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                     बिल्टूराम 
					बोबोंगा पर पूरे शहर की निगाहें टिक गई थीं।  
					एक दबा, कुचला, बदसूरत और जंगली आदमी देश का कर्णधार बनने का 
					ख्व़ाब देख रहा था। झारखंड मुक्ति संघ नामक एक ऐसी पार्टी का 
					लोकसभा टिकट उसने प्राप्त कर लिया था जिसका तीन-तीन राष्ट्रीय 
					पार्टियों, राष्ट्रीय जनता दल, कांग्रेस और सीपीआई से चुनावी 
					तालमेल था। मतलब चार पार्टियों का वह संयुक्त उम्मीदवार बन गया 
					और इस आधार पर ऐसा माना जाने लगा कि उसका जीतना तय है। डॉ 
					रेशमी मलिक सुनकर ठगी रह गई। बाप की जगह बेटे-पोते, बीवी-बहू 
					या मुजरिमों-माफ़ियाओं, फ़िल्म-खेल के चुके हुए सितारों या धन 
					पशुओं के एकाधिकार वाले प्रजातंत्र में एक अदना आदमी को पार्टी 
					का टिकट! उसे स्कूल का वह मंज़र याद आ गया। 
					 
					बिल्टू कक्षा में सबसे पिछली बेंच पर बैठा करता था। 
					काला-कलूटा, नाक पकौड़े की तरह फुला हुआ और बेढब। पढ़ाई में 
					सबसे फिसड्डी यानी मेरिट लिस्ट का आख़िरी लड़का। कुछ सहपाठी 
					उसे जंगली कहकर मज़ाक उड़ाते थे। नाम, शक्ल और अक्ल देखकर कोई 
					नहीं कह सकता था कि यह लड़का कभी किसी काम के लायक बन पाएगा या 
					इस लड़के से किसी को प्यार हो सकता है या फिर यह लड़का किसी से 
					प्यार करने की जुर्रत कर सकता है।   
					 
					लेकिन उसने प्यार किया, जी-जान से किया और उस लड़की रेशमी मलिक 
					से किया जो कक्षा की खूबसूरत और ज़हीन लड़कियों में से एक मानी 
					जाती थी।   |