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कहानियाँ  

समकालीन हिन्दी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से
सूरज प्रकाश की कहानी— 'यह जादू नहीं टूटना चाहिए'


अभी केबिन में आकर बैठा ही हूँ कि मेंरे निजी फोन की घंटी बजी। इस नम्बर पर कौन हो सकता है। मैंने हैरान होते हुए सोचा, क्योंकि अव्वल तो यह नम्बर डायरेक्टरी में ही नहीं है, दूसरे बहुत कम लोगों को यह नम्बर मालूम है। चोगा उठाया।
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"हैलो, इज इट डबल टू डबल सिक्स जीरो फाइव सिक्स?"
लगा, कानों में किसी ने मिश्री–सी घोल दी हो। बेहद मीठी आवाज, "आयम सॉरी मैडम, रांग नम्बर।" मिश्री की सप्लाई बंद हो गई।
कुछ ही क्षणों में फिर वही फोन! वही मिठास, वही चाशनी घुली कानों में। एक बार फिर मैंने खनकाया अपनी आवाज को, और सॉरी कहकर निराश किया उसे!
तीसरी बार! चौथी बार!! पाँचवी बार!!!
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अब मुझे भी खीझ होने लगी है, लेकिन उस आवाज का ऐसा जादू है कि बार–बार टूटने के बाद और सॉरी शब्द सुनने के बावजूद सुनना भला लग रहा है। छठी बार उस आवाज़ में मुझसे ज्यादा खीझ और रूआँसापन झलकने लगा है। लगा, फोन पर अभी रोने की आवाज़ ही आएगी उस कोकिलकंठी की।
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उबारा मैंने, "एक काम कीजिए, आपको जो भी मैसेज इस नम्बर पर देना है, मुझे दे दीजिए। मैं पास ऑन कर दूंगा या फिर आप अपना नम्बर मुझे दे दीजिए। मैं पार्टी को कह देता हूँ, आपको फोन कर देने के लिए।"

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