श्री राम और रावण के बीच काँटे की टक्कर हुई। काफ़ी समय तक यह अनुमान लगाना कठिन था
कि इस रण में कौन विजयी होगा। एक बड़े रोमांचक मुकाबले में अंतत: विजय श्री राम की
हुई। भारतवर्ष के सभी कवियों और गीतकारों ने युद्ध का अदभुत वर्णन किया है। विजेता
के पक्ष में तथा हारने वाले के विपक्ष में कई समाचार पत्रों में लेख भी छपे। लोगों
ने रामचंद्र की विजय को एक ऐसी विजय के रूप में परिभाषित किया जिससे आने वाले समय
की गति का निर्धारण होना था। यह अंधकार पर उजाले की विजय थी! यह अधर्म पर धर्म की
विजय थी! असुरों पर सुरों की विजय थी! पाकिस्तान पर भारत की विजय टाईप थी।
लंका देश के कोलंबो नामक ग्राम में एक ग़रीब किसान
वास करता था। उसके पास दो बीघा ज़मीन थी जिसपर वह खेती करता था। सरकार को कर देने
के बाद उसके पास इतना बच जाता था कि वर्ष भर उसे भोजन के लिए किसी के सामने हाथ
नहीं फैलाना पड़ता। इधर इस युद्ध के कारण रावण सरकार ने एक सुरक्षा टैक्स अलग से
लगा दिया था जिसकी वजह से किसान की हालत ख़राब थी। युद्ध समाप्त हुआ, रावण के हाथ
से सत्ता छिटक कर विभीषण के हाथों में आ गई। विभीषण ने युद्ध से पहले ही श्री राम
से गठबंधन कर लिया था। यह तय हुआ था कि लंका का राजा विभीषण बनेगा और समुद्र सेतु
पर गुज़रने वाले वाहनों से जो टैक्स मिलेगा वह अयोध्या भेजा जाएगा। किसान को ऐसा
लगता था कि विभीषण के राजा बनते ही सभी समस्याओं का निदान हो जाएगा। विभीषण के समर्थक गाँव-गाँव घूमकर विभीषण के गुणों का
गुणगान करते रहते थे। किसान ने ऐसे ही किसी से सुना था कि एक बार विभीषण राजा बन
जाए तो उसके गाँव में स्कूल, अस्पताल और पक्की सड़क भी बन जाएगी। गाँव के बाहर जो
शुगर मिल, मिल मालिकों एवं रावण सरकार के बीच गन्ने को समर्थन मूल्य के मुद्दे की वजह
से पिछले कई बरसों से बंद चल रही थी, वह चालू हो जाएगी। किसान को लगता था कि एक बार
मिल चल पड़े तो शायद उसका आवारा लड़का भी वहाँ नौकरी पा जाए तथा भले मानुस का जीवन
बिताए। मन ही मन वह भी यह चाहने लगा था कि युद्ध में श्रीराम की ही विजय हो।
जब विभीषण ने सत्ता सँभाली तो लंका की हालत दयनीय
थी। एक तो हनुमान ने नगर भर को अग्नि के सुपुर्द करके बड़े-बड़े भवनों एवं
अट्टालिकाओं को ध्वस्त कर दिया था वहीं
दूसरी ओर इस असमय लड़ाई से राज्य की अर्थव्यवस्था की कमर भी टूट गई थी। विभीषण के
सामने रावण के अनेक वर्षों के शासन में हुई गड़बड़ियों का पता लगाने की चुनौती भी
थी। लंका में विभीषण राज्य के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए यह भी आवश्यक था कि
राज्य की सेना को मज़बूत किया जाए। वानरों के हाथों मिली पराजय से लंका के वीर भीतर
तक टूट गए थे। उनके मनोबल को एक बार पुन: ऊँचा उठाने के लिए नए अस्त्रों-शस्त्रों
एवं तकनीक का निर्यात भी आवश्यक था। मंत्रिमंडल का गठन, समाज के सभी वर्गों को उनका
स्थान दिलाना, बेरोज़गारी की समस्या को सुलझाना, कानून व्यवस्था को सुधारना,
जगह-जगह श्रीराम, लक्ष्मण, सीता एवं हनुमान जी की मूर्तियों का अनावरण करना,
नगरों एवं विश्वविद्यालयों के नाम बदलना, जनता के मन से कुंभकरण एवं रावण के आतंक
को मिटाना आदि कार्य भी विभीषण की प्रमाणित सूची में सबसे आगे थे।
इन सभी कार्यों के लिए धन चाहिए था। सुग्रीव
पार्टी के वानर तो सब लूट कर ही गए थे, श्री राम भी पुष्पक विमान अपने साथ ले गए
नहीं तो उसी को राजा महाराजाओं को किराए
पर देकर कुछ कमाई की जा सकती थी। सागर सेतु से एकत्रित होने वाली चुंगी भी अयोध्या
भेजनी पड़ती थी। नल और नील युद्ध के बाद यहीं रुककर पुल की व्यवस्था देख रहे थे
तथा उनके रहते इस खेल में धांधली संभव नहीं थी। रावण की वजह से जो हफ़्ता वसूली
होती थी वह भी अब समाप्त हो गई थी। तो कुल मिलाकर माहौल कुछ ऐसा था कि धन की
आवश्यकता थी और धनोत्पादन के सभी मार्ग एक-एक कर के सिमटते जा रहे थे।
ऐसे में विभीषण के सलाहकारों ने आम जनता पर
अतिरिक्त कर लगा कर इस समस्या से निपटने का प्लान बनाया। जनता पर बिजली, पानी, घर,
क्रय-विक्रय तथा इन्कम टैक्स तो पहले से ही था सुरक्षा टैक्स को भी बरकरार रखा गया
तथा अब कुछ नए टैक्स भी इस लिस्ट में
शामिल हो गए। किसान एवं आम जनता सरकार के इस फ़ैसले से ख़ासी क्षुब्ध हुई। किसान को
ऐसा लगा मानो उसके साथ विश्वासघात हुआ हो। गाँव के जितने लफंगे थे वे अब भी आवारा
घूम रहे थे, ना तो मिल खुल रही थी, ना सड़क बन रही थी। इतना ज़रूर हुआ था कि सरपंच
जी का भवन अब दुमंज़िला हो रहा था तथा उनका पुत्र मर्सडीज़ नामक रथ विदेश से ले आया
था। किसान के लिए रावण राज और विभीषण की सरकार में कोई फ़र्क नहीं था।
16 अक्तूबर 2006
|