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हर बार जय भास्कर के साथ वही हुआ था। जब-जब उसने किसी
लड़की के आगे शादी का प्रस्ताव रखा था, लड़की ने उसे साफ़-साफ़ मना नही किया था,
शालीनता बरतते हुए इतना कहा था, "क्या हम दोस्त नहीं रह सकते?"
"दोस्त! क्या मतलब है आपका? " जय का हँसमुख चमकदार चेहरा फ़ौरन अपनी चमक खो
देता, आँखों की पुतलियाँ ऊपर-नीचे दायें-बाये घूमने लगतीं, एक हाथ की उंगलियों के
पोर मेज़ पर बेआवाज़ उल्टी-सीधी थाप देने लगते, और दूसरे हाथ की उंगलियों से वह
अपने माथे पर गिर आये बालों को पीछे हटाने लगता।
पहली बार जब उसके साथ ऐसा वाकया घटा था उसने चेहरे पर किसी तरह बनावटी-सी हसी बनाए रखी थी, और कहा था, "धन्यवाद, जो आपने यह नहीं कहा, क्या हम भाई-बहन नहीं बन
सकते? अगर आप यह कह देतीं, तो फिर अपने भाई से यह भी आग्रह करतीं कि बहन के लिए
कोई अच्छा लड़का भी सजेस्ट कीजिए।"
वह अट्ठाइस साल का था, विवाह के लिए उपयुक्त आयु। जहाँ तक उसकी पढ़ाई-लिखाई और
पारिवार का प्रश्न था, उसमें भी ऐसा कुछ नहीं था कि कोई लड़की उससे शादी करने से
इंकार करती। वह पढ़ा-लिखा था। उसने हावर्ड से एम.एससी. की डिग्री ली थी, वह भी
एरोनॉटिक्स में। अभी वह स्कूल में ही था कि उसका एक प्रोजेक्ट प्रयोग के लिए
अंतरिक्ष-यान कोलंबिया में भेजा गया था।
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