स्वर साम्राज्ञी सुरैया
माधवी वर्मा
लाहौर में
१९२९ में जन्मी, हिंदुस्तान और पाकिस्तान की कई पीढ़ियों की
आँखों को नम और दिलों को बेखुद करने वाली सुरैया ने जीवन के
रंगमंच से ३१ जनवरी २००४ को अलविदा कह दिया और उसके साथ ही
सरहदों को दरकिनार करने वाली साझी संस्कृति का एक और स्तंभ ढह
गया।
मुंबई के
हरिकिशनदास अस्पताल में, ७५ वर्ष की आयु में उन्होंने अंतिम
साँस ली जहाँ उन्हें १५ दिन पहले भर्ती किया गया था। उन्हें
सामान्य कमज़ोरी और भूख न लगने की शिकायत थी। मरीन ड्राइव स्थित
कृष्ण महल बिल्डिंग के एक फ्लैट में उन्होंने ७१ वर्ष का लंबा
समय बिताया। यहाँ वे चार वर्ष की उम्र में रहने आयी थीं। उनकी
शिक्षा मुंबई के 'न्यू 'जे बी पेटिट
हाई स्कूल फार गलर्ल्स' में हुई थी। फारसी और कुरान का अध्ययन
उन्होंने घर पर किया था। १९६३ में बनी रूस्तम सोहराब उनकी
अंतिम फिल्म थी। चालीस वर्षो से अधिक समय से फिल्म तथा जनजीवन
से दूर रहने वाली सुरैया की अंतिम यात्रा उनके गिने चुने
आत्मीय लोगों तक सीमित रही। फिल्म 'मिर्जा गालिब' मे उनका गाया
गीत 'ये न थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता' आज भी लोगों की
आँखों को नम कर देता है। यह इत्तफाक ही है कि यह गीत फिल्म से
निकल कर उनकी जिंदगी में
भी छा गया और वे जीवन पर्यन्त अविवाहित रहीं।
बाल कलाकार के रूप में १९४१ की फिल्म 'ताज महल' से अपना फिल्मी
सफर शुरू करने वाली सुरैया के सुरों के जादू से लोग पहली बार
'शारदा' में रूबरू हुए। १९४२ में प्रदर्शित इस फिल्म में
उन्होंने अदाकारा मेहताब के लिए पार्श्व गायन किया। इस फिल्म
के संगीतकार थे नौशाद। सुरैया की अभिनय प्रतिभा फिल्म 'हमारी
बात' में उजागर हुई। १९४३ में प्रदर्शित इस फिल्म में उन्होंने
अभिनय भी किया और अपने गीत खुद गाए। उसके अगले साल ही उन्हें
राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें यह पुरस्कार
१९४४ में प्रदर्शित फिल्म 'मिलन' के लिए मिला। दो साल बाद
उन्हें 'अनमोल घड़ी' में हिंदी–उर्दू सिनेमा की महानतम गायक
नूरजहाँ के साथ सहायक कलाकार के रूप में काम करने का मौका
मिला। 'दर्द' में वह मुनव्वर सुल्ताना की सहायक कलाकार बनीं।
इसके बाद उन्हें मुख्य कलाकार की भूमिका मिलनी
शुरू हो गईं।
सुरैया ने 'अफसर', 'अनमोल घड़ी', 'दिल्लगी', 'मिर्ज़ा गालिब',
'परवाना', 'प्यार की जीत', 'रूस्तम सोहराब' और 'शमा परवाना'
जैसी अत्यंत लोकप्रिय फिल्मों में अपनी आवाज और अभिनय की
प्रतिभा प्रदर्शित की। दशकों बाद आज भी इन फिल्मों के गीत
लोगों के दिल और जुबान पर ताजा हैं। फिल्म 'प्यार की जीत' के
गीत 'तेरे नैनों ने चोरी किया' और 'ओ दूर जाने वाले' ने उन्हें
लोकप्रियता की शिखर पर पहुँचा दिया। लोग सुरैया के सौन्दर्य और
अभिनय के साथ–साथ उनकी आवाज के भी दीवाने हो गए।
महबूब खान की फिल्म 'अनमोल घड़ी' उनके फिल्मी सफर का एक अहम मोड़
बनी। मल्लिका–ए–तरन्नुम के नाम से मशहूर नूरजहाँ के साथ
अदाकारी करते हुए उन्होंने उसमें गीत भी गाए। तब नूरजहाँ का
जादू सिर चढ़ कर बोल रहा था। इसके बावजूद उनका गीत 'मैं दिल में
दर्द बसा लाई' बहुत लोकप्रिय हुआ और उन्होंने गायन के क्षेत्र
में भी अपना लोहा मनवा लिया। विभाजन के बाद जहाँ नूरजहाँ ने
पाकिस्तान का रूख किया, सुरैया ने हिंदुस्तान को अपना वतन
बनाया। वतन की खाक उनकी रूह में रची बसी थी, उन्होंने उसी खाक
का हिस्सा बनना पसंद किया। सुरैया के मशहूर गीतों में 'धड़कते
दिल की तमन्ना हो, मेरा प्यार हो तुम (शमा), 'तू मेरा चांद मैं
तेरी चाँदनी (दिल्लगी), 'ओ दूर जाने वाले' (प्यार
की जीत), 'मन मोरा हुआ मतवाला' (अफसर) शामिल है।
वर्ष १९२९ में जन्मी सुरैया जमाल शेख की फिल्मी यात्रा का
प्रारंभ एक संयोग से हुआ। वह अपने चाचा और अपने समय के मशहूर
खलनायक जहूर के साथ फिल्म 'ताजमहल' के सेट पर गई थी। ११ साल की
सुरैया की भोली भाली सूरत और मासूमियत को देख फिल्म के
निर्माता नानूभाई वकील ने उन्हें 'मुमताज महल' के बचपन का
किरदार निभाने को दे दिया।
सुरैया ने राज कपूर के साथ आल इंडिया रेडियो पर बच्चों के
कार्यक्रम में भी हिस्सा लिया। |