छाया था आतंक हर तरफ़ रावण का साया था
जिसकी काली करतूतों ने सबको भरमाया था
अपने मद में चूर भंग अनुशासन करता था
उड़ता था आकाश दूसरों पर शासन करता था
मनमानी में भूल गया अन्याय न्याय की
रेखा
सीता को हर ले जाने का परिणाम ना देखा
सोचा नहीं राम से भिड़ना जीवन घातक
होगा
अहंकार जिस बल पर उसका खुद ही नाशक होगा
घटा महासंग्राम युद्ध में रावण का
संहार हुआ
हुई अधर्म की हार धर्म का स्थापित संसार हुआ
सच है जग में अंत बुराई का एक दिन
होना है
सच्चाई पर चलने वाला राम विजित होना है
हर विजयादशमी के दिन एक रावण जल जाता
है
हर दशहरे पर राम विजय का हर्ष उभर आता है
यही कामना रावण का हो अंत राम की विजय
करें सभी जयघोष - सियावर रामचंद्र की जय! |