मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


फुलवारी —मौसम की जानकारी

बर्फ़ क्यों गिरती है?

जब बादल का तापमान हिमांक से नीचे पहुँच जाता है तब वहाँ नन्हें-नन्हें  हिमकण बनने लगते हैं। जब ये कण बादल से नीचे की ओर गिरते हैं तो वे एक दूसरे से टकराते हैं और एक दूसरे में जुड़ जाते हैं। इस प्रकार इनका आकार बड़ा होने लगता हैं। जितने ज़्यादा हिमकण आपस में जुड़ते हैं हिमकण का आकार उतना ही बड़ा होता जाता हैं। पृथ्वी पर वे छोटे छोटे रुई के फाहों के रूप में झरने लगते हैं। इन्हें हिमपर्त कहते हैं।

ये हिमपर्त षटकोणीय होते हैं और कोई भी दो हिमपर्त आकार में एक से नहीं होते। काले चित्र में हिमपर्त के कुछ आकार दिखाए गए हैं। हिमकण प्रकाश को प्रतिबिम्बित करते हैं, इसलिए ये सफ़ेद दिखाई देते हैं। अगर हवा का तापमान हिमांक से नीचे न हो तो ये हिमकण गिरते समय पिघल जाते हैं। केवल सर्दी होने से बर्फ नहीं गिरती है। इसके लिए हवा में पानी के कण होना ज़रूरी है।

गिरी हुई बर्फ कहीं बहुत हल्की तो कहीं बहुत गहरी भी हो सकती है। क्यों कि बर्फ़ हवा से उड़ती हुई इधर-उधर जाती है और एक जगह पर इकट्ठा हो जाती है।

गिरती हुई बर्फ़ हमेशा नर्म नहीं होती। कभी कभी यह छोटे-छोटे पत्थरों के रूप में भी गिरती है। इन पत्थरों को ओले कहते हैं। इनमें बर्फ़ की कई सतहें होती हैं। अभी तक सबसे बड़ा ओला १.२ किलो का पाया गया है।

उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव पर बर्फ़ के पहाड़ हैं। इन पहाड़ों से बर्फ़ के बड़े बड़े टुकड़े अलग होकर तैरते हुए आगे बढ़ते हैं। इन टुकड़ों को हिमशिला कहते हैं। बर्फ़ पानी पर इसलिए तैरती है क्यों कि वह पानी से हल्की होती है।

 १ जुलाई २००७

. . . . . . .
 

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।