पहला दृश्य
(नेपथ्य से स्वर)
गायंति देवा: किल गीतकानि धन्यास्तु ते भारतभूमि
भागे।
स्वर्गापवर्गास्पद मार्गभूते: भवंति भूय: पुरुषा: सुरत्वात्।।
(मंच पर सूत्रधार का प्रवेश)
सूत्रधार :- (नेपथ्य की ओर देखकर)
नटी!, कहाँ छिप गई हो आख़िर. . .इधर आओ न!
नटी :- (दूसरी ओर से प्रवेश करती है।)
आर्य!, मैं इधर हूँ,. . .आपके सामने।
सूत्रधार :- ओह! (घूमकर)
नटी!, पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में कहीं हम अपने देश के गौरवशाली अतीत को बिल्कुल
ही न भुला दें, इसलिए कोई मधुर गीत गाकर हमें सावधान करो।
नटी :- सत्य कह रहे हैं, आर्य! आज आपने अतीत से साक्षात्कार करने की अतीव
आवश्यकता है।. . .आर्यावर्त की महिमा को लक्ष्य कर एक गीत प्रस्तुत है। |