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अगस्त जन्मजयंती के अवसर पर
मनोहर श्याम जोशी
—रवींद्र स्वप्निल प्रजापति
कथा साहित्य, पत्रकारिता और पटकथा लेखन
अभिव्यक्ति के तीन माध्यमों में साधिकार आवाजाही करने वाले
मनोहर श्याम जोशी हिंदी लेखन को एक नयी उंचाई, विविधता और कुछ
नये आयाम देकर गत ३० मार्च २००६ को हम से विदा ले गए। ९ अगस्त
१९३३ को अलमोड़ा (उत्तरांचल) में जन्मे श्री जोशी भारतीय सोप
ऑपेरा के जनक कहे जाते हैं। प्रस्तुत लेख में उनके बहुआयामी
व्यक्तित्व को संक्षेप में समझा जा सकता है। अभिव्यक्ति की ओर
से भावभीनी श्रद्धांजलि।
मनोहर श्याम जोशी ने अपने संस्मरणों में कहा था कि वे केवल
लेखक हैं। दरअसल, अपने लिए रोज़गार की तलाश में वे लेखक बने और
जब लिखकर ही जीने का संकल्प लिया, तो ज़्यादा बड़ लेखक हो गए।
यही वजह थी कि उनके लेखन में आधुनिक हिंदी साहित्य का हर पक्ष
समाहित होता चला गया। हिंदी साहित्य के विविध आयामों में उनका
योगदान विशालता की सीमा का अतिक्रमण करता है। उनके अवदान को
तीन पक्षों में बांटकर देखें तो उनकी त्रिआयामी छवि बनती है।
उनका साहित्यिक लेखन, टीवी और फ़िल्मों के लिए पटकथा लेखन और
समाचार पत्रों के लिए किया गया लेखन– उन्होंने तीनों पक्षों पर
समानता से अपने उत्तरदायित्व को निभाया।
उन्होंने उत्तर आधुनिक हिंदी साहित्य में ऐसे सृजन–त्रिकोण
का निर्माण किया जो अपने समय की श्रेष्ठतम मिसाल बन चुका है।
उन्होंने १९८२ में पहली बार टेलीविजन के लिए धारावाहिक की
शुरुआत की। मनोहर श्याम जोशी द्वारा लिखा गया 'हम लोग' भारतीय
दूरदर्शन का पहला धारावाहिक था जिसने उनके लेखन को समाज में
नयी पहचान ही नहीं दी, बल्कि इस क्षेत्र में नये हिंदी लेखकों
को मिलने वाली चुनौतियों को पहचानने की क्षमता भी दी। उन्होंने
'हम लोग' और 'बुनियाद' के अलावा 'कक्काजी कहिन', 'मुँगेरीलाल
के हसीन सपने', 'हमराही', 'ज़मीन–आसमान', 'गाथा' जैसे
धारावाहिकों द्वारा दूरदर्शन के सामने पैदा हुए पहचान के संकट
को बहुत हद तक दूर कर दिया था। उनके इस अवदान के कारण ही
उन्हें भारतीय 'सोप ओपेरा' का जनक कहा जाता है। यह उस समय की
बात है जब अधिकांश भारतीयों के लिए टीवी एक विलासिता का साधन
था, क्योंकि वह ग़रीबों की पहुंच से बहुत दूर जो था। उन्होंने
फ़िल्मों में भी अपने लेखन की छाप छोड़ी। उनकी कुछ प्रसिद्ध
फ़िल्में– हे राम, अप्पू राजा, पापा कहते हैं आदि हैं।
जोशी जी ने हिंदी कथा साहित्य, टीवी धारावाहिकों और
फ़िल्मों में अभिव्यक्ति के लिए नया कथाशिल्प दिया। उनका लेखन
अनोखे राजनीतिक, सामाजिक व्यंग्य के लिए भी जाना गया। वे लेखन
में वातावरण का जीवंत निर्माण और उस पर टिप्पणी एक साथ करते
थे। इस विशिष्टता को उद्देश्य–परक बनाकर वे ऐसे मज़ाक का सृजन
करते थे जो हृदय तक पहुंचता था। वह पाठकों को गुदगुदाता तो था,
पर पीड़ा नहीं देता था। उनकी यह कथा परंपरा किस्सा सुनाने वाले
गांव के दादा–पड़दादा के करीब पहुंचती है। अपनी इस संयुक्त
विशिष्टता को उन्होंने लेखन में सफलतापूर्वक स्थापित किया,
जिसे आलोचकों ने किस्सागो शैली का नाम दिया। उनके सटायर का
सबसे बड़ा और लंबा उदाहरण टीवी धारावाहिक 'कक्का जी कहिन' के
रूप में विख्यात हुआ, जिसमें राजनीतिक विसंगतियों और यहां तक
कि विद्रूपताओं को भी दिल को छू लेने वाले हास्य संवादों के
माध्यम से उभारा गया था।
मनोहर श्याम जोशी के लेखन की विविधता का एक और कोण
साहित्यिक सृजन और उपन्यासों के रूप में हमारे सामने उपस्थित
हैं। जो 'कसप' से शुरू होता है और जिसमें कुमाऊँनी परंपराओं का
यह उभार 'हरिया हरक्युलिस की हैरानी' तक पहुंचते ही उत्तर
आधुनिकता के सर्वोच्च शिखर को छूने लगता है। उनकी कुछ प्रमुख
साहित्यिक कृतियाँ – कुरू कुरू स्वाहा, बातों बातों में, मंदिर
घाट की पूड़ियाँ, एक दुर्लभ व्यक्तित्व, टा टा प्रोफेसर, क्याप
आदि हैं। क्याप के लिए उन्हें २००५ में साहित्य अकादमी का
पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। 'हमज़ाद' तथा 'लखनऊ मेरा लखनऊ' भी
उनकी चर्चित कृतियों में से हैं।
श्री जोशी के समग्र व्यक्तित्व का निर्माण पत्रकारिता और
विभिन्न समाचार पत्रों–पत्रिकाओं के लिए किए गए उनके लेखन से
होता है, जहां उन्होंने हिंदी की उपयोगिता को शुरुआती दौर में
ही स्थापित कर दिया था। यह काम उन्होंने प्र्रिंट मीडिया और
प्रसारण मीडिया के लिए बखूबी अंजाम दिया। उन्होंने साप्ताहिक
हिंदुस्तान और वीक एंड रिव्यू के लिए संपादक के रूप में भी
अपनी सेवाएं दीं। यहां उनका लेखन विविध रूपों में प्रगट हुआ।
उनके लेखन को उस समय के राजनीतिक–सामाजिक भारत का कोलाज कहा जा
सकता है। इन सभी आयामों की छवि को जब एक साथ मिलाकर देखा
जाएगा, तो मनोहर श्याम जोशी एक ऐसे मूर्धन्य साहित्यकार के रूप
में हमारे सामने आएंगे, जिन्होंने अपने समय को दृष्टि के
क्षितिज से आगे जाकर देखा था। जो जानता था कि उसकी बुनियाद पर
हिंदी में ऐसी दीवार का निर्माण होगा जो घातक हवाओं को रोकने
में सक्षम होगी और दूसरी ओर से आने वाली हवाओं को मानसून में
बदल देगी। अब मनोहर श्याम जोशी हमारे लिए स्थापना नहीं, गतिशील
ऊर्जा बन गए हैं।
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