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शब्दकोश का जन्म
अशोक श्री श्रीमाल

आज जब हमें किसी कठिन शब्द के अर्थ, भावार्थ या मायने जानने की ज़रूरत पड़ती है, तो हम तत्काल शब्दकोष का सहारा लेते हैं। 'शब्द कोष' अथवा 'डिक्शनरी' आज ज़िंदगी का एक आम हिस्सा बन चुकी है। विभिन्न भाषाओं के विभिन्न आकार-प्रकार में आज शब्दकोष जिज्ञासु लोगों की ज्ञान-पिपासा शांत करने हेतु मौजूद हैं।
क्या आपने सोचा है कि संबंधित भाषा के हज़ारों-लाखों शब्दों और उनके सही अर्थों को एक स्थान पर संकलित करने की यह नितांत मौलिक परिकल्पना आख़िर थी किसकी? कौन है वह शख़्स, जिसने सर्वप्रथम इस कठिन और दुष्कर कार्य को करने के लिए शब्दों का संग्रह किया?

स्नातक नहीं बन सका
अठारहवीं शताब्दी के शुरुआती दौर में लगभग पूरे विश्व में शिक्षा और साहित्य का विकास अपने चरम-बिंदु पर था। मुद्रण-कला का आवि lang="hi">ष्का<र और छापेखानों की शुरुआत ने ज्ञान-प्राप्ति के साधनों में क्रांति पैदा कर दी थी। लोगों की जिज्ञासा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही थी। ऐसे दौर में सितंबर, १७०९ में लिवफ़ील्ड में एक पुस्तक विक्रेता के घर एक बालक का जन्म हुआ। उसका नाम था सैमुअल जानसन। जानसन के पिता एक निर्धन व्यक्ति थे। बचपन में जानसन बहुत बीमार पड़ गया। जब उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ, तो उसके पिता उसे इलाज के लिए लंदन ले गए। लंबे उपचार के बाद जानसन ठीक तो हो गया, किंतु उसका चेहरा स्थायी रूप से ख़राब हो गया। यहाँ तक कि उसे अपनी एक आँख से भी हाथ धोना पड़ा। जानसन की ज़िंदगी का काफ़ी बेशकीमती हिस्सा बीमारी की भेंट चढ़ गया। इसके अतिरिक्त पैसों के अभाव ने भी उसकी शिक्षा को प्रभावित किया।

सन १७२८ में उन्नीस वर्ष की आयु में जानसन अपने एक अमीर मित्र द्वारा सहायता का आश्वासन पाकर ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में अध्ययन हेतु जा पहुँचा। किंतु मित्र द्वारा सहायता नहीं दिए जाने के कारण जानसन को ऑक्सफ़ोर्ड से बिना स्नातक की उपाधि लिए वापस लौटना पड़ा।

लिवफ़ील्ड लौटने के पश्चात आजीविका की समस्या जानसन के सामने मुँह बाये खड़ी थी। उसने सन १७३६ में एडियल में एक स्कूल की शुरुआत की। लेकिन उसे मात्र तीन छात्र मिल पाए। अध्यापकीय जीवन से जानसन को भले ही आर्थिक लाभ न हुआ हो, मगर उसे अपने तीन विद्यार्थियों में से एक डेविड गैरिक के रूप में अच्छा सहयोगी प्राप्त हुआ। यह वही गैरिक था, जो बाद में विश्व-विख्यात अभिनेता बना।

स्कूल < की असफलता के बाद जानसन डेविड गैरिक को साथ लेकर लंदन चला आया। सन १७३८  में अत्यंत निर्धनता के बीच उसकी पहली पुस्तक 'लंदन एं पोएम इन-इमिटेशन ऑफ थर्ड सेटायर ऑफ जुनेबल' छपी, जिसे अच्छी लोकप्रियता तो मिली, मगर जानसन के लिए यह आर्थिक रूप से अधिक लाभप्रद नहीं हो सकी। सन १७४४ ई. में जानसन की दूसरी क़ृति 'लाइफ़ ऑफ रिचर्ड' बाज़ार में आई।

शब्दकोश निर्माण की घोषणा
लेखक बनना शायद जानसन का उद्देश्य नहीं था। वह तो जैसे किसी और ही काम के लिए दुनिया में आया था। उसके कल्पनाशील मस्तिष्क में सृजित होनेवाली योजना सन १७४७ में उसके द्वारा अंग्रेज़ी भाषा के शब्दकोष की घोषणा के रूप में सामने आई। इसके बाद तो सैमुएल जानसन बिलकुल समर्पण भाव से इस कार्य में जुट गया। लगातार आठ वर्षों तक वह शब्द संकलन के कार्य में जुटा रहा। वह रात-रात भर जागकर शब्दकोष तैयार करने में तल्लीन रहता। इस दौरान वह खाने-पीने की भी सुध भुला बैठा। इसी बीच सन १९५२ में अपनी पत्नी पार्टर के आकस्मिक निधन से जानसन को ज़बर्दस्त मानसिक आघात लगा। मगर उसने अपने शब्दकोष निर्माण के कार्य में शिथिलता न आने दी। अतः उसकी मेहनत रंग लाई और सन १७५५ में दुनिया का पहला शब्दकोष प्रकाशित हुआ। इस शब्दकोष ने जानसन को सचमुच अमर कर दिया।

शब्दकोष के कारण जानसन को इतनी अधिक लोकप्रियता अर्जित हुई कि शब्दकोष के बीस सालों बाद सन १७७५  में उसी ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय ने जानसन को ससम्मान 'डॉक्टर ऑफ लॉ' की मानद उपाधि से सम्मानित किया, जहाँ से तक़रीबन ५० साल पहले धन के अभाव में उसे बिना डिग्री के खाली हाथ लौटना पड़ा था। इस ज़िंदादिल मस्तमौला शख़्स ने साहित्य संसार को शब्दकोष की परिकल्पना के रूप में अनुपम तोहफ़ा दिया। सन १७८४ में ७७ वर्ष की अवस्था में सैमुएल जानसन हमेशा के लिए इस संसार से चल दिया।

१६ अप्रैल २००७

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