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						सर्वोदय मैटर्निटी होम के 
						कमरा नंबर आठ के सामने लोगों की भीड़ लगी हुई है। भीड़ का 
						कारण अस्पताल के कर्मचारियों तथा उस कमरे में भर्ती नवजात 
						शिशु की माँ सरला के बीच चल रही तू–तू मैं–मैं की 
						ऊँची–ऊँची आवाजें। इस भीड़ में जरा आप भी घुसें तो माजरा 
						समझ में आ जाएगा। सरला को शक ही नहीं,पूरा विश्वास है कि 
						अस्पताल के कर्मचारियों की मिली भगत के कारण उसका बच्चा 
						बदल गया है। कर्मचारी इससे लगातार इंकार कर रहे हैं। भला 
						बताइए, सच कैसे सामाने आए? या तो उन कर्मचारियों की बात सच 
						मानी जाए या फिर सरला की।
                        
						किसी बड़े रेलवे स्टेशन के 
						प्लेटफॉर्म पर ट्रेन के आने का समय। प्लेटफार्म लोगों से 
						खचा–खच भरा हुआ। अचानक एक बड़ा धमाका और सैकड़ों हता–हत। 
						चारों तरफ चीख–पुकार अौर अफरा–तफरी। धमाका इतना शक्तिशाली 
						था कि उसके आस–पास के लोगों के शवों के चीथड़े उड़ गए थे। 
						कइयों के छिन्न–भिन्न अंग एक दूसरे से गुथ गए थे। अधिकांश 
						शवों को पहचानना भी मुश्किल था। शवों की सही पहचान कर उनके 
						रिश्तेदारों को सौंपना भी पुलिस के लिये एक जटिल समस्या थी।
                        
						रात के अंधेरे में किसी 
						सुनसान जगह पर अकेले जा रही किसी महिला का बलात्कार और 
						उसके बाद निर्ममता से की गई हत्या। अपराधी या अपराधियों का 
						कोई अता–पता नहीं। 
                        
						अनैतिक प्रेम संबंध के कारण 
						जन्में बच्चे का पिता होने से प्रेमी का इंकार। परिणाम, 
						महिला एवं उस बच्चे का भविष्य अंधकारमय। कैसे पता किया जाय 
						कि उस बच्चे का असली पिता कौन है?  
					यही क्यों, ऐसी तमाम परिस्थतियाँ 
					होती हैं, जहाँ सच्चाई की तह तक जाने के लिये पहचान की 
					विश्वसनीय तकनीक अति आवश्यक होती है। अपराधियों तक पहुँचने के 
					लिये संदिग्ध लोंगों से पूछ–ताछ, घटना से संबंधित सबूतों की 
					जाँच–परख, रक्त के नमूनों की जाँच या फिर फिंगर प्रिंट्स के 
					द्वारा अपराधी तक पहुँचने की जटिल–एवं श्रम–साध्य लेकिन 
					अनिश्चित विधाएँ, अब तक के परंपरागत तरीके थे। ऐसे में डीएनए 
					फिंगर प्रिंटिंग की विधा इस क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम के 
					रूप में सामने आई है। इस विधा द्वारा बच्चे तथा माता–पिता के 
					संबंधों की संदिग्धता को दूर करने से ले कर अपराधियों की सटीक 
					पहचान, सभी कुछ आसानी से किया जा सकता है।  
					पहली बात, डीएनए फिंगर प्रिंटिंग 
					के नाम से लोकप्रिय इस विधा का फिंगर अर्थात् उँगलियों से कुछ 
					भी लेना–देना नहीं है। चूँकि उँगलियों के छाप का उपयोग 
					व्यक्ति, विशेषकर अपराधियों, की पहचान के रूप में बहुत पहले से 
					किया जाता रहा है, अतः उसी तर्ज पर इस विधा को भी ‘डीएनए फिंगर 
					प्रिटिंग’ का नाम दे दिया गया। वास्तव में इसे केवल ‘डीएनए 
					टाइपिंग’ या फिर ‘डीएनए प्रोफाइलिंग’ ही कहना चाहिए। १९८४ में 
					ब्रिटिश जेनेटिस्ट एलेक जेफ्रिज़ एवं उनके सहयोगियों द्वारा 
					विकसित इस विधा की सहायता से किसी भी व्यक्ति की पहचान या फिर 
					उसके माता–पिता कौन हैं, जैसे तथ्यों की पुष्टि उनके शरीर की 
					किसी भी कोशिका में पाए जाने वाले ‘वैरिएबल नंबर टैंडेम 
					रीपीट्स’ (जिन्हें संक्षेप तथा लोकप्रिय रूप में 
					‘वीएनटीआर्-स’ के नाम से जाना जाता है) द्वारा आसानी एवं 
					विश्वसनीय रूप से की जा सकती है। सुविधा के लिये आगे से हम भी 
					इन्हें ‘वीएनटीआर्-स’ के नाम से ही पुकारेंगे।  
					इस संदर्भ में एक और मजेदार बात 
					— एलेक जफ्रिज़ को स्वयं नहीं अनुमान था कि उनके द्वारा विकसित 
					इस विधा का उपयोग व्यक्ति की पहचान करने के लिये भी किया जा 
					सकता है। उन्होंने तो इसका विकास इस आशा से किया था कि इसका 
					उपयोग अनुवाँशिक रोगों की पहचान तथा उनके उपचार में सहायक 
					होगा।  
 जिस प्रकार दो व्यक्तियों के फिंगर प्रिंट्स शत प्रतिशत एक 
					जैसे नहीं होते, उसी प्रकार दो व्यक्तियों के ‘वीएनटीआर्स’ के 
					भी एक जैसे होने की संभावना लगभग न के बराबर है। एक ही निषेचित 
					डिंब से जन्में जुड़वाँ बच्चे इसके अपवाद हो सकते हैं या फिर 
					करोड़ों की जनसंख्या में अपवाद स्वरूप एक–आध केस ही ऐसे मिल 
					सकते हैं, जिनके वीएनटीआर्स शत–प्रतिशत मेल खा जाएँ। आजकल 
					फोरेंसिक साइंस में इस विधा का उपयोग बढ़ता जा रहा है। कारण, 
					फिंगर प्रिंट्स की तुलना में इस विधा में झंझट कम हैं, 
					सुनिश्चित परिणाम मिलता है, साथ ही इसका दायरा भी बड़ा है। इसके 
					लिये संदिग्ध व्यक्ति के रक्त के छीटों, बाल के टुकड़ों या फिर 
					खरोंची हुई त्वचा अथवा वीर्य के धब्बों, यहाँ तक कि लार से 
					प्राप्त मात्र कुछ कोशिकाएँ ही जाँच के लिये काफी हैं।
 
 इस विधा को विस्तार से समझने के लिये आवश्यक है कि सबसे 
					पहले हम यह जान लें कि ऊपर की पंक्तियों में बार–बार उल्लिखित 
					‘वीएनटीआर्स’ आखिर हैं क्या? इन्हें समझने के लिये सबसे पहले 
					कोशिका, उसके केंद्रक, केंद्रक में अवस्थित गुणसूत्रों तथा 
					उनके निर्माण में प्रयुक्त मुख्य रसायन डीएनए के बारे में जान 
					लेना आवश्यक है। बैक्टीरिया जैसे कुछ आदि जीवों को छोड़ सभी 
					जीवों की कोशिका मे एक केंद्रक अवश्य होता है। इस केंद्रक में 
					गुणसूत्र पाए जाते हैं। इन गुणसूत्रों की संख्या एक प्रजाति के 
					सभी जीवों की सभी कोशिकाओं निश्चित होती है। यथा, किसी भी 
					मनुष्य की किसी भी कोशिका में इन गुणसूत्रों के २३ जोड़े पाए 
					जाते हैं। मनुष्य के इन २३ जोड़े गुणसुत्रों में १५ लाख जीन्स 
					के जोड़े पाए जाते हैं। ये जीन्स वास्तव में गुणसूत्रों में 
					अवस्थित डीएनए के दुहरे कुंडलाकार धागे के छोटे–छोटे अंश होते 
					हैं तथा संरचना में एडेनिन (A), गुआनिन(G), 
					साइटोसिन(C) तथा थायमिन(T) जैसे नाइट्रोजन बेसेज़ के 
					क्रमवार विन्यास के आधार पर एक दूसरे से अलग–अलग होते हैं। 
					संरचना में यही भिन्नता इन जीन्स द्वारा वहन किये जाने वाले 
					विभिन्न अनुवाँशिक लक्षणों का आधार है। एक जीन में पाए जाने 
					वाले सभी नाइट्रोजन बेसेज़ का क्रमवार विन्यास यह तय करता है कि 
					उसके द्वारा संश्लेषित 
					प्रोटीन के अणु में एमीनो एसिड्स का क्रम क्या होगा। इन जीन्स 
					की सहायता से नाना पकार के संश्लेष्ति प्रोटीन्स ही 
					परोक्ष–अपरोक्ष रूप से कोशिका की संरचना तथा कार्य की का 
					निर्धारण करते हैं।
 
 ऐसा भी नहीं है कि एक गुणसूत्र में पाया जाने वाले डीएनए के सभी अंश 
					अर्थपूर्ण जीन्स की ही भूमिका निभाते हैं और प्रोटीन्स के 
					संश्लेषण में ही सहायक होते हैं। इन अर्थपूर्ण अंशों के 
					बीच–बीच में ऐसे अंश भी होते हैं जो इन अर्थपूर्ण जीन्स के 
					क्रिया–कलापों पर नियंत्रण रखने का काम करते हैं। इनके 
					अतिरिक्त कुछ ऐसे भी अर्थहीन अंश होते है, जिनका कोई मतलब नहीं 
					होता। इन्हीं बेमतलब के अंशों में कुछ ऐसे अंश भी होते हैं, 
					जहाँ ये नाइट्रोजन बेसेज़ बार–बार दुहराए जाते हैं। उदाहरण के 
					लिये-
						A-G-A-G-A-G-A-G-A-G। ऐसे दुहराए गए 
					नाइट्रोजन बेसेज़ से बने डीएनए के अंश की संरचना में ९ से ८० 
					बार नाइट्रोजन बेसेज़ का उपयोग हो सकता है। डीएनए के ऐसे ही 
					अंशों को ‘वीएनटीआर्स’ का नाम दिया गया है। ऐसे डीएनए 
					को पॉलीमॉर्फिक डीएनए भी कहा जाता है तथा डीएनए के इन अंशों को 
					मिनीसैटेलाइट्स की संज्ञा दी गई है।
 
 किसी व्यक्ति की सुनिश्चित पहचान के लिये वास्तव में उसके 
					पूरे जीनोम के नाइट्रोजन बेस शृंखला का अध्ययन ही 
					सर्वश्रेष्ठ तरीका है, लेकिन लगभग तीन सौ करोड़ नाइट्रोजन बेसेज़ 
					के जोडों का अध्ययन एक जटिल, श्रमसाध्य एवं समय लेने वाला 
					कार्य हैं। ऐसे में इन वीएनटीआर्स को शेष डीएनए से अलग कर 
					उन्हें व्यक्ति के पहचान के रूप में इस्तेमाल कर लेने की विधा 
					का विकास कर एलेक जेफ्रीज़ ने हमारे समक्ष एक नया, बेहतर एवं 
					सुनिश्चित विकल्प प्रस्तुत कर दिया है। आइए, अब यह जानने का 
					प्रयास करें कि यह विधा क्या है।
 
 इस विधा का पहला कदम 
					है, प्राप्त नमूने से डीएनए का निष्कर्षण। इसके लिये 
					तरह–तरह के तरीके अपनाए जाते हैं और यह नमूने के आधार पर तय 
					किया जाता है। सामान्य रूप से यह कार्य डिटर्जेंट, एंज़ाइम्स 
					तथा एल्कोहल की मदद से किया जाता है। डीएनए फिंगर प्रिटिंग के 
					लिये शुरूआती दौर में ‘रेस्ट्रिक्शन फ्रैग्मेंट लेंथ 
					पॉलीमॉफ़िज़्म’ (RFLP) जैसी विश्लेषण–तकनीक का उपयोग किया 
					गया। इस विश्लेषण विधा में विशिष्ट रेस्ट्रिक्शन एंज़ाइम्स की 
					सहायता से डीएनए के माइक्रोसैटेलाइट क्षेत्रों से वीएनटीआर्स 
					के अंशों को काट कर अलग किया जाता है, जिन्हें RFLPs का नाम 
					दिया गया। तत्पश्चात इन RFLPs को ‘एगरोज़ जेल (Gel) 
					एलेक्ट्रोफोरेसिस’ द्वारा पट्टियों के रूप में अलग–अलग किया 
					जाता है। डीएनए की इन अलग की गई पट्टियों को क्षारीय घोल के 
					ट्रे में रखा जाता है ताकि इन RFLPs डीएनए के दुहरे सूत्र 
					अलग–अलग हो जाएँ। इसके बाद ‘सदर्न ब्लॉटिंग’ जैसी विशेष तकनीक 
					द्वारा RFLPs के इकहरे सूत्रों को जेल (Gel) वाली ट्रे से 
					लवणों के घोल से भरी एक दूसरी ट्रे में जेल के ऊपर फैलाई गई 
					ट्राईनाइट्रोसेल्युलोज़ अथवा नाइलॉन की झिल्ली पर 
					स्थानांतरित किया जाता है।
 
 अगले कदम के रूप में इस टे्र में पहले 
					से ज्ञात विशेष नाइट्रोजन शृंखला वाले रेडियो एक्टिव डीएनए 
					के इकहरे सूत्रों (probes) को छोड़ दिया जाता है। ऐसे तैयार 
					सूत्र आज कल बायोकेमिकल्स की आपूर्ति करने वाली कंपनियाँ 
					उपलब्ध करा देती हैं। नाइट्रोजन बेसेज़ की विशिष्ट शृंखला के 
					कारण ये रेडियो एक्टिव सूत्र (probes) नाइलॉन की झिल्ली पर 
					अवस्थित RFLPs के इकहरे सूत्रों के उस भाग से जुड़ जाते हैं, 
					जिनकी नाइट्रोजन बेस शृंखला इनसे मेल खाती है।अब, अतिरिक्त 
					डीएनए प्रोब्स को बहा दिया जाता है और अंत में नाइलॉन की 
					झिल्ली की एक्सरे फिल्म तैयार की जाती है। रेडियो एक्टिव डीएनए 
					प्रोब से जुड़े होने के कारण एक्सरे फिल्म पर ये RFLPs  
					बार कोड्स के समान दिखने वाले निश्चित लंबाई तथा मोटाई वाली 
					धारियों के रूप में दिखाई पड़ने लगते हैं। इस प्रकार तरह–तरह के 
					ज्ञात रेडियो एक्टिव पोब्स का उपयोग कर कोशिका में पाए जाने 
					वाले विभिन्न वीएनटीआर्स के RFLPs की पहचान की जा सकती है 
					तथा किसी अन्य कोशिका के वीएनटीआर्स से इनका मेल करा कर यह पता 
					किया जा सकता है कि ये उसी व्यक्ति के हैं अथवा अन्य किसी के। 
					इस तकनीक की कुछ खामियाँ हैं। यथा— यह एक लंबा समय लेने वाली 
					विधा है, साथ ही अच्छे परिणाम के लिये नमूने की पर्याप्त 
					मात्रा, वह भी ताजे रूप में आवश्यक है, आदि।
 
					बाद में 
					‘पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन’ (PCR) जैसी तकनीक के विकास के कारण 
					डीएनए फिंगर पिंटिंग न केवल और भी सुनिश्चित परिणाम देने लगी, 
					बल्कि नमूने की थोड़ी मात्रा भी इस कार्य के लिये पर्याप्त थी। 
					पुराना एवं खराब नमूना भी अच्छे परिणाम दे सकता है। इस विधा 
					में नमूने की थोड़ी सी मात्रा से निष्कर्षित डीएनए के अंशों की 
					अनगिनत प्रतिकृतियाँ (DNA aplification) तैयार की जा सकती 
					हैं। इस कार्य के लिये डीएनए के अंशों को ऐसी स्थिति में रखा 
					जाता है, जहाँ का तापक्रम एक सुनिश्चित क्रम में चक्रीय ढंग से 
					बदलता रहता है। साथ ही ऐसे पॉलीमरेज़ एँजाइम की आवश्यकता होती 
					है जिस पर चक्रिय रूप से बदलते ताप का कोई प्रभाव नहीं पड़ता 
					हो।  
 डीएनए फिंगर प्रिंटिंग को और भी सरल, सस्ता, 
					विश्वसनीय एवं कम से कम समय लेने वाली विधा बनाने की दिशा में 
					लगातार प्रयास किये जा रहे हैं। अब वीएनटीआर्स की जगह एसटीआर्स 
					(short tandem repeats) के उपयोग की तकनीक का विकास 
					किया जा चुका है, जिसने डीएनए फिंगर प्रिटिंग की विधा को और भी 
					विश्वसनीय एवं सस्ता बना दिया है। यह विधा भी ‘पॉलीमरेज़ चेन 
					रिएक्शन’ (PCR) ही आधारित है। लेकिन इसमें फिंगर प्रिंटिंग 
					के लिये डीएनए के केवल उन पॉलीमॉफिक क्षेत्रों का उपयोग किया 
					जाता है, जिनमें लंबी शृंखला वाले वीएनटीआर्स की बजाय केवल ३, 
					४ या फिर ५ नाइट्रोजन बेसेज़ से बने डीएनए के छोटे–छोटे अंश 
					(short tandem repeats) मौज़ूद हों। ऐसे अंशों को शेष 
					डीएनए से अलग कर ऊपर वर्णित विधा द्वारा इनके भी एक्सरे चित्र 
					प्राप्त किये जा सकते हैं, जिनका उपयोग पहचान के लिये किया जा 
					सकता है।
 
 डीएनए फिंगर प्रिंटिंग की कुछ ऐसी विशेषताओं का 
					उल्लेख करना आवश्यक है जो पहचान के 
					लिये उपयोग में लाई जाने 
					वाली अन्य विधाओं की तुलना में इसकी श्रेष्ठता एवं विश्वसनीयता 
					को दर्शाती हैं—
 
						
							|  | 
							प्रत्येक व्यक्ति का 
							डीएनए फिंगर प्रिंट ‘व्यक्ति–विशिष्ट’ होता है। बिरले 
							ही यह किसी अन्य से मेल खाता है।  
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							|  | 
							एक व्यक्ति की सभी 
							कोशिकाओं के फिंगर प्रिंट्स एक दूसरे से शत–प्रतिशत 
							मेल खाते हैं, चाहे वह कोशिका मांसपेशी की हो या रक्त 
							की। अतः व्यक्ति की किसी भी एक कोशिका का फिंगर प्रिंट 
							उसकी पहचान के लिये पर्याप्त है। 
							 |  
							|  | 
							कोशिकाओं में पाए जाने 
							वाले वीएनटीआर्स या एसटीआर्स संतति को माता–पिता से ही 
							मिलते हैं। व्यक्ति की किसी भी कोशिका में पाए जाने 
							वाले २३ गुणसूत्र उसे उसकी मां से मिले होते है तथा 
							अन्य २३ पिता से। अतः मां से मिले गुण सूत्रों पर 
							अवस्थित वीएनटीआर्स मां की किसी भी कोशिका के कम से कम 
							२३ गुणसूत्रों पर अवस्थित वीएनटीआर्स से मेल खाएँगे, 
							तो पिता से मिले शेष २३ गुण सूत्रों पर अवस्थित 
							वीएनटीआर्स पिता की किसी भी कोशिका के २३ गुणसूत्रों 
							से। यही कारण है कि संतति संबंधी विवाद संतान तथा 
							माता–पिता के डीएनए प्रिंट्स का मेल करा कर आसानी से 
							निपटाया जा सकता है।   |  
							|  | 
							इन वीएनटीआर्स की संरचना 
							में कोई भी परिवर्तन किसी भी ज्ञात उपचार द्वारा संभव 
							नहीं है। अतः अपराधी चाह कर भी अपनी पहचान बदल नहीं 
							सकता। उसके पकड़े जाने की संभावना लगभग सुनिश्चित है। 
							अपराधी अपराध करने के पूर्व दो बार सोचेगा, यदि उसे 
							डीएनए फिंगर प्रिंट्स के बारे में जानकारी है। 
							 |  
					१६ अप्रैल २००६
					
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