वर्ष
2003 . . . हर वर्ष की तरह काल के
गाल में समाते जा रहे समय का एक छोटा सा हिस्सा। सच है, मानव
इतिहास के हजारोंहजार साल की छोटी सी कालअवधि में ही इसकी कोई
बिसात नहीं है तो भला समूचे विश्व के अनंत कालअवधि में इसका
क्या महत्व हो सकता है? लेकिन नहीं, हम मनुष्यों के लिए समय का
एकएक पल बहुमूल्य है। पूरे एक वर्ष (अर्थात्
365 दिन, जो लगभग 31536000 सेकेंडों के योग से बनता है)
का तो कहना ही क्या
! हर
साल की तरह इस साल भी हमने मानव सभ्यता की प्रगति के रास्ते में
सफलता के बहुतेरे नए झंडे गाड़े हैं। साल दर साल होती प्रगति को देख कर
निश्चय ही हमारे पूर्वजों का सीना गर्व से चौड़ा होता जाता होगा।
जरा
सोचिए, मानव इतिहास के प्रारंभिक दिनों में पलपल रंग बदलती क्रूर
एवं निर्दयी प्रकृति से संघर्ष करता एक कमजोर, निहत्था असहाय
मानव। आखिर उसके पास था ही क्या? सींग, नुकीले दाँत, बड़ेबडे़
नाखूनों वाले पंजे, विषग्रंथि से युक्त या फिर अतिबलशाली
विशालकाय शरीर के मालिक जानवरों की तुलना में एक निहायत ही
कमजोर शरीर वाला, ठंड में ठिठुरता, गर्मी में झुलसता, भूख मिटाने
के लिए जंगलजंगल भटकता मानव। अपने हाथ पैरों से काम चलता न
देख कर पास पड़े पत्थर को उठा कर शिकार की तरफ फेंकने वाले पहले मानव ने
संभवत:
हमारी जुझारू प्रकृति तथा इस दृढ़ इच्छाशक्ति का उद्घोष जरूर कर दिया
होगा कि हम हार मानने वालों में से नहीं है़। हम इसी कमजोर तथा
निहत्थे शरीर के बल पर ही धीरेधीरे सारी विपरीत परिस्थितियों पर विजय
पाएँगे और एक दिन सारी प्राकृतिक सुविधाओं का उपयोग अपनी मर्जी से
करेंगे। यही नहीं, हम प्रकृति की मर्जी पर नहीं चलेंगे बल्कि प्रकृति को
हमारी मर्जी पर चलना होगा, और इसके लिए हमने इस्तेमाल किया
अपनी विश्लेषक बुद्धि का, सामूहिक कार्य भावना का तथा ज्ञान को सदैव
बढ़ाते रहने की प्रवृति का।
इन्हीं
सब का परिणाम है कि आज हमारे अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह पर उतरने की
तैयारी में हैं; हम हजारों मील दूर बैठे अपने प्रिय से मोबाइल तथा
इंटरनेट के द्वारा सदैव संपर्क में रह पा रहे हैं; अधिकतर बीमारियों का
उपचार कर पा रहे हैं; जेनेटिक इंजीनियरिंग के बल पर जीवजंतुओं
तथा स्वयं के गुणों में मनचाहा परिवर्तन कर सकने की क्षमता के विकास
के बेहद करीब हैं। प्रकृति पर संपूर्ण विजय के इस महाआभियान में हम
काफी आगे निकल आए हैं।
जनवरी
का यह महीना नए साल, 2004 के प्रारंभ का द्योतक है।आंधी तूफान की रफ्तार
से भागती इस दुनियां में आइए तनिक विश्राम लें और
विज्ञानवार्ता के इस अंक में हम वर्ष 2003 में हुई कुछ
महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रगतियों का
जायजा लें। क्यों कि इस छोटे से आलेख
में हजारों वर्षों का लेखाजोखा प्रस्तुत कर पाना तो असंभव है ही;
आजकल वैज्ञानिक अनुसंधानों की रफ्तार इतनी तेज है कि पिछले वर्ष
के सभी अनुसंधानों को समेट पाना भी संभव नहीं है। यहाँ हम केवल
ऐसे दस महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अनुसंधानों की चर्चा करेंगे जो निकट
भविष्य में हमारे समाज तथा वैज्ञानिक प्रगति के पथ को गंभीर रूप से
प्रभावित करने वाले हैं। इनका मूल्यांकन एक अलाभकारी संस्था अमेरिकन
असोशियेशन फॉर द एडवांसमेंट ऑफ साइंस
(AAAS)
द्वारा किया गया है।
प्रस्तुत जानकारी इसी मूल्यांकन पर आधारित है।
-
ब्रह्माण्ड
में अंधेरी अथवा काली ऊर्जा तथा पदार्थों का साम्राज्य:
कुछ वर्ष पूर्व संपूर्ण ब्रह्मांड के संदर्भ में कुछ
खगोलवैज्ञानिकों एवं कॉस्मोलॉजिस्ट्स ने बड़ा ही अनूठा
सुझाव प्रस्तुत किया था। उनके अनुसार इस ब्रह्मांड का विस्तार लगातार
हो रहा है और इसकी गति क्रमश: तेज से तेजतर होती जा रही है। इसके
पूर्व की वैज्ञानिक सोच यह थी कि ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति शैने:
शैने: कम हो रही है। परंतु उपरोक्त सुझाव ठीक इसके विपरीत है।
कैसे हो रहा है यह विस्तार? तो इन वैज्ञानिकों का जवाब
हैअंधेरी अथवा काली ऊर्जा
( Dark Energy)! जी
हाँ, इनके मतानुसार इस ब्रह्माण्ड के अधिकांश हिस्से पर काली ऊर्जा का
साया है। वास्तव में यह रहस्यमयी अंधेरी ऊर्जा किन्हीं भी दो
आकाशीय पिंडों के बीच कार्यरत गुरूत्वाकर्षणशक्ति के विपरीत कार्य
करती है और उन्हें एक दूसरे से दूर करने की प्रक्रिया में सहायक है।
उपरोक्त सुझाव प्रिन्सटन युनिवर्सिटी तथा कैलिफोर्निया स्थित
डिपार्टमेंट ऑफ इनर्जी के लॉरेंस बर्कले लैबोरेटरी में सॉल
पर्लमटर के तत्वाधान में चलने वाले इंटरनेशनल सुपरनोवा
कॉस्मोलॉजी प्रोजेक्ट तथा ऑस्ट्रेलिया स्थित माउंट स्टॉर्मलो
और साइडिंग स्प्रिंग ऑब्जर्वेटरीज स्थित हाई ज़ेड
सुपरनोवा सर्च टीम के लगभग 10 वर्षों के गहन अध्ययन का
परिणाम है। इन लोगों ने कई दर्जन सुपरनोवा
(
ऐसे
तारे जो अचानक अत्यधिक चमकीले हो जाते हैं)
का अध्ययन किया जिनमें से कुछ तो इतने पुराने तथा दूर हैं कि उनके
द्वारा उत्सर्जित प्रकाशपुंज
(
कॉस्मिक माइक्रोवेव्स
)
ने पृथ्वी की तरफ अपनी यात्रा तब शुरू की थी जब यह ब्रह्माण्ड अपने
अस्तित्व के प्रारंभिक काल में था।
AAAS
ने इस सुझाव का 1998 में ही उस वर्ष के प्रमुख वैज्ञानिक
उपलब्धियों में इसकी गणना की थी। परंतु बहुतेरे खगोलशास्त्रियों
एवं कॉस्मोलॉजिस्ट्स ने इस संदर्भ में अपनी शंकाएँ जताई थीं
तथा इससे असहमति व्यक्त की थी।
2003 में पुन: इसी संस्था ने इस सुझाव
को गत वर्ष के सबसे महत्वपूर्ण खोज का दर्जा दिया है। इनके
इस आंकलन का आधार है विल्किन्सन माइक्रोवेव एनआइसोट्रॉपी प्रोब
(WMAP)
सैटेलाइट
तथा स्लोन डिजिटल स्काई सर्वे
(SDSS)
टेलिस्कोप द्वारा प्राप्त सूचनाओं के विश्लेषण का परिणाम। इस सैटेलाइट
तथा टेलिस्कोप से प्राप्त सूचनाओं ने शंकालु वैज्ञानिकों की
शंकाओं का लगभग संपूर्ण समाधान प्रस्तुत कर दिया है।
(हालाँकि खगोल शास्त्रियों के एक
अतंर्राष्ट्रीय दल ने हाल ही में काली ऊर्जा के अस्तित्व के बारे में अपनी
शंका जताई है। इनकी शंका का आधार है, यूरोपियन स्पेस एजेंसी के एक्स
एम एमन्यूटन सैटेलाइट ऑब्जरवेटरी द्वारा संप्रेषित आंकड़ों का
विश्लेषण। इन लोगों ने सुदूर स्थित आठ आकाशगंगाओं से
उत्सर्जित एक्सरेज की मात्रा तथा उनके
ऊर्जास्तर से संबंधित आंकड़ों का विश्लेषण किया। इनके अनुसार ये
आंकड़े यह दर्शाते हैं कि इस ब्रह्माण्ड में उपस्थित पदार्थों का घनत्व
अनुमान से कहीं बहुत ज्यादा है और ऐसा तभी संभव है जब
ब्रह्माण्डीय पदार्थों की मात्रा भी पर्याप्त हो और जब ब्रह्माण्डीय
पदार्थों की मात्रा इतनी अधिक होगी तो काली ऊर्जा के अस्तित्व के लिए कम
ही स्थान बचेगा।)
WMAP ने
ब्रह्माण्ड के अस्तित्व में आने के प्रारंभिक काल
(लगभग
चालीस लाख बाद)
में उत्सर्जित प्रकाश की किरणों का अब तक के सर्वाधिक विस्तृत चित्र
लेने में सफलता प्राप्त की। इन किरणों की अभिरचना के
विस्तृत विश्लेषण के बाद अनुसंधानकता इस निष्कर्ष पर पहुँचे
हैं कि सारा ब्रह्माण्ड केवल 4 प्रतिशत सामान्य जानेमाने पदार्थों,
23 प्रतिशत अनजाने रहस्यमय
पदार्थों
(खगोलशास्त्रियों
का मानना है कि ये अनजाने पदार्थ ऐसे कणों से मिल कर बने हैं,जिसके
बारे में फिलहाल हमारे पास कोई जानकारी नहीं है)
तथा
शेष 73 प्रतिशत, काली ऊर्जा से
मिल कर बना है। है न इस ब्रह्माण्ड पर काली अथवा अंधेरी ऊर्जा का
साम्राज्य?
यही नहीं,
WMAP ने
ब्रह्माण्ड की उम्र, विस्तार की दर तथा घनत्व के सबंध में भी कुछ प्रकाश
डालने का प्रयास किया है। भला कितनी उम्र होगी इस ब्रह्माण्ड की?
उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर अनुसंधानकताओं ने अनुमान
लगाया है कि यह कम से कम 13।7
अरब वर्ष पुराना तो है ही।
SDSS
के
टेलिस्कोप ने काफी मदद की है। इसके द्वारा प्राप्त आंकडों का विश्लेषण हमें करोड़ों आकाशगंगाओं के आकारप्रकार तथा संपूर्ण
अंतरिक्ष में इनके फैलाव की अभिरचनाविशिष्ट का ज्ञान कराता है।
यह
विश्लेषण भी हमें इसी निष्कर्ष पर पहुँचाता है कि इस ब्रह्माण्ड में काली
ऊर्जा का ही प्रभुत्व है।
इस ब्रह्माण्ड की संरचना को अच्छी तरह समझने के अतिरिक्त काली ऊर्जा
एवं काले पदार्थों से संबंधित विस्तृत ज्ञान भविष्य में हमारे
सामने संभावनाओं का असीम पिटारा खोल सकते हैं। ये काले
रहस्यमय पदार्थ भविष्य में नएनए उपकरणों, यंत्रों तथा नाना
प्रकार के उपयोगी वस्तुओं के निर्माण में सहायक हो सकते हैं।काली
ऊर्जा के उत्पादन का रहस्य समझ कर हम भविष्य में अंतरनक्षत्रीय
यात्राओं को सुगम बना सकते हैं।यह ऊर्जा हमारे अंतरिक्ष यानों को
रास्ते में पड़ने वाली विभिन्न
तारों तथा तारा समूहों के शक्तिशाली गुरूत्वाकर्षण रूपी बाधाओं
से निजात दिलाने में सहायक हो सकती है।
-
मानसिक
बीमारियों से दोदो हाथ: खंडित
मानसिकता
(
स्किज़ोफ्रीनिया) तथा
उन्मादी अवसाद
(मैनिक
डिप्रेशन अथवा बाइपोलर डिस्ऑर्डर)
जैसी गंभीर मानसिक बीमारियों के मूल कारण एवं इनके निवारण
के संदर्भ में
वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे प्रयासों को
AAAS
ने
2003 के सर्वश्रेष्ठ अनुसंधानों की श्रेणी में दूसरा स्थान दिया
है।
खंडित मानसिकता के लक्षणों में मुख्य हैं विभ्रम, भ्रांति तथा
व्यामोह की स्थिति, अव्यवस्थित विचार एवं संवेदनाएँ, सामाजिकता
से अलगाव आदि। इस बीमारी के लक्षण अक्सर
किशोरावस्था के उतरार्ध अथवा वयस्कता के प्रारंभ में प्रकट होते
हैं। पीड़ित व्यक्ति को अक्सर
वह सुनाई पड़ता है जो दूसरे नही सुन पाते। दूसरे शब्दों में उसके
कान बजते रहते हैं। यह बीमारी एक प्रकार से अनुवांशिक होती है। वैज्ञानिकों ने हाल ही ऐसे कई जीन्स का पता लगाया है जिनका
संबंध इस बीमारी से है। छठवें क्रोमोज़ोम की छोटी एवं लंबी
दोनों बाँहों,आठवें एवं अट्ठारहवें क्रोमोज़ोम्स की छोटी
बाँहों, पाँचवें, ग्यारहवें, बाइसवें, पहले तथा तेरहवें क्रोमोज़म्स की लंबी बाँहों के साथसाथ उन्नीसवें
क्रोमोज़ोम्स की लंबी एवं छोटी दोनों बाँहों तथा एक्स क्रोमोजो़म्स की लंबी बाँह पर ऐसे जीन्स की संभावना दर्शायी
गई है जो इस बीमारी के एक अथवा अनेक लक्षणों से जुड़े हो सकते
हैं।
उन्मादी अवसाद जैसी
मानसिक बीमारी के रोगी की मनोदशा में भारी उद्वेलन देखा जाता है।
थोड़े समय के लिए तो वह अति क्रियाशीलता
(mania)
की स्थिति में रहता है और फिर अचानक अवसाद
(depression)
की
स्थिति में पहुँच जाता है। ये दोनों अवस्थाएँ बिना किसी कारण आती
जाती रहती हैं।
जीन्स का इस बीमारी से कितना संबंध है, इस बारे में अभी भी खोज
चल ही रही है। फिर भी बारहवें क्रोमोज़ोम की लंबी बाँह, चौथे
क्रोमोज़ोम की छोटी बाँह, एक्स क्रोमोज़ोम की लंबी बाँह, अट्ठारहवें तथा सोलहवें
क्रोमोज़ोम्स की छोटी बाँह एवं इक्कीसवें क्रोमोज़ोम की लंबी
बाँह पर इस बीमारी से संबंधित जीन्स की संभावना दर्शायी गई
है।
वैज्ञानिक अब यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि ये जीन्स किस
प्रकार मस्तिष्क की सूचनासंप्रेषणप्रक्रिया को प्रभावित करते हैं
तथा किन परिस्थितियों में व्यक्ति मानसिक बीमारियों के चपेट में
आ जाता है।आशा है निकट भविष्य में इनसे लड़ने के लिए
अनुसंधानकता प्राभावकारी औषधियों का विकास
कर लेंगे।
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