यह माना जाता है कि
आदिकवि महर्षि वाल्मीकि से अनेक शताब्दियों पूर्व ही
रामकथा को लेकर आख्यान-काव्य की रचना होने लगी थी
किंतु, उस साहित्य के अप्राप्य होने से वाल्मीकि कृत
रामायण को ही प्राचीनतम उपलब्ध रामकाव्य माना जाता है।
इसकी रचना संभवतः ईसा-पूर्व चौथी शताब्दी के अंत में
हुई। अधिक समय तक मौखिक रूप में प्रचलित रहने के कारण
इसका रूप स्थिर नहीं रह सका और रामकथा के प्रारंभिक
विकास के साथ-साथ इसमें परिवर्तन व परिवर्धन होता
रहा। अनेक विद्वानों का यह भी मत है कि वाल्मीकि ने
चारणों के गाथागीति के रूप में लोक प्रचलित वीराख्यान
को ही प्रबंध का रूप देकर रामायण महाकाव्य की रचना की।
रामकथा और रामकाव्य के
नायक राम के व्यक्तित्व में कितनी ऐतिहासिकता और कितनी
कवि-कल्पना है, यह कहना बहुत कठिन है। परंतु, इस बात
मे कोई संदेह नहीं है कि वाल्मीकि के महाकाव्य
'रामायण' ने ही सर्वप्रथम महामानव राम को लोकनायकत्व
प्रदान किया। राम का जो गौरवपूर्ण चरित्र जगविख्यात
है, उसका श्रेय महर्षि वाल्मीकि को ही है। उनके बाद
रामकाव्य की परंपरा को आगे बढ़ाया जयदेव, कालिदास और
तुलसीदास आदि महान कवियों ने। उन्होंने वाल्मीकि
रामायण की ही कथावस्तु का अपनी-अपनी शैली में उपयोग कर
रामोपाख्यान प्रस्तुत किए। हिंदी और संस्कृत साहित्य
की इस रामकाव्य परंपरा ने मर्यादा पुरुषोत्तम राम के
चरित्र को और अधिक व्यापक बनाया।
रामकथा ने प्रत्येक
कवि को प्रभावित किया है। इसीलिए आज विश्व की लगभग
प्रत्येक भाषा में रामकथा उपलब्ध है। विभिन्न आधुनिक
भारतीय भाषाओं का प्रथम महाकाव्य या सर्वाधिक लोकप्रिय
काव्य ग्रंथ प्रायः कोई रामायण ही है। इसके अतिरिक्त
बहुत-सी अन्य रचनाएँ भी रामकथा से संबंधित है। कुछ
महत्वपूर्ण अहिंदी भाषी रामकाव्यों का संक्षिप्त विवरण
यहाँ प्रस्तुत है।
पउम
चरिउ
लगभग
छठी से बारहवीं शती तक उत्तर भारत में साहित्य और
बोलचाल में व्यवहृत प्राकृति की उत्तराधिकारिणी भाषाएँ
अपभ्रंश कहलाईँ। अपभ्रंश के प्रबंधात्मक साहित्य के
प्रमुख प्रतिनिधि कवि थे- स्वयंभू (सत्यभूदेव), जिनका
जन्म लगभग साढ़े आठ सौ वर्ष पूर्व बरार प्रांत में हुआ
था। स्वयंभू जैन मत के माननेवाले थे। उन्होंने रामकथा
पर आधारित पउम चरिउ जैसी बारह हज़ार पदों वाली कृति की
रचना की। जैन मत में राजा राम के लिए पद्म शब्द का
प्रयोग होता है, इसलिए स्वयंभू की रामायण को 'पद्म
चरित' (पउम चरिउ) कहा गया। इसकी सूचना छह वर्ष तीन मास
ग्यारह दिन में पूरी हुई। मूलरूप से इस रामायण में कुल
९२ सर्ग थे,
जिनमें स्वयंभू के पुत्र त्रिभूवन ने अपनी ओर से १६ सर्ग और जोड़े। गोस्वामी तुलसीदास के 'रामचरित मानस'
पर महाकवि स्वयंभू रचित 'पउम चरिउ' का प्रभाव स्पष्ट
दिखलाई पड़ता है।
असमी
रामायण
लगभग सातवीं शताब्दी
में असमिया साहित्य के प्रथम काल के सबसे बड़े कवि
माधव कंदलि ने कछारी राजा महामाणिक्य के प्रोत्साहन से
१४ वीं शताब्दी में वाल्मीकि रामायण का सरल अनुवाद असमिया छंद में किया। एक गीति कवि दुर्गावर ने १६वीं
शती में लौकिक वातावरण में गेय छंद में गीति-रामायण की
रचना की। असमिया साहित्य के द्वितीय काल (वैष्णवकाल
में) माधव कंदलि द्वारा अनूदित रामायण का कुछ अंश खो
जाने के कारण इस काल के एक प्रमुख कवि और साहित्यकार
शंकरदेव ने उत्तर कांड को पुनः अनूदित किया। शंकरदेव
ने ही 'रामविजय' नामक नाटक की भी रचना की।
उड़िया रामायण
उड़िया-साहित्य के
प्रथम प्रतिनिधि कवि सारलादास ने 'विलंका रामायण' की
रचना की। अर्जुनदास ने 'राम विभा' नाम से रामोपाख्यान
प्रस्तुत किया। परंतु, कवि बलरामदास द्वारा रचित
रामायण उड़ीसा का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रंथ माना जाता
है।
बलरामदास की 'जगमोहन
रामायण' अपने अनूठे प्रसंगों के लिए भी विख्यात है।
उनकी यह कृति 'दक्षिणी रामायण' भी कहलाती है। इसके बाद
१९वीं शती में आधुनिक युग में फकीर मोहन सेनापति ने
'रामायण' का पद्यानुवाद किया।
कन्नड़ः पंप रामायण
दक्षिण भारत की पाँच भाषाओं में से एक है- कन्नड़।
कन्नड़ साहित्य के सन ९५० से ११५० तक के पंप युग में एक अत्यंत प्रसिद्ध कवि
हुए नागचंद्र, जिन्होंने 'पंप भारत' का अनुसरण करते
हुए रामायण की रचना की। रामचंद्रचरित पुराण अथवा पंप
रामायण कन्नड़ की उपलब्ध रामकथाओं में सबसे प्राचीन
है।
तत्पश्चात
१५वीं
शताब्दी से १९वीं शताब्दी के 'कुमार व्यास काल' में नरहरि अथवा कुमार वाल्मीकि नामक एक कवि ने वाल्मीकि
रामायण के आधार पर तोरवे रामायण की रचना की। कन्नड़
साहित्य की एक श्रेष्ठ कृति के रूप में यह आज भी जानी
जाती है। इसी युग की अंतिम उन्नीसवीं शती में देवचंदर
नामक एक जैन कवि ने 'रामकथावतार' लिखकर जैन रामायण की
परंपरा को आगे बढ़ाया। इस शती के अंत में मुद्दण नामक
एक अत्यंत सफल कवि ने अद्भूत रामायण नामक सरस
काव्य-कृति की रचना की।
कश्मीरी रामायण
तेरहवीं सदी में
कश्मीरी भाषा में साहित्य सृजन आरंभ हुआ। सन १७५० से
१९०० के मध्य के प्रेमाख्यान काल में प्रकाश राम ने
रामायण की रचना की। १८वीं शती के अंत में दिवाकर प्रकाण भट्ट ने भी 'कश्मीरी रामायण' की रचना की।
गुजराती रामायण
१४वीं शती में आशासत
में गुजराती में रामलीला विषयक पदावली की रचना की। फिर
१५वीं शती में भालण ने सीता स्वयंवर अथवा राम-विवाह
नामक रामकाव्य प्रस्तुत किया। गुजराती साहित्य में यही
प्राचीनतम रामकाव्य माने जाते हैं। वर्तमान में समूचे
गुजरात में १९वीं शताब्दी की गिरधरदास 'रामायण'
सर्वश्रेष्ठ और सर्वाधिक लोकप्रिय मानी जाती है।
तमिल
रामायण
तमिल भाषा द्रविड़
भाषा परिवार की प्राचीनतम भाषा मानी जाती है और महर्षि
अगस्त्य इसके जनक कहे जाते हैं। तमिल साहित्य के
प्रबंधकाल में आज से लगभग १२ सौ वर्ष पूर्व चक्रवर्ती
महाकवि कंबन हुए, जिन्होंने 'कंब रामायण' नामक प्रबंध
काव्य की रचना की। कुछ विद्वान कंबन और उनकी रामायण को
१२वीं शताब्दी का मानते हैं और यह भी माना जाता है कि
महाकवि कंबन गोस्वामी तुलसीदास से कम से कम चार सौ
वर्ष पूर्व हुए थे।
तेलुगू रामायण
तेलुगू साहित्य के
दूसरे पुराण युग (सन १०५० से ११५०० तक) में सबसे पहले रंगनाथ रामायण (१३वीं शती) और फिर भास्कर रामायण(१४वीं
शती) की रचना हुई। भास्कर रामायण को तेलुगू का सबसे
कलात्मक रामकाव्य माना जाता है। तेलुगू साहित्य के
स्वर्ण युग (प्रबंध युग) में अनुवादों की परंपरा रुक गई
और कवियों की रुचि मौलिक प्रबंध लिखने की ओर बढ़ी। उसी
क्रम में तेलुगू की चार महिला रामायणकारों ने
अपनी-अपनी कृतियाँ प्रस्तुत कीं। ये थीं- मधुरवाणी की
'रघुनाथ रामायण', शीरभु सुभद्रमांबा की 'सुभद्रा
रामायण', चेबरोलु सरस्वती की 'सरस्वती रामायण' तथा
मोल्ल की 'मोल्ल रामायण'। १६वीं शताब्दी में मोल्ल
नामक कुम्हारिन द्वारा रचित 'मोल्ल रामायण' जनसाधारण
में अत्यधिक लोकप्रिय है।
तेलुगू साहित्य की
सर्वप्रथम कवयित्री आतुकूरि मोल्ल तुलसीदास से लगभग
२०० वर्ष पूर्व हुई थीं। अपने गुरु गोपवरम के श्रीकंठ
मल्लेश की कृपा से मोल्ल कविता करना सीख गई।
राज्याश्रय के लिए शिव और राम भक्त मोल्ल के पास भी
निमंत्रण आया था परंतु उन्होंने उसे विनयपूर्वक
अस्वीकार कर दिया। मोल्ल कहती थीं कि वे तो प्रभु
रामचंद्र के कहने से उनका गुणगान करती है और उसे
उन्हीं के चरणों में समर्पित कर देती हैं। 'मोल्ल
रामायण' का अब हिंदी अनुवाद भी उपलब्ध है।
पंजाबी रामायण
सिखों के दसवें गुरु
गोविंद सिंह जी न केवल धर्म गुरु थे वरन वे एक महान
संत, योद्धा और कवि भी थे। उनके द्वारा रचे गए कुल ११
ग्रंथों में से एक 'रामावतार' को गोविंद रामायण कहा
जाता है। पंजाबी भाषा की यह महान रचना संभवतः सन १६९८
में पूर्ण हुई थी। गुरु जी की रामकथा में धर्म युद्ध
के घाव का भाव ही खूब उजागर हुआ है। 'गोविंद रामायण'
से कुल ८६४ छंद है जिनमें ४०० से अधिक छंदों में केवल यूद्ध का ही वर्णन है।
बंगाली रामायण
तुलसीदास से एक
शताब्दी पूर्व बंगला के संत कवि पंडित कृत्तिवास ओझा
ने 'रामायण पांचाली' नामक रामायण की रचना की।
१५वीं
शताब्दी में रचित यह रामायण बंगला जनजीवन का कंठहार
है। पाँच साल में उन्होंने अपने इस अमर ग्रंथ को पूरा
किया।
बंगाली रामकाव्य की
कुछ अन्य प्रमुख रचनाएँ हैं- नित्यानंद आचार्य (अद्भुताचार्य)
की आश्चर्य रामायण, कविचंद्र कृत अंगद रायबार, रघुनंदन
गोस्वामी कृत राम रसायन तथा चंद्रावती की रामायण गाथा।
बंगाल के एक क्षेत्र विशेष में चंद्रावती की रामकथा के
पद बेहद लोकप्रिय हैं।
मराठी रामायण
महाराष्ट्र में पैठण
नामक स्थान में जन्मे संत एकनाथ गोस्वामी तुलसीदास के
समकालीन थे। उन्होंने काशी में तुलसीदास जी से भेंट की
थी। उन्होंने 'भावार्थ रामायण' की रचना की थी। जिसे वह
पूर्ण नहीं कर पाए और इसे पूरा किया उनके शिष्य गाववा
ने।
मलयालम रामायण
चौदहवीं शताब्दी में
'रामायण' के युद्ध कांड की कथा के आधार पर प्राचीन
तिरुवनांकोर के राजा ने रामचरित नामक काव्य ग्रंथ की
रचना की। इसे मलयालम भाषा का प्रथम काव्य ग्रंथ माना
जाता है। इसी शती में कवि राम प्पणिकर ने गेय छंदों
में 'कणिश्श रामायण' की रचना की। इसके बाद रामकथा-पाट्ट
रचा गया। फिर वाल्मीकि रामायण के अनुवाद के रूप में
'केरल वर्मा रामायण' की रचना हुई। मलयालम भाषा के
सर्वाधिक लोकप्रिय राम काव्य के रूप में सन १६०० के
लगभग एजुत्त चन द्वारा 'अध्यात्म रामायण' का अनुवाद
प्रस्तुत किया गया।
अहिंदी भाषी रामकाव्य
में 'रावणवहो' (रावण वध) महाराष्ट्री प्राकृत भाषा का
एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जिसकी रचना कश्मीर के राजा
प्रवरसेन द्वितीय ने की थी। प्राकृत साहित्य की इस
अनुपम रचना का संस्कृत भाषा में सेतुबंध के नाम से
अनुवाद हुआ।
नेपाली रामायण
१९वीं शताब्दी में
कवि भानुभट्ट ने नेपाली भाषा में संपूर्ण रामायण लिखी।
इस रामायण का आज नेपाल में वही मान है, जो भारत में
तुलसीकृत रामचरितमानस का है।
अन्य
रामायण
इस बात के प्रमाण भी
उपलब्ध हैं कि मुगल शासनकाल में रामायण का फारसी भाषा
में अनुवाद हुआ। राम कथा साहित्य की एक प्रसिद्ध रचना
'तोरवे रामायण' है, जिसकी रचना १६वीं शती में तोरवे
नामक ग्राम के निवासी नरहरि द्वारा की गई।
१६ अक्तूबर २००७ |