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कहानियाँ

समकालीन हिन्दी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
कैनेडा से
सुरेश कुमार गोयल की कहानी—"हिरासत के बाद"।


रात को फोन की घंटी ने सोते हुए जगा दिया। पुलिस स्टेशन से फोन था। रात के तीन बजे क्या परेशानी आ पड़ी, जो मुझे याद किया। उनकी हिरासत में एक भारतीय लड़की थी। वह हिंदी के अलावा अन्य कोई भाषा नहीं जानती थी और पुलिसवाले हिंदी नहीं जानते थे। दो घंटे पहले एक पुलिस कार उसे पकड़कर पुलिस स्टेशन ले आई थी। वह लगातार रोये जा रही थी। पुलिस सार्जेंट ने मुझसे दरख्वास्त की कि आधी रात का ख्याल न करते हुए मैं पुलिस स्टेशन आ जाऊँ। उस लड़की से बात करके उसे चुप कराने और उसका बयान लेने में पुलिस की मदद करूँ।

मुझे आधी रात गये उठकर पुलिस स्टेशन जाना काफी अखर रहा था। श्रीमतीजी से कहा, "चलो, साथ चलो, हो सकता है वह लड़की तुमको देखकर जल्दी चुप हो जाए", पर श्रीमतीजी ने यह कहकर रजाई अपने ऊपर और तान ली कि "पुलिसवाले चैक तो आपके नाम ही भेजेंगे। अगर, मुझे भी पैसे मिलें, तो चलूँ। मुफ्त में समाज–सेवा कौन करे?"

पिछले कुछ वर्षों से मैं कार्डिफ की पुलिस की एक दुभाषिये की तरह मदद करता आ रहा हूँ। बहुत से भारतीय और पाकिस्तानियों को अंगरेजी नहीं आती और जब पुलिस को एक निष्पक्ष दुभाषिये की आवश्यकता होती है, तब वे मुझे बुला लेते हैं।

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