|  | वह बड़ा उदास 
					था। थोड़ी देर पहले ही उसे तार मिला था उसके भतीजे की मृत्यु हो 
					गई थी। जवान भतीजा खूब तंदुरुस्त, अच्छा ऊँचा पूरा नाक के नीचे 
					स्याह रेखाएँ बहुत स्पष्ट दिखने लगीं थीं। डूब कर मर गया। ऐसी 
					कोई बात तो थी नहीं कि जान–बूझ कर या किसी मजबूरी की वजह से 
					कुछ कर बैठा हो। बड़ी मस्त तबियत का था। किसे मालूम था जाकर 
					वापस नहीं लौटेगा? लौटी उसकी निष्प्राण देह! माँ–बाप कैसे सहन 
					कर पायें होंगे! छोटे भाई–बहनों को कैसा लग रहा होगा! 
 उसे सहसा विश्वास नहीं 
					हुआ कि हितेन मर गया है। अभी कुछ दिन पहले ही तो उसके पास आया 
					था। एक हफ्ते साथ–साथ रहे थे दोनों। उम्र में भी तो कोई ख़ास 
					अंतर नहीं था। घर में कोई उसके सबसे निकट था तो बस हितेन ही। 
					भतीजे से अधिक दोस्त था वह उसका। उसे बार–बार लगता अभी दरवाज़ा 
					खुलेगा और बैग लिए हितेन कमरे में घुस आएगा, खूब ज़ोर–ज़ोर से 
					हँसकर सारा कमरा गुंजा देगा। नहीं, वह अब कभी नहीं आएगा!
 
 वह धीरे–धीरे उठा, रोज़मर्रा के काम तो होंगे ही, देह के धर्म 
					तो निभाने ही पड़ेंगे! बिना किसी उत्साह के उसने कपड़े बदले। चाय 
					भी तो नहीं पी थी अभी, पर उसका मन नहीं हुआ कि चाय बनाए और 
					पिए। उदासी और बढ़ गई। रेलवे टाइम–टेबल उठा कर देखा – पौने बारह 
					बजे मिलेगी पहली गाड़ी तब तक क्या किया जाय? खाना खा ले? वहां 
					तो कहीं आधी रात को पहुँचेगा।
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