दूसरी
कहानी "बादल
छंट गए" सूक्ष्म संवेदनाओं को उजागर करती कहानी है।
असीम और कनु दोनों पति पत्नी थे, जिनकी रूचियां अलग–अलग
थीं, एक पुत्री के जन्म के बाद दोनों अलग हो गए। कनु ने
स्वाभिमान से जीने का निर्णय लिया अपने पैरों पर खड़ी
हुई्र और उसने दूसरा विवाह कर लिया। पुत्री के डाक्टर होने
पर असीम उस पर अपना अधिकार जताने आ गया। कनु आशंका से
ग्रस्त हो गई कि कहीं पुत्री सारा अपने पिता के पास न चली
जाए और पुनीत जिसने असली पिता से भी ज्यादा उसके प्रति
दायित्व निभाया है, उसे छोड़ न दें। कहानी में अंत तक
कौतूहल बना रहता है। इसमें नारी अत्मशक्ति और आत्मविश्वास
से भरपूर है और नया संदेश देती है।
"मृगतृष्णा" नारी के भटकते मन की कहानी है जो बाहरी
चकाचौंध से आकर्षित हो कर अपने पति को छोड़ कर दूसरे पुरूष
के पास चली जाती है, परंतु अंत में वह भी उसे उपेक्षित कर
के छोड़ देता है। उसका सारा जीवन मृगतृष्णा में फंस कर रह
जाता है।
"बसंत आ
ही गया" ढलते यौवन में पुनः जीवन प्रारंभ करने की कहानी
है। कहानी संदेश देती है कि बसंत समय सीमा से बंधा नही है
वह कहीं भी, कभी भी आ सकता है, इस कहानी में आशा का संदेश
है।
"दंश"
एक मां के त्याग और एक डाक्टर के द्वंद्व की कथा है, इसमें
असामान्य परिस्थिति का सम्यक चित्रण किया गया है बेटी के
विवाह और बेटे के विदेश शिक्षा के लिए मां अपना ऑपरेशन
नहीं करवाती है, एकाकी ही सब सहती है और उसका निधन हो जाता
है। पर विवश डाक्टर के मन में अपना कर्तव्य पूरा न कर पाने
के कारण दंश चुभता रहता है।
"एक और
हार" कारगिल युद्ध की विभीषिका का अनछुआ पक्ष उजागर करती
है। अखिल युद्ध से घायल हो कर आता है और बोझ बन जाता है,
दूसरी ओर विजय युद्ध में शहीद हो कर अपने घर को संपन्न कर
जाता है। इस कहानी में दोनों का तुलनात्मक सटीक वर्णन इस
कहानी का प्राण तत्व है।
"पापा
तुम कहां हो" में रामेश्वर जी की तीन बेटियां मां की
मृत्यु के बाद अकेले पिता के देख–भाल के लिए होने वाले
झगड़े की कहानी है। जब इस झगड़े से व्यथित पिता घर–दुकान
बेच कर उन्हेे पांच–पांच लाख रूपये दे कर चले जाते हैं तो
उन्हें पश्चाताप होता है।
"काली
कलूटी" एक मेधावी परंतु कुरूप लड़की की कुंठा की कहानी है।
अंत में वही पुरूष उसमें आत्मविश्वास भरता है, जिसने उसमें
हीन ग्रंथि भरी थी। कहानी का गठन अच्छा है और निराशा में
एक आशा का संदेश देता है। अलका जी की कहानी में यह विषेशता
है कि प्रायः सभी कहानियां आशा और विश्वास से जुड़ी हुई
हैं जो जीवन के प्रति आस्था जगाती हैं।
"उसके
आने के बाद" पढ़ी–लिखी सुसंस्कृत सास के एक नये रूप से
परिचित कराती है। कथा में बहू के सर्व गुण संपन्न होने पर
सास आनंदित और गौरवान्वित होती है, पर बहू की लोकप्रियता
एवं गुणों को अपने से अधिक पा कर विरागी हो उठती है, यहां
तक कि घर छोड़ने का निर्णय ले लेती है परंतु बेटा बहू एवं
पति जब उसके महत्व की याद दिलाते हैं तो वह लौट आती है। यह
औरत के उस मनःस्थिति की कहानी है जब वह बहू के आने पर अपने
महत्व के कम समझ कर हताश व निराश हो जाती है।
"त्रिशंकु" निम्न वर्ग की लड़की के मध्य वर्ग मे पलने
बढ़ने से उत्पन्न विरोधाभास के कारण उसके सपनों और
परिस्थितियों के अंर्तद्वंद्व की कहानी है।
"क्या
सुशी लौटेगी" में एक साधारण रूप रंग की, स्त्री का सुंदर
जतिन से विवाह हो जाने पर, पति की उपेक्षा के कारण वह पर
पुरूष के पास चली जाती है। लेखिका ने प्रश्न उठाया है कि
वह पति के पश्चाताप पर पति के पास लौटेगी कि नहीं?
"सच क्या
था" जीवन के वीभत्स सत्य की झलक है। नौकरी न पाने के कारण
कुंठित सृजन योग्यता के उपरांत भी नौकरी नहीं पाता और उसकी
पत्नी मां बनने वाली है, ऐसे में उसके मन में यहां तक आ
जाता है कि यदि वह बीमार पिता को दवा न दे तो उनकी मृत्यु
से नौकरी पा सकता है। इसमें पुत्र के मन में पिता और होने
वाली संतान के मध्य किसे बचाए इस बात का बहुत सजीव द्वंद्व
दिखाया है। यह एक सशक्त कहानी है जो बताती है कि विषम
परिस्थितियों में इंसान कहां तक सोच सकने को विवश हो जाता
है।
संक्षेप
में कथा संग्रह में सभी कहानियां पठनीय, रोचक और विचारपरक
हैं, शैली में धारा प्रवाह और सहजता लेखिका की विशेषता
हैं। मुख्य पृष्ठ सुंदर है। कहानी का लोकार्पण वरिष्ठ
साहित्यकार एवं भूतपूर्व विधान सभा अध्यक्ष माननीय केशरी
नाथ त्रिपाठी जी द्वारा २८ जनवरी २९९६ को संपन्न हुआ और
पुस्तक के प्रारंभ में आशीर्वचन भूतपूर्व शिक्षा मंत्री
माननीय स्वरूप कुमार बख्शी ने लिखा है।
—आशा
श्रीवास्तव
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