कुछेक बड़े शहरों को छोड़कर, जहाँ चंद एफ़एम चैनल
धड़ल्ले से चल रहे थे, बाकी के भारत भर में, रेडियो मृतप्राय:-सा हो रहा था। पर, अब
लगता है रेडियो अपने धमाकेदार वापसी की ओर अग्रसर है। सरकार ने अभी-अभी ही बड़े
शहरों के साथ-साथ छोटे और मझोले शहरों के लिए कई-कई एफ़एम चैनलों की फ्रिक्वेंसी
नीलाम की है। ऐसे शहरों के रेडियो सुनने वालों के भाग्य खुलेंगे और रेडियो वापस
लौटेगा - अपने सुनहरे पुराने दिनों की ओर। मगर, सरकारी नीति तो कानी ही होती है!
तमाम निजी क्षेत्र के - डीटीएच और टीवी चैनलों से तो आप समाचार देख-सुन सकते हैं,
मोबाइल फ़ोनों के ज़रिए दूर-दराज़ क्षेत्र में एसएमएस और एमएमएस-क्लिपों के ज़रिए
तथा कुछ मामलों में जीवंत चैनलों के ज़रिए समाचार देख-पढ़-सुन सकते हैं, मगर रेडियो
पर निजी क्षेत्र के समाचार प्रसारणों पर बंदिशें लगी रहेंगी! हैं न क्लासिक कानापन!
अगर एफ़एम पर निजी समाचार चैनलों को भी अनुमति दी जाती तो रेडियो की लोकप्रियता में
कल्पनातीत तेज़ी आ सकती थी। जो भी हो, कम से कम अब करोड़ों को एफ़एम रेडियो के
ज़रिए संगीत सुनने का आनंद तो आएगा ही।
इसके बावजूद मेरे जैसे भारत के अधिसंख्य अभिशप्त
लोगों को - जो शुद्र-से शहरों और गाँवों में रहते हैं, एफ़एम रेडियो के ज़रिए संगीत
का आनंद लेना अब भी संभव नहीं होगा। ऐसी जगहों के लिए न सरकार ने लाइसेंस बाँटे
हैं, न निजी क्षेत्रों ने ख़रीदे हैं, न आगे सरकार की कोई योजना भी दिखाई देती है।
छोटी जगहों पर व्यवसायिक रूप से ये सफल भी नहीं हो सकेंगे। यों तो डीटीएच के ज़रिए
कोई दर्जन भर एफ़एम प्रसारण प्राप्त किया जा सकता है, पर वह कोई विकल्प नहीं है।
परंतु तकनॉलॉजी के इस सुहाने दौर में विकल्पों की कमी कतई नहीं है।
इंटरनेट पर तो पहले से ही तमाम
तरह के हिंदी के रेडियो चैनल मौजूद हैं।
और क्या आपको पता है? रेडियो का एक बढ़िया विकल्प हमारे लिए पहले से ही मौजूद है -
वर्डस्पेस सेटेलाइट रेडियो। एक नए किस्म
का रेडियो, वर्डस्पेस रेडियो के ज़रिए बड़े शहरों से लेकर घनघोर जंगलों में भी आप
सीडी क्वालिटी के संगीत का आनंद से ले सकते हैं, और समाचार भी सुन सकते हैं!
आइए, देखते हैं कि वर्डस्पेस रेडियो
है क्या, और क्या इसको सुनने में सचमुच कुछ मज़ा भी है?
वर्डस्पेस रेडियो प्रसारण को
विशेष स्र्प से तैयार
किए गए वर्डस्पेस रेडियो के ज़रिए सुना जा सकता है। इस रेडियो का प्रसारण
एनक्रिप्टेड होता है, जिसे मासिक सदस्यता राशि का भुगतान प्राप्त कर पासवर्ड डाल कर
सुना जा सकता है। भारत में सिल्वर सदस्यता की राशि है - 150 रुपए प्रतिमाह। इसमें
आपको रेडियो के चालीस चैनल सुनने को मिलते हैं जिसमें हिंदी के पुराने तथा नए गानों
के दो चैनलों के साथ-साथ तमिल, तेलुगु, पंजाबी, बंगाली, मलयालम, कन्नड़ चैनल तो हैं
ही, हिंदुस्तानी तथा शास्त्रीय संगीत के दो अलग चैनल भी हैं। अंग्रेज़ी के तो ढेरों
चैनल हैं जिसमें तमाम पॉप, रॉक और कंट्री गाने चौबीसों घंटे बजते रहते हैं। हॉर्मनी
चैनल में आप मोज़ार्त्ज़ को भी सुन सकते हैं और जुबीन मेहता को भी। धार्मिक लोगों
के लिए सत्य साईं तथा आर्ट ऑफ लिविंग के दो डेडिकेटेड चैनल हैं। मोक्ष नाम का चैनल
भी है जहाँ आपको हिप्नोटिक ट्रांस में ले जा सकने वाला संगीत बजता रहता है।
समाचारों के लिए बी.बी.सी. एशिया, सीएनएन तथा एनडीटीवी अंग्रेज़ी और हिंदी के चैनल
भी इसमें बजते रहते हैं। 150 रुपए प्रतिमाह में इतना सबकुछ सुनने का विकल्प मिलना
कोई महँगा नहीं है, ख़ासकर तब, जब संगीत अपनी पूरी गुणवत्ता के साथ - सीडी क्वालिटी
का, स्टीरियोफ़ोनिक रूप में बज सकता हो - आपके बियाबान जंगल में बने घर में भी -
जहाँ न बिजली की सुविधा है और न जहाँ किसी अन्य रेडियो प्रसारण की - और आपके महानगर
के किसी फ्लॅट के किसी अलहदा कमरे में भी।
यों तो वर्डस्पेस रेडियो भारत सहित विश्व के अन्य
सैकड़ों देशों (अफ्रीकी एवं एशियाई) में पिछले कई वर्षों से जियोस्टेशनरी सेटेलाइट
के ज़रिए डिजिटल तकनीक का रेडियो प्रसारण कर रहा है, परंतु विपणन कमियों के चलते यह
भारत में उतना लोकप्रिय नहीं हो पाया था। वर्डस्पेस रेडियो अभी भी भारत के छोटे
शहरों में न सिर्फ़ अनुपलब्ध है, बल्कि इस तकनॉलॉजी के बारे में वे अज्ञानी ही हैं।
अब कंपनी अपने प्रचार-प्रसार में ध्यान दे रही है तो लोगों में इसके प्रति रुचि
पैदा होने लगी है।
वर्डस्पेस रेडियो के साथ एक एंटीना तथा एक रिमोट कंट्रोलर भी आता है। बेसिक
एंटीना जो बहुत छोटा-सा, चार इंच का होता है, उसे सेटेलाइट के लाइन-ऑफ-साइट में
रखना आवश्यक होता है। इस कारण यह सेमीपोर्टेबल किस्म का ही होता है।
वर्डस्पेस रेडियो के
दिवा मॉडल के साथ दिया गया रिमोट कंट्रोलर ज़रा अजीब किस्म का है। इसके ज़रिए
22 नंबर के पासवर्ड को रेडियो में दर्ज करने के लिए 44 बार कुंजियाँ दबानी पड़ती
हैं, तथा इसके प्रीसेट 40 चैनलों में से किसी ख़ास चैनल को लगाने के लिए भी
अव्यावहारिक तरीके से कुंजियाँ कई दफ़ा दबानी पड़ती है। रेडियो कभी-कभी एक-दो सेकंड
के लिए बीच-बीच में अचानक शांत भी हो जाता है - पर यह कोई ख़ास परेशानी पैदा नहीं
करता। इसमें अंतर्निर्मित स्पीकर भी नहीं है - आपको अलग से एम्प्लीफ़ायर युक्त
स्पीकर सिस्टम से इसे जोड़ना होगा। परंतु अगर आप बढ़िया हाई-फ़ाई एम्प्लीस्पीकर
सिस्टम से इसे जोड़ते हैं, तो आपको संगीत की गुणवत्ता में कोई कमी नहीं आती। संगीत
के चैनल चौबीसों घंटे बजते रहते हैं तथा विज्ञापन अत्यंत कम हैं - या नहीं ही हैं,
जिससे संगीत के आनंद में खलल नहीं पड़ती।
रेडियो में दिए डाटा टर्मिनल से आप इस रिसीवर को
अपने कंप्यूटर से भी जोड़ सकते हैं। इसके ऑडियो आउट को अपने म्यूज़िक सिस्टम में
जोड़कर धुआँधार संगीत बजा सकते हैं तो अपने कंप्यूटर के साउंडकार्ड के लाइन इन में
जोड़कर
आउडासिटी या
जेटआडियो द्वारा एमपी3 संगीत में रेडियो
के बज रहे चैनल को रेकॉर्ड भी कर सकते हैं। और, इस तरह के रेकॉर्डेड संगीत भी पूरी
गुणवत्ता के साथ भरपूर आनंद प्रदान करते हैं।
सहगल से लेकर सावंत(अभिजीत) और ब्रिटनी कस्पीयर्स
से लेकर बी.बी.सी. तक सारा कुछ अपने रेडियो पर सुनना - सचमुच आनंददायी अनुभव होता
है -
वर्डस्पेस रेडियो की
एक झलक आप अपने कंप्यूटर के ज़रिए यहाँ से लें।
२४ अप्रैल २००६
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