आज
28 मार्च 2007, रूस
की राजधानी मॉस्को में त्रिदिवसीय मॉस्को हिंदी
महोत्सव आरंभ हुआ। रूस में भारत के राजदूत श्री कंवल
सिब्बल ने मॉस्को हिंदी महोत्सव का उद्घाटन किया।
महोत्सव में रूस और उसके पड़ौसी देशों कज़ाकिस्तान,
बेलारूस, उक्रेन, ताजिकिस्तान, उजबेकिस्तान,
लिथुआनिआ आदि के लगभग सौ हिंदी विद्वान भाग ले रहे
हैं।
भारत के राजदूत
श्री कंवल सिब्बल ने अपने भाषण में कहा कि इस नई सदी में जब
पूरा विश्व एक गाँव के रूप में सिमट आया है, यह
ज़रूरी है कि हम एक दूसरे की संस्कृति को गहराई से
समझें। मॉस्को हिंदी महोत्सव इसी दिशा में एक नया
कदम है।
पिछले पचास वर्षों
से हिंदी से जुड़े वरिष्ठ साहित्यकार पद्मभूषण
येव्गेनी चेलिशेव इस अवसर पर बेहद भावुक हो गए और
उन्होंने कहा कि इतिहास चल रहा है, समय गुज़र रहा है,
हिंदी भी साथ-साथ बढ़ रही है। इसी हिंदी ने हमें यहाँ
इकट्ठा किया है। उन्होंने निराला, मुक्तिबोध,
नागार्जुन, पंत, बच्चन, श्रीकांत वर्मा, अज्ञेय जैसे
महारथी साहित्यकारों से जुड़े संस्मरण सुनाए।
मॉस्को
विश्वविद्यालय के एशियाई व अफ्रीकी अध्ययन संस्थान
के डीन प्रो. मिखाइल मेयर ने कहा कि आज जब रूस और
भारत के संबंध एक बार फिर अपने विकास के उच्च स्तर
पर पहुँच रहे हैं इस तरह के सम्मेलन का आयोजन एक सही
समय है।
हिंदी व्याकरण के रूसी आचार्य श्री ऑलेग उलत्सीफेरोव
ने बताया कि रूस में 1947 से हिंदी पढ़ाई जा रही है।
इस बीच में रूसी विद्वानों ने हिंदी के दस व्याकरण
लिखे हैं, जिनमें सॆ 5 भारत में प्रकाशित हुए हैं।
भारत से प्रो. वाई
लक्ष्मी प्रसाद, प्रो. अशोक चक्रधर, डॉ. विजय कुमार
मल्होत्रा, डॉ. विमलेश कांति वर्मा और मधु गोस्वामी
इस महोत्सव में भाग लेने गए हुए हैं।
रूसी साहित्य के प्रसिद्ध अनुवादक श्री मदनलाल मधु
को रूस आए पूरे पचास साल हो गए। पूरे सभागार ने इस
अवसर पर उनका अभिनंदन किया। कार्यक्रम के संयोजक
प्रो. सराजू ने बताया कि यह सम्मेलन तीन दिन तक
चलेगा और इसमें विदेशों में हिंदी शिक्षण पर
व्यवहारिक चर्चाएँ होंगी।
रूस स्थित भारत
मित्र समाज ने भारत के विदेश मंत्रालय और रूस स्थित
जवाहर लाल नेहरू सांस्कृतिक केंद्र, भारतीय दूतावास,
के साथ मिलकर इस महोत्सव का आयोजन किया है।
अनिल जनविजय
24 अप्रैल 2007