इस
सप्ताह दशहरा विशेषांक में
समकालीन कहानियों के अंतर्गत
भारत से सुभाष चंद्र कुशवाहा की कहानी
अपेक्षाएँ
दशहरे
की छुट्टियों में मैं गाँव में था। घर-बार, बाग़-बगीचे, ताल-तलैये,
बँसवारी अपनी जगह थे, थोड़ी-बहुत आकार-प्रकार की भिन्नता के साथ। पुराने
संगी-साथियों में कुछ थे, कुछ काम-धंधे के वास्ते बाहर गए थे। धान की
कटाई हो चुकी थी। समीप के बाज़ार में बजते दुर्गापूजा के नगाड़े, देर रात
तक सुनाई देते। बरसात से धुले मौसम का रंग-रूप निखरा हुआ था। इस बार गाँव
पहुँचने पर पहले जैसा उल्लास नहीं दिखा बाबू जी में और न पट्टीदारी की
भौजाई चहकती हुई आई थीं। दोनों मामा मिलने नहीं आए थे। बहनें और जीजा भी
नहीं। यह नई बात थी। पता चला कि रिश्तेदार और पट्टीदार मुँह फुलाए हैं।
माँ-बाबू जी पर भी उनका प्रभाव दिखाई दे रहा था।
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हास्य-व्यंग्य के अंतर्गत
नीरज दीवान की कलम में कैमिकल लोचा... हे राम
फ़िल्मसिटी
से पैदल घर जा रहा था। कुछ ही दूर चला था कि एक साया मेरी ओर बढ़ता दिखाई
दिया। कोई दिव्य पुरुष मालूम होता था- चेहरे-मोहरे से जाना-पहचाना। समझ
नहीं आ रहा था कि कौन हो सकता है। सिर के पीछे प्रकाश की छटा बिखरी थी,
माथे पर तिलक और कानों में कुंडल, लंबी नाक और बड़ी आँखे...रंग साँवला।
चेहरे-मोहरे से अपने भगवान राम दिख रहे थे। मैंने सोचा कि दशहरे के लिए
स्पेशल प्रोग्राम कराने कोई स्टूडियो लेकर आया होगा...खाली टाइम में यहीं
घूम रहे होंगे रामलीला वाले ये सज्जन...लेकिन प्रभामंडल देख हैरानी में
पड़ चुका था। मुझे वे अलौकिक लग रहे थे। अँधेरे में चेहरा ही नहीं बल्कि
पूरा शरीर शनैः शनैः प्रकाशित हो रहा था।
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साहित्यिक निबंध में
अरविंद जैन का आलेख भारत के हिंदीतर
रामकाव्य
रामकथा
ने प्रत्येक कवि को प्रभावित किया है। इसीलिए आज विश्व की लगभग प्रत्येक भाषा
में रामकथा उपलब्ध है। अनेक आधुनिक भारतीय भाषाओं का प्रथम महाकाव्य या
सर्वाधिक लोकप्रिय काव्य ग्रंथ प्रायः कोई रामायण ही है। तमिल साहित्य के
प्रबंधकाल में आज से लगभग 12 सौ वर्ष पूर्व चक्रवर्ती महाकवि कंबन हुए,
जिन्होंने 'कंब रामायण' नामक प्रबंध काव्य की रचना की।
तेलुगू साहित्य के दूसरे पुराण युग (सन 1050 से 1500 तक) में सबसे पहले रंगनाथ रामायण (13वीं शती) और फिर भास्कर रामायण(14वीं शती) की रचना
हुई। सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा रचे गए कुल ११ ग्रंथों में
से एक 'रामावतार' को गोविंद रामायण कहा जाता है।
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सामयिकी में
डॉ योगेंद्र नाथ शर्मा अरुण से चरित्र-चर्चा
प्रतिनायक रावण
युग-युगांतर
से मर्यादा पुरुषोत्तम 'राम' के साथ उनके प्रबलतम प्रतिद्वंद्वी 'रावण' एवं
लीला पुरुषोत्तम 'कृष्ण' के साथ 'कंस' का नाम भी अमर-अजर है, ठीक उसी प्रकार
जैसे प्रकाश के साथ अंधकार और अमृत के साथ विष का स्मरण सहज ही हो आता है।
नाम-राशियाँ एक होने पर भी 'कर्मों की विपरीतता' के कारण राम एवं रावण के
व्यक्तित्वों में ज़मीन-आसमान का अंतर तो अवश्य आ गया है, किंतु एक के बिना
दूसरे की सार्थकता ही जैसे नहीं लगती। रामकथा के आदि महाकवि महर्षि वाल्मीकि
ने अपने विश्व महाकाव्य 'रामायण ' में रावण को निरपेक्ष भाव से 'प्रतिनायक'
के रूप में चित्रित किया है। उसे उपेक्षा और घृणा का पात्र नहीं बनाया।
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धारावाहिक में- ओम प्रकाश मेहरा की
लंबी कहानी
सुराजी कॉलोनी का स्वच्छता अभियान का
दूसरा व अंतिम भाग
अभी
दूर-दूर तक लाल पीली बत्ती वाली कारों का कोई काफ़िला नज़र नहीं आ रहा था।
चैन की साँस लेते हुए उसने एक बार दगडू के हाथों में लकड़ी के टुकड़े पर सजी
फूल-मालाओं का मुआयना किया. . .आशा के कलश से चुल्लू भर पानी लेकर उन पर
छिड़का, भीड़ पर एक संतोष भर नज़र डाली और मन ही मन मुस्कुराया। मंत्री जी के
आगमन में देर होती देख कुछ जवान छोकरे सड़क किनारे पुलिया पर बैठकर सुस्ताने
लगे। गुंडू हमेशा की तरह फ़िल्मी अभिनेताओं की आवाज़ की नकल करते हुए डायलॉग
बोलने लगा. . .छोटे बच्चे उछलकूद में लग गए। वह खीझ उठा। यही तो. . .यही तो।
रहे न उजड्ड के उजड्ड।
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