कभी
घने कोहरे और कभी तेज दमकती धूप के बीच 9 जनवरी से 11
जनवरी तक प्रवासी भारतीयों ने राजधानी में भावनाओं की
उष्मा और शीतलता, दोनों को महसूस किया।
बड़े बड़े सभागारों और दिव्य
स्थानों पर, बड़े स्तर के समारोह आयोजित हुए। श्रृंगारपर एक पूरा
फैशनप्रधान कार्यक्रम फिल्मकार मुजफ्फर अली ने प्रस्तुत किया।
प्रवासी भारतीयों ने अपनी सांस्कृतिक झलकियां दिखाई लेकिन
सभी को इस बात का अफसोस था कि उन्हें हिन्दी सुनने को नहीं
मिली। सभी कार्यक्रमों की माध्यम भाषा अंग्रेजी थी। प्रवासी
भारतीय जब भारत आते हैं तो उनके मन में कामना होती है कि
उनके कानों को उनकी प्रिय भारतीय भाषाएं सुनने को मिलेंगी,
लेकिन ऐसा हो नहीं सका। थोड़ी बहुत हिन्दी जो सुनाई पड़ी वह
भी त्रिनिदाद से आये हुए चटनी कलाकारों के भोजपुरी गानों में
या हमारे देश की फिल्मी प्रस्तुतियों में।
प्रवासी कवि
सम्मेलन
साहित्य, संस्कृति और चिंतन की भाषा के रूप में जिस हिन्दी को
हम जानते हैं, उसे प्रवासी भारतीय दिवस में विशेष स्थान
नहीं मिला। इसकी भरपाई की 'अक्षरम्' नाम की संस्था ने, एक
प्रवासी कवि सम्मेलन आयोजित करके। तीन दिवसीय प्रवासी
समारोह जब 11 तारीख की दोपहर में समाप्त हो गया तो सांध्य
बेला में हिन्दी भवन में कवि सम्मेलन संपन्न हुआ जिसमें
उपराष्ट्रपति श्री भैरवसिंह शेखावत को आना था लेकिन अस्वस्थ होने
के कारण वे समारोह में भाग नहीं ले सके।
कवि सम्मेलन का उद्घाटन स्वामी
सत्यमित्रानंद गिरि जी ने किया जो कि भारत माता मंदिर, हरिद्वार
के संस्थापक हैं, उनका भाषण काव्यात्मक था जो स्वयं कवि हैं।
कवि सम्मेलन की अध्यक्षता श्री बालस्वरूप राही ने की जो सुप्रसिद्ध
कवि और गज़लकार हैं। डॉ रामदरश मिश्र, डॉ शैलेन्द्रनाथ
श्रीवास्तव, नन्दकिशोर गर्ग, जगदीश मित्तल व ब्रजकिशोर शर्मा
विशेष अतिथि के रूप में समारोह की शोभा बढ़ा रहे थे। इस कवि
सम्मेलन में केंब्रिज विश्वविद्यालय के प्रो डॉ सत्येन्द्र
श्रीवास्तव को साहित्य सम्मान से नवाजा गया और हिन्दी सेवा
सम्मान दिया गया डॉ पद्मेश गुप्त को।
कार्यक्रम दो हिस्सों में बंटा हुआ
था, पहला सम्मान समारोह जिसका संचालन 'अक्षरम्' के
महासचिव नरेश शांडिल्य और राजेश चेतन ने किया। अध्यक्ष
गोगना ने 'अक्षरम्' नामक पत्रिका के उद्देश्यों से परिचित कराते हुए
कहा कि यह पत्रिका प्रवासी और निवासी भारतीयों के बीच एक पुल का
काम करना चाहती है। कवि सम्मेलन में विदेश से आमंत्रित
कवियों में प्रमुख थे, अमेरिका के श्री गुलाब खंडेलवाल,
मॉरिशस के अभिमन्यु अनत, सूरीनाम की पुष्पिता, लंडन की उषा
राजे सक्सेना, बर्मिंघम की शैल अग्रवाल, तितिक्षा शाह,
प्रफुल्ल अमीन, मॅन्चेस्टर से सी एल शर्मा, नॉर्वे से डॉ
सुरेश चन्द्र शुक्ल, त्रिनिदाद से शुमिता चक्रवर्ती और लंदन से
रमेश पटेल। देश से जिन कवियों ने इस कवि सम्मेेलन में
हिस्सा लिया वे थे डॉ सीतेश आलोक, डॉ कैलाश वाजपेयी, डॉ
मृदुल कीर्ति, नरेश नाग। संचालन किया डॉ अशोक चक्रधर ने
और वे सभी कवियों के बीच अपनी चुटीली टिप्पणियों से
समारोह में रसमयता बनाने में सफल हुए। गंभीर से गंभीर
कविताओं को श्रोताओं ने बड़े ध्यान से सुना।
इस कवि सम्मेलन से इस भ्रम को
तोड़ा जा सकता है कि श्रोता सिर्फ हल्की और सतही कविताएं ही सुनना
चाहते हैं। पद्मेश गुप्त ने छड़ी, घड़ी और ऐनक, इन तीन
प्रतीकों के माध्यम से तीन पीढ़ियों के दर्द की गाथा सुनाई।
वहीं तितिक्षा शाह ने अंग्रेजी और हिन्दी की तुलना करते हुए दो
संस्कृतियों का अंतर उन्हें मानते हुए कहा कि अंग्रेजी में ऊंच नीच
का भेद इसीलिए हैं चूंकि इसकी वर्णमाला में ही समानता नहीं
हैं। अंग्रेजी में वर्णों में डिस्क्रिमिनेशन है क्योंकि वहां
कॅपीटल और स्मॉल लेटर्स होते हैं इसीलिए भावनाओं का क्रिमेशन
हैं। जबकि हमारी हिन्दी के सभी वर्ण बराबर स्थान रखते हैं। तितिक्षा
की कविता बेहद सराही गयी। यह कविसम्मेलन लगभग 5 घंटे चला
और अनेक प्रवासी मित्रों का कहना था कि तीन दिन से जिस ऊब और
जिस ओढ़ी हुई संभ्रांतता के बीच में वे सरकारी
कार्यक्रमों में एक घुटन महसूस कर रहे थे, इस कवि सम्मेलन
में आकर उन्हें भावनाओं की ऑक्सिजन मिली।
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