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जिस दिन
कांता रात में रिक्शा खींचने लगा था, उस दिन से
उसे कुछ बचत होने लगी थी। दसबीस रूपये
काटकपट कर डाकखाने में जमा करने लगा था। छनिया
भी मुहल्ले के एक सेठ के यहां कपड़ा धोने का काम
करने लगी थी। उसे महीने में ढाई सौ रूपये और
दोपहर का खाना मिलता था। छनिया इस पगार में से
दो सौ रूपये कांता को देती थी जिसे वह डाकखाने
में डाल देता था। इस बचत से कांता और छनिया
दोनों ही
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