इस सप्ताह—
समकालीन कहानियों में भारत से
शिबन कृष्ण रैणा की कहानी
मुलाक़ात
आगंतुक पड़ोसी मुझे निहायत ही
शरीफ़ किस्म के व्यक्ति लगे। पति और पत्नी, बस। यही उनका
परिवार था। अधेड़ आयु वाली इस दंपति ने अकेले दम कुछ ही महीनों
में संचेती जी के मकान की काया पलट कर दी। बगीचे में सुंदर घास
लगवाई, रंग-बिरंगी क्यारियाँ, क्रोटन, गुलाब, बोनसाइ आदि से
सुसज्जित गमले. . .। खिड़कियों और दरवाज़ों पर सफ़ेद रंग. . .।
दो-चार विदेशी पेंटिंग्स बरामदे में टँगवाई तथा पूरे मकान को
हल्के गुलाबी रंग से पुतवाया। देखते ही देखते संचेती जी के
मकान ने कालोनी में अपनी एक अलग ही पहचान बना ली। एक दिन मैं
और मेरी श्रीमती जी शिष्टाचार के नाते उन आगंतुक पड़ोसी के घर मिलने के
लिए गए।
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हास्य-व्यंग्य में गुरमीत बेदी समझा रहे हैं
अपुन
का ताज़ा एजेंडा!
एक सज्जन जानना चाह रहे थे कि चालू सीज़न में अपुन क्या गुल खिलाने जा
रहे हैं। मैंने उन्हें बताया, हे भद्रपुरुष ! बड़ा क्लीयर-सा फंडा है,
लीक से हटकर कुछ कर दिखाना ही अपुन का एजेंडा है। वह सज्जन आँखें
फाड़-फाड़ कर मेरी तरफ़ यों देखने लगे जैसे मैं इस लोक का प्राणी न होकर
दूसरे लोक से टपका होऊँ। मैंने उनकी जिज्ञासा और हैरानगी को और न बढ़ाते
हुए अपने एजेंडे की पिटारी खोल दी। अब वह सज्जन अभिभूत थे और अपुन पूरी
लय में थे। अपुन के एजेंडे में कोई ऐसा-वैसा छुपा या सीक्रेट एजेंडा नहीं
है जो आम तौर पर पॉलिटियशनों के एजेंडा में होता है। अपुन का एजेंडा बड़ा
क्लीयर-सा एजेंडा है जिसमें जो भीतर है, वही बाहर है और जो बाहर है, वही
भीतर है। आपके जनरल नॉलेज में इज़ाफ़ा करने और देश की आन-बान व शान को
बढ़ाने के लिए लीजिए प्रस्तुत है अपुन का ताज़ा एजेंडा।
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संस्कृति में वैद्य अनुराग विजयवर्गीय
के शब्दों में दूब तेरी महिमा न्यारी
भारतीय
संस्कृति में दूब को अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। चाहे नागपंचमी का
पूजन हो या विवाहोत्सव या फिर अन्य कोई शुभ मांगलिक अवसर, पूजन-सामग्री के
रूप में दूब की उपस्थिति से उस समय उत्सव की शोभा और भी बढ़ जाती है। यह पौधा
ज़मीन से ऊँचा नहीं उठता है, बल्कि ज़मीन पर ही फैला हुआ रहता है, इसलिए इसकी
नम्रता को देखकर गुरु नानक ने एक स्थान पर कहा है-
नानकनी चाहो चले, जैसे नीची दूब, और घास सूख जाएगा, दूब खूब की खूब।
हिंदू धर्म-शास्त्र भी दूब को परम-पवित्र मानते हैं। हमारे देश में ऐसा कोई
मांगलिक कार्य नहीं, जिसमें हल्दी और दूब की ज़रूरत न पड़ती हो।
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फुलवारी में
मौसम की कहानी का अगला भाग
कोहरा क्यों होता हैं?
धरती
की सतह पर रहने वाले बादल को कोहरा कहते हैं। नमी से भरी हुई हवा जब
ठंडी होने लगती है तब वह कोहरे के रूप में दिखाई देती है। ऐसा आमतौर
पर शाम के समय होता है, जब सूरज की गरमी धरती पर नहीं पड़ती है। कभी
कभी कोहरा इतना घनी हो जाता है कि हम ज़्यादा से ज़्यादा एक मीटर तक
ही देख सकते हैं। ठंडी हवा भारी होती है और धरती के पास रहती है।
इसलिए घाटियों में अक्सर धुंध छाई रहती है। पानी की वाष्प जब मकड़ी
के जालों या फूलों की पंखुरियों की सतह पर ठंडी होती है तो पानी की
महीन बूँदों के रूप में दिखाई देती है। इसको ओस कहते हैं। जब ओस जम
जाती हैं तो इसे पाला कहते हैं।
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रसोईघर में
माइक्रोवेव-अवन में पक रही है
गोभी की सूखी सब्ज़ी
पारंपरिक
खाना हो तो साथ में माइक्रोवेव किए गए गोभी का निराला स्वाद सबको
लुभाएगा। जल्दी में कुछ स्वादिष्ट खाना है तो इस गोभी के साथ ब्रेड
या चावल का जवाब नहीं। पौष्टिकता में भी यह भरपूर है सो इसे टमाटर और
प्याज़ के साथ सलाद की तरह भी परोसा जा सकता है। टिफ़िन में पैक करना
है तो पराठे और पूरी के साथ इसका मज़ा निराला है। चटपटा चाहिए तो
चाटमसाला, हरी मिर्च और नीबू डालकर चाय के साथ खाएँ या बेसन मिला कर
पकौड़े तलें यह गोभी हर तरह से अच्छा लगता है।
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