वाचिक परंपरा के महत्व पर
अगली कड़ी अशोक चक्रधर की कलम से
मोह में भंग और भंग में मोह
° धारावाहिक
में
नव वर्ष की विभिन्न परंपराओं
के विषय में दीपिका जोशी के आलेख
की दूसरी किस्त
देश देश में नववर्ष
°
फुलवारी
में
जंगल के पशु लेखमाला के
अंतर्गत
बब्बर
शेर से परिचय,
शिशुगीत शेर और शेर का एक सुंदर
चित्र
रंगने
के लिये
°
कहानियों
में
भारत से विनीता
अग्रवाल की कहानी
रेशमी
लिहाफ
कोठरी
के भीतर बैठी बूढ़ी अम्मा की देह में भी झुरझुरी सी दौड़ गई। पूरी
गली में किसी मनुष्य की आहट तक नहीं
पिन्टू भी
नज़र नहीं आ रहा जाने कहाँ
मर गया
वर्षा भी कोई मामूली नहीं पूरे झपाके के साथ
बरसती ही जाती है
अम्मा ने बड़बड़ाते हुए खिड़की से सिर निकाला
और तनिक ऊपर कर आसमान की ओर ताका तो ऐसा प्रतीत हुआ मानोे
मोटे काले बादल उस पर भरभरा कर गिर पड़ेंगे। वह डरी और झटपट
गर्दन को वापिस खींच खिड़की सेे कुछ दूर सरक कर बैठ गई। प्रकृति का
विकराल रूप देख वह घबरा गई और
अपनी जर्जर देह को झटपट सिर से लेकर पाँव तक कम्बल
के भीतर दुबका लिया।
!°!
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इस
सप्ताह
कहानियों
में
14 फरवरी प्रेमदिवस के
अवसर पर
भारत से डा मीनाक्षी स्वामी
की कहानी
अमृतघट
दिन में अमृता सूरज का ताप लेती। ताप
बढ़ने लगता, तो कोई बड़ी लहर आकर अमृता को अपने आंचल से
पलभर के लिए ढकती, भिगोती और लौट जाती। रात होती तो अमृता चांद को देखा करती,
चांद से बातें करती और चांदनी पीया करती। वह इतनी छककर चांदनी
पीती कि उसके हृदय का खाली घट अमृत से भरने लगता, भरभरकर
छलकने लगता, तब वह समंदर में देखती, तो लगता चांदनी का अमृत
समंदर की लहरों पर बिछ गया है। जब पंद्रह दिन चांद नहीं होता,
तब अमृता अपने छलकते अमृत घट में से चांदनी पीती और ऐसे ही
जीती।
°
साहित्यिक निबंध
में
डा रति सक्सेना की कलम से
वैदिक
देवताओं की कहानियों के क्रम में
इंद्र
°
रसोईघर में
सफल व्यंजन के अंतर्गत फलों
की
ताज़गी और स्वास्थ्य से भरपूर
वसंत
माधुरी
°
सामयिकी
में
लोकप्रिय गायिका व अभिनेत्री
सुरैया के निधन पर भावभीनी श्रद्धांजलि
स्वर सम्राज्ञी सुरैया °
परिक्रमा
में
दिल्ली दरबार के अंतर्गत
भारतीय उपमहाद्वीप की एक झलक
बृजेश शुक्ला की कलम से
माघमेले
में डूबा प्रयाग °
1
!सप्ताह का विचार!
खातिरदारी
जैसी चीज़ में मिठास जरूर है, पर उसका ढकोसला करने
में
न तो मिठास है और न स्वाद।
शरतचन्द्र |
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अनुभूति
में
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जनवरी
माह की
समस्यापूर्ति के
परिणाम
काव्यचर्चा
नयी कविताएं व
नयी समस्यापूर्ति
हल्दीघाटी के साथ
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पिछले अंकों से°
कहानियों
में
विसर्जन
मीरा कांत
यह
जादू नहीं टूटना चाहियेसूरज
प्रकाश
सुबह
होती है शाम होती हैरजनी गुप्त
चेहरे के जंगल मेंतरूण भटनागर
वे
दोनोंसुषम बेदी
हिरासत
के बादसुरेश कुमार गोयल
°
सामयिकी
में
नयी दिल्ली में प्रवासी दिवस के अवसर पर हिन्दी आयोजनों की एक
रिपोर्ट
गोष्ठियां और
सम्मेलन
गणतंत्र दिवस के अवसर पर
दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम से
कवि सम्मेलन की
रपट
नार्वे निवेदन के अंतर्गत
ओस्लो समाचार
°
संस्मरण
में निराला जयंती के अवसर पर
महादेवी वर्मा की कलम से संस्मरण
जो रेखाएं कह न
सकेंगी
° विज्ञान
वार्ता में साल भर की विज्ञान
गतिविधियों पर
डा गुरूदयाल प्रदीप की
कलम से
वैज्ञानिक
अनुसंधानः
बीते वर्ष का लेखाजोखा
°
धारावाहिक
में
इस पार से उस पार से का अगला भाग
शील साब से
बदलते रिश्ते
° हास्य
व्यंग्य में
रवि रतलामी के आज़माए हुए
नुस्खे
नया साल नये संकल्प
° समीक्षा
में
प्रदीप मिश्रा का आलेख
2003 में कविता की दस्तक
° आज
सिरहाने में
चित्रा मुद्गल का बहुचर्चित
उपन्यास
आवां
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