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हास्य व्यंग्य

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मैच फिक्सिंग के रि-मिक्स
- अविनाश वाचस्पति
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विश्व क्रिकेट का ग्लोबल माहौल है। सब कुछ क्रिकेटमय हो गया है। युवकों के बाल धोनीमय हो गए हैं। किसी ने टोपी, किसी ने बैट - सब कुछ कर लिया है सैट। इसी से बचने के लिए मोबाइल फोन पर आउटगोईंग काल की जा रही हैं बैन। पर इनकमिंग भी तो ख़तरनाक हो सकती है। क्रिकेट मैच के दौरान जिस प्रकार मैदान विज्ञापनों से सराबोर हो उठता है उसी प्रकार वर्तमान में हालत यह है कि खिलाड़ी खुद भी विज्ञापनों छपी शर्ट, पैंट, हैलमेट इत्यादि धरण कर लेता है। उसके इस हाल के लिए ज़िम्मेदार सिर्फ़ पैसे की ललक ही तो है जो उसे इस विज्ञापनबाज़ी के लिए प्रेरित करती है।

कुछ वर्ष पूर्व भारत की राजधानी दिल्ली की पुलिस ने समूचे विश्व के क्रिकेट दर्शकों को यह खोजकर सकते में डाल दिया कि क्रिकेट में जो हार-जीत आप देखते रहे हैं, वो सब नकली है, प्रायोजित है और सिर्फ़ पैसे के बल पर भी विश्व-स्तरीय खिलाड़ियों के खिलंदड़पन पर अंकुश लगा हुआ है तो सब हैरत से आँखें फाड़-फाड़ कर, कान खोल कर अपनी कयास लगा रहे हैं कि जब मैच होता था तो वास्तविकता क्या होती होगी। दिल्ली पुलिस को उसका हिस्सा नहीं मिला होगा, तभी यह जानकारी आम हुई, वगैरह. . .वगैरह. ..न.. .। पर कवि का मन कहाँ मानता है उड़ान भरने से। तो कवि के मन की उड़ान का चित्रहार आप भी देखो, खोल के दिल और दिमाग़ के दरवाज़े -

एक फिक्स क्रिकेट मैच का आयोजन चल रहा है। जीत सामने नज़र आ रही है। पर जो खिलाड़ी खेल रहा है उससे तय हो चुका है कि खेल तुम्हें हारा है, जीतने पर तुम्हारे हिस्से में सिर्फ़ दो लाख ही आएँगे और हम हारने पर पूरा एक खोखा दिलवाएँगे - खोखा मतलब एक करोड़। खिलाड़ी पूरी शिद्दत से जुटा हुआ है कि ज़ाहिर भी न हो और हार भी जाए कि अचानक अंतिम बॉल पर चौका लग जाता है। खिलाड़ी की चाहना यह नहीं थी, उससे ग़लती हो चुकी थी। पूरे 98 लाख का घाटा। खिलाड़ी का अंतर्मन रो ही तो उठा :
मैच के अंत में
लग गया चौका
खोया सुनहरा मौका
न लगता चौका
तो मिलता पूरा खोखा।

एक अन्य क्रिकेट मैच का आयोजन। फिर ऐसा ही हो गया। फिक्स किया गया कि आपने हारना है, सबके बैंक खातों में छह-छह लाख जमा कर दिए जाएँगे। पर स्थिति यहाँ भी उलट जाती है जब मैच के अंत में पहुँचते-पहुँचते हारने के स्थान पर ग़लती से लगा एक छक्का विरोधी टीम के छक्के छुड़ा देता है। पर दरअसल छक्के तो विजेता टीम के छूट चुके हैं। उसके सब खिलाड़ी चौकस रहे हैं जिससे खेल का रोमांच भी कम न होने पाए और जीत भी झोली से दूर छिटक जाए। जीतते हुए भी हारने की ओर बढ़ते कदम कि अचानक एक छक्का लग जाता है। सभी खिलाड़ियों का अंतस इस दुर्घटना के बाद बिलख उठता है :
मैच करके फिक्स
लगा गलती से सिक्स
तो छह पेटी हार गए
खाता भरने के
खाली सब वार गए।

इधर विश्व स्तर पर क्रिकेट मैचों में हार जीत की फिक्सिंग को लेकर खूब आलोचना हुई। निंदा की गई। पर मेरा मन फिक्सिंग को भी कला मानने को कर आया इसलिए मैंने फिक्सिंग को भी उचित ठहराया। आख़िर कोई तो हो जो खिलाड़ियों के दुख का साथी बने :
मैच फिक्सिंग को
जो बतलाते हैं गलत
उनकी बुद्धि पर
मुझको आता है तरस
खेलते हैं खिलाते हैं
हारते हैं जिताते हैं
हार कर भी देखो
अपार धन जुटाते हैं।

कवि मन उन दर्शकों की व्यथा से भी रू-ब-रू हो रहा है। जो दीवानों की तरह कार्यालयों में या कार्यालयों से छुट्टी लेकर मैच देखते रहे हैं और अपनी टीम के हारने का दोष अपने सिर ले लेते हैं कि न मैंने कार्यालय से छुट्टी लेकर घर पर बैठ कर मैच देखा होता, न हमारी टीम हारती। इससे तो ऑफ़िस में ही मोबाइल पर एफ.एम.पर स्कोर सुन लेता या मैसेज सेवा ले लेता। जबकि वास्तव में ऐसा कुछ नहीं है। जब पता चला कि खेल नहीं, धंधा हो रहा था, सीधा-सादा नहीं गोरखधंधा :
क्रिकेट खेल में हार जीत बन गई धंधा
करोड़ों खेल दीवानों को हर गई अंधा।
पर इंसानियत का तकाज़ा यही है और हमें मान ही लेना चाहिए कि इस समूचे प्रकरण में खेल भावना का खून हुआ है :
खेल भावना से
खेला ऐसा सट्टा
खेल जगत की
आबरू को लगा बट्टा।

खेल भावना के इस मर्डर के साथ-साथ यह हालात भी पैदा हुए कि क्रिकेट के प्रति दर्शकों के दीवानेपन का ग्राफ़ बेहद तेज़ी से गिरा। जबकि बाद में शेयर बाज़ार की तरह सँभला भी :
मैच फिक्सिंग का मायाजाल
बना खिलाड़ियों के जी का जंजाल
दर्शक अब सब कुछ रहा है खंगाल
क्रिकेट गेम हो गई दर्शकों से कंगाल।

और यदि ये मान लें कि क्रिकेट खेल खेला जा रहा है और विकेट गिर गया है तो :
क्रिकेट के खेल का
ऐसा गिरा है विकेट
नहीं मिलेंगे दर्शक
खूब हुई है फजीहत।

और अपने राजस्थान के वासी भी खिलाड़ियों के बचाव में उतर आए और मैच फिक्सिंग की प्रवृत्ति को जायज़ ठहराने लगे :
लगा के सट्टा
माल बटोरा मोट्टा
इज़्ज़त को लगे बट्टा
तो भी ना घाट्टा।

स्थितियाँ इसके बिल्कुल विपरीत भी रहीं कि जब मैच के आयोजन तक फिक्सिंग नहीं हो पाई और मजबूरी में मैच खेलना ही पड़ गया। जीतना या हारना कोई उपलब्धि नहीं रहा। इसे मन से या यों कहें कि लगन से खेलना नहीं कहा जा सकता। एक तरफ़ तो हारने पर भी धन के अंबार लग रहे हैं और दूसरी तरफ़ जीतने पर भी सिर्फ़ खाली वाह-वाही। इससे किसका पेट या यों कहें कि खाता भरता है बल्कि तनाव बढ़ता है :
क्रिकेट मैच फिक्सिंग में
बिना हुए फिक्स
खेलते रहे तनाव झेलते रहे
जीतने हारने का बना रहा रिस्क
नहीं किया था फिक्स
न लगे फोर न मारे सिक्स।

खूब याद होगा आपको कि एक विकेट कीपर ने इस पूरे प्रकरण में हो रही बदनामी से प्रायश्चित के लिए स्वीकार कर लिया था कि एक फिक्स मैच के दौरान मैंने पूरे प्रयत्न करते हुए भी विरोधी टीम के खिलाड़ी की कैच नहीं पकड़ी और दर्शकों को ज़रा-सा भी शक नहीं हुआ और उन्होंने कैच पकड़ने की चूक की भी भरपूर सराहना की। लेकिन खिलाड़ी सराहना के कहाँ भूखे, भूख-प्यास को सिर्फ़ मनी की है, अपना सपना मनी-मनी। उसके मुकाबले मिले कैश से किए ऐश से अधिक आनंद की अनुभूति हुई :
एक पूर्व विकेट कीपर ने
कलई दी खोल
अपनी गर्दन
विकेटों में दी घुसेड़
छोड़ी हमने कैच
जो हो गई कैश
उसी कैश से की हमने
जीवन भर ऐश।

और फिक्सिंग के क्षेत्र में पारंगत एक सट्टेबाज़ के विज्ञापनों के बड़े-बड़े होर्डिंग्स मैच के दौरान मैदानों में और टेलीविजन पर पेप्सी की तर्ज़ पर नज़र आने की पूरी संभावना है :
क्रिकेट में तो
सब माल बिकाऊ है
आपकी हार भी बिकेगी जनाब
फिक्सिंग करूँगा ऐसी लाजवाब।

ज़माना प्रतिस्पर्धा का है। दूसरे सट्टेबाज़ ने अपने विज्ञापन की कापी राइटिंग खिलाड़ियों को डराते हुए कुछ इस शैली में करवाई है। खिलाड़ियों का पूरा ध्यान चाहूँगा :
कर के फिक्स
नहीं रहेगा रिस्क
रेट फिक्स
रन ओनली सिक्स
जीत गए गर गलती से
तब तो ज़रूर होगी
टांय टांय फिस्स।

और खिलाड़ियों की मन:स्थिति का अनुमान तो लगाइए। फिक्स मैच के कप्तान का दिमाग़ किस कदर रीता रहता है और खाता लबालब। देखेंगे :
खाते में खोखा भरा रंग चढ़ गया
दिमाग़ से उनके टेंशन का भँवर उतर गया
बिना सोचे समझे बैट घुमा दिया
पहली बार में सैल्फ विकेट गिरवा लिया।

वैसे फिक्सिंग में कोई बुराई नहीं है। इसके बारे में चिंतन करते हुए एक दूर की कौड़ी निकाल लाया हूँ। जो खिलाड़ियों को उनकी शर्मिंदगी, यदि महसूस हो रही हो, से राहत दिलवाएगी :
वो भी क्या खेल
जिसमें न हो मेल
मेल को ही मानो
खेल का तेल
कहा तो गया है
तेल देखो
तेल की धर न देखो
बतर्ज़ आप मेल देखो
पर मेल से हो रही
रेलमपेल न देखो।

अब अवश्य ही सब पाठकों के मस्तिष्क में ज्ञान की नई रोशनी जगमगा उठी होगी। मेरी ही तरह आपकी भी छठी इंद्रिय फड़फड़ा रही होगी और मैच फिक्सिंग को बला की जगह एक कला मानने पर आप भी मजबूर हो गए होंगे। उसके लाभ भी तो अपरंपार हैं। कुछ प्रत्यक्ष तो कुछ परोक्ष :
मैच फिक्सिंग में हो गए जो फिक्स
जीवन में भर गए उनके कलर सिक्स
खाते का रंग निखर आया
उन्होंने टेंशन भी नहीं पाया
बिना सोचे समझे बैट चलाया
धन ही है अपना जिसे है पाया
नहीं बनाई सेंचुरी
न ही बने मैन ऑफ द मैच
पर डालर मिले इतने
कि ज़िंदगी गुज़र गई
पर गिन भी न सके।

तो आज के लिए छापकों से इतना ही फिक्स था। इससे आगे बढ़ना या पीछे हटना कितना जोखिम भरा हो सकता है, अब बतलाने की ज़रूरत नहीं रही है।

२४ अप्रैल २००७

 
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