कोर्ट नंबर एक। बाहर-भीतर और
दिनों की अपेक्षा ज़्यादा भीड़। खूब चहल-पहल। आगे की चार-पाँच
पंक्तियों की कुर्सियाँ काले कोटधारियों से भरी हुई। अभी भी कई
वकील और दूसरे लोग भीतर आते और बीच-बीच में खाली कुर्सियों पर
बैठ जाते। कई लोग कोर्ट हाल के दरवाज़े के बाहर इस चाह में
खड़े थे कि उन्हें भी भीतर जाने का मौका मिल जाए। सभी के मन
में आज के मुक़द्दमे को सुनने की तीव्र जिज्ञासा थी। अभिसाक्षी
और प्रतिवादी पक्ष के वकील अपनी-अपनी जगह पर बैठे बहस की
तैयारी में मग्न दीख रहे थे।
जज महोदय जैसे ही भीतर पधारे
हॉल में बैठे सभी वकील और दूसरे लोग खड़े हो गए। न्यायगद्दी पर
विराजमान होते हुए उन्होंने सभी का अभिवादन स्वीकार किया। उनका
व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक था। सिर के अधिकतर बाल काले थे।
चेहरे पर ग़ज़ब का तेज। हल्की मूँछें। आँखों पर नज़र का चश्मा
उनके व्यक्तित्व को और भी निखार रहा था। दोनों हाथों की
उँगलियों में कई सोने की अंगूठियाँ जिनमें ग्रह निवारण के
कीमती नग जिनसे साफ़ लगता कि जज साहब अपने भाग्य के प्रति कुछ
अतिरिक्त रूप से सतर्क रहते हैं। उम्र पचास के आसपास पर कोई
अनुमान लगाने लगे तो चालीस से एक वर्ष भी ज़्यादा न बता पाएँ। रीडर ने मामले की फ़ाइल उनके
सामने प्रस्तुत की। जैसे ही उन्होंने केस का टाइटल पढ़ा चेहरे
के पूर्व भाव तबदील होने लगे। मानो किसी विशेष स्वाद से चेहरे
पर रंगत आ गई हो।
|