दक्षिण
अमेरिका व कोलंबिया, में नए वर्ष का स्वागत अनोखे ढंग से किया
जाता है। अनो न्यूइवो याने बीता साल, का पुतला घर के सभी सदस्यों
के कपड़े मिलाकर बनाया जाता है। इसे अख़बार और काग़जों से भरा
जाता है रंग बिरंगी कागज़ और तरह-तरह के पटाखों से सजाया जाता
है। एक कागज़ पर अपने नापसंद काम या दुर्भाग्य, बुराइयों के बारे
में लिख कर इस पर चिपकाया जाता है ताकि इस पुतले के साथ उनका भी
नाश हो जाए। ठीक रात के बारह बजे अनो न्यूइवो को जलाया जाता है।
और वह राख में तब्दील होने लगता है तो लोग खुशी मनाते हैं यह सोच
कर कि सभी बुराइयाँ, दुर्भाग्य, पुरानी गल़तियों का नाश हुआ है।
घर में इसे जलाना है तो यह बहुत ही छोटे आकार का बनाया जाता है
और घर के सदस्यों के कपड़ों की जगह सिर्फ़ काग़ज़ ही इस्तेमाल
किया जाता है।
थाइलैंड
में नए साल के त्यौहार को "सोन्गक्रान' कहते हैं। उनका नए साल का यह त्योहार
१३ से १५ अप्रैल, ३ दिन चलता है। रीति के अनुसार सब लोग एक दूसरे पर पानी का छिड़काव करते
हैं। बाल्टियाँ भर-भर कर किसी पर भी निशाना साधा जाता है। शायद अप्रैल महीने की
गरमी में पानी का यह छिड़काव गरमी से भी राहत दिलाता है। पूरे देश में इस त्यौहार
की धूम होती है। बैंकाक जैसे बड़े शहरों में लोग ३-४ दिन के लिए घूमने जाना पसंद
करते हैं। इस दिन बड़ों के पाँव छू कर ग़लतियों के लिए माफ़ी माँगी जाती है और उनके
हाथों पर पानी डाला जाता है। ऐसा समझा जाता है कि इससे आने वाले साल में अच्छी
वर्षा होती है। गौतम बुद्ध की मूर्तियों का स्नान करवाया जाता है और प्रार्थना के
साथ-साथ चावल, फल, मिठाइयाँ आदि का दान किया जाता है। दूसरे रिवाज के अनुसार भाग्य
सँवारने के उद्देश्य से पिंजरे में बंद पंछी या घर में रखे मछलीपॉट से मछलियों की
रिहाई की जाती है। 'साबा' नामक खेल भी इन दिनों खेला जाता है।
नदी किनारे लोग
मौज मस्ती करने आते हैं। छोटे बच्चे रेत में किले बनाकर उनमें झंडा लगाते हैं।
ऑस्ट्रेलिया
में हर नागरिक की इच्छा सिडनी में सिडनी हार्बर ब्रिज पर होने वाला जश्न देखने की
ही होती है। सभी के लिए यह संभव नहीं हो पाता लेकिन आसपास के लोग ज़रूर यहाँ आते
हैं। काफ़ी लोग ऑपेरा हाउस की तरफ़ से देखते
हैं। सिडनी के उत्तरी भाग से भी मज़े में देखा जा सकता है। मुख्य कार्यक्रम
आतिशबाज़ियों का ही होता है जो सूरज ढलने के बाद शुरू हो जाती है लेकिन मध्यरात्रि
तक पहुँचते-पहुँचते इसकी रंगत और बढ़ जाती है। पानी पर भी आतिशबाज़ियाँ होती है वो
देखते ही बनती है। शाम से ही यहाँ लोग जमा इकठ्ठा होना शुरू हो जाते हैं। कोई लोग
पूरी तैयारी के साथ आकर सारी रात वहीं जमे रहते हैं। बड़े-बड़े जहाज़ या फिर छोटी
नावों में भी लोग देखने आते हैं। जिन्हें कहीं भी जगह नहीं मिल पाती वह आस पास
स्थित रेस्तरां की ऊपरी मंज़िल में बैठकर नज़ारा देखने की कोशिश में लगे रहते हैं।
उपहार और मिठाइयाँ देकर सब एक दूसरे को नए साल की मुबारकबाद देते हैं। जो सिडनी
नहीं जा सकते वे लोग शाम को पार्टियों और पबों में मौज मस्ती करते हैं।
रूस में नव वर्ष मनाने की परंपरा तीन सौ साल पहले प्रारंभ हुई जब वहाँ पीटर प्रथम
ने नए साल का पौधा लगाया था और ऐलान किया कि हर साल पहली जनवरी को नए साल का
त्यौहार मनाया जाएगा। आजकल वहाँ नए साल की खूब धूम होती है। रूसी सेंटा क्लाज़,
जिसे फादर फ्रॉस्ट कहते हैं, सड़कों पर अपनी सजधज और परेड से बच्चों को लुभाते हैं।
लोग इस दिन का साल भर बड़ी बेसब्री से इंतज़ार करते हैं। छोटे बच्चों को तोहफ़े का
इंतज़ार रहता है तो बड़े यह सोचते हैं कि आने वाला साल उनके लिए खुशियाँ और समृद्धि
भरा होगा।
१३-१४ जनवरी की रात में नया साल दुबारा मनाया जाता
है। इसे "पुराना नया साल" कहा जाता है। बाकी दुनिया में
ज्यूलियन कैलेंडर इस्तेमाल किया जाता है जबकि रूस में जॉर्जियन। दोनों कैलेंडरों
में १३ दिन का फर्क होता है। नए साल
का
स्वागत कुछ लोग अपने घरों में, कुछ रेस्तरां में तो कुछ देवदार वृक्ष के समीप करते
हैं। एक दूसरे को नए साल की बधाई देना यहाँ बहुत ही शुभ माना जाता है। घरों को साफ़
सुथरा कर सजाया जाता है। देवदार वृक्ष घर में लाकर उसे गुब्बारे, रंगीन फ़ीते और कई
सजावटी चीज़ों से सजाया जाता है। रंगबिरंगे बल्बों से इसे रोशन किया जाता है। इस
पौधे के नीचे बुजुर्गों के दिए हुए खिलौने रखे जाते हैं। शाम को बच्चे इस पौधे के
ईद-गिर्द घूमकर गाना गाते हैं, नाचते हैं। जवान बच्चे एक दूसरे के घर जा कर नए साल
की खुशी बाँटते हैं। उनका फल, मिठाई, काजू, बदाम से मुँह मीठा किया जाता है और छोटे
सिक्के दिए जाते हैं। बीते साल के बीतने पर और नए साल के आगमन पर बड़ी-बड़ी दावतें
की जाती हैं। शैंपेन जैसे मद्य को बहुत महत्व दिया जाता है। मिल बैठकर शैंपेन पी
जाती है। आतिशबाजियाँ भी खूब की जाती है। यदि इन दिनों बर्फ़ रही तो बिछी बर्फ़ पर
स्केटिंग या हॉकी जैसे खेल खेले जाते हैं।
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