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पिछले
सप्ताह
हास्य
व्यंग्य में
नीरज त्रिपाठी का मज़ेदार किस्सा
हमारे पतलू
भाई
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प्रौद्योगिकी
में
रविशंकर श्रीवास्तव से जानकारी
कंप्यूटर पर गीतसंगीत :
सहगल
से सावंत तक
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साहित्यिक
निबंध में
निर्मला जोशी याद कर रही
हैं मंच के हंस
बलबीर
सिंह रंग को
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साहित्य
समाचार में
अभिनव शुक्ल और अलका प्रमोद के
दो
नये संग्रहों का विमोचन
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कहानियों में
यू एस ए से इला प्रसाद की कहानी
सेल
सुमि
ग़ौर से अख़बार के पन्ने पलट रही है। इस सबडिविजन
में सिर्फ़ वे ही हैं जो अख़बार ख़रीदते हैं वरना
अख़बार ख़रीदने में यहां लोग पैसे खर्च नहीं करतेे।
जब कोई बड़ी सेल आती है तो अलस्सुबह गैस स्टेशन
पर जाकर कूपन उठा लाते हैं। आख़िर कूपन ही तो चाहिए न।
सेल के कूपन। नहीं तो फिर अख़बार की ज़रूरत क्या है?
सुमि को भी लगता है लोग ठीक ही करते हैं। किसे वक्त
है अख़बार पढ़ने का! रवीश को वह बारबार टोकती भी
है, "सारा समय तो ऑफ़िस में बीत जाता है,
कभी तो पढ़ते नहीं। इंटरनेट पर ख़बरें देख लेते हो। टी
.वी .है ही तो फिर घर में कचरा जमा करने की क्या
ज़रूरत है?" लेकिन दो कूपन भी उपयोग में आए तो अख़बार की कीमत अदा हो
गई न।
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इस
सप्ताह
कहानियों में
भारत से मुशर्रफ़ आलम ज़ौक़ी की कहानी
धूप के मुसाफ़िर
सुबह होते
ही लगता है जैसे बातों के घने जंगल में घूम रहे
हों। मई, जून की गर्मी, झुलसाती, चिलचिलाती
तेज़ धूप। सर से पैर तक आग के शोले बदन से उठते
हुए, दिमाग़ गर्मी से फटता हुआ . . .इतनी तेज़ घूप,
अत्याधिक ताप, उफ़ ठहर जाइए जनाब। अब जो मैं
सुनाने जा रहा हूं, संभव है आप उसे सिरे से कहानी
ही न मानें। मत मानिए आप की मर्ज़ी। लेकिन पूरी
कहानी सुन लेने के बाद यह ज़रूर बताइएगा कि फिर
कहानी होती क्या है। उसी मई जून के महीने, दोपहर की
तेज़ झुलसाती धूप में यह दृश्य सामने आया दृश्य
ही कहना ठीक होगा इस विश्वास के साथ कि ऐसे
हज़ारों दृश्य आप ने भी सैंकड़ों बार देखे होंगे।
और उस दृश्य को सिरे से वाक्या भी नहीं कहा जा
सकता।
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हास्य
व्यंग्य में
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे का
व्यंग्य
फैशन
शो में गिरते परिधान
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प्रकृति
में
गुरमीत बेदी बता रहे हैं
कांटों में खिलता सौंदर्य
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नाटक
में
दो किस्तों में मिलिन्द तिखे
का नाटक
फिर
दीप जलेगा
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फुलवारी
में
ललित
कुमार से जानकारी की बातें
अमेरिका,
कैनेडा, मेक्सिको
सप्ताह का
विचार
सपने
हमेशा सच नहीं होते पर
ज़िन्दगी तो उम्मीद पर टिकी होती
हैं।
रविकिरण शास्त्री
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इस
माह के कवि में
प्रेम
शंकर रघुवंशी,
साथ ही कविताएं, दोहे और दिशांतर स्तंभों ढेर सी नयी
रचनाएं
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° पिछले अंकों
से °
कहानियों में
अब
कहां जाओगेए असफल
जेबकतरेभूपेन्द्र कुमार
दवे
टेढ़ी उंगली और
घीजयनंदन
एक दो तीन मथुरा कलौनी
हिजड़ाकादंबरी मेहरा
राजा
हरदौलप्रेमचंद
°
हास्य
व्यंग्य में
इतने पदक
कैसेƖगुरमीत बेदी
ऑपरेशन
मंजनू . . .महेशचंद्र द्विवेदी
पहली
अप्रैल का दिनअनूप कुमार शुक्ल
अकादमीअनुदानऔर लेखकसंजय
ग्रोवर
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विज्ञान
वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप की पड़ताल
डी
एन ए फिंगर प्रिंटिंग:
पहचान की सबसे विश्वसनीय विधा
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आज
सिरहाने
अलका प्रमोद का कहानी संग्रह
सच
क्या था
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मंच
मचान में
अशोक चक्रधर बता रहे हैं
कवि
अनंत कविकष्ट अनंता
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संस्मरण
में
रवींद्र स्वप्निल प्रजापति का आलेख
मनोहर
श्याम जोशी
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महावीरजयंती
के अवसर पर
हनुमान सरावगी का लेख
लोकउद्धारक
महावीर
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चिठ्ठापत्री
में
चिठ्ठापंडित की पैनी नज़र
मार्च
महीने के चिठ्ठों पर
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