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घोड़ी पे चढ़ के आज बन्ना दुल्हन को
लाया। गौरी गणेश मनाल्यो री, माँ को ध्यावो री कि बन्ना
दुल्हन...
– "अय कहाँ छुपाई है बहूरानी? निकालो री निकालो। बन्ने की
अम्मा मैं भी मुँह दिखाई का हक रखती हूँ। दादी आवें, नानी
आवें, आज हमारी भी सुनवाई करें।"
ज़ोर–ज़ोर से तालियाँ बजाता और ढोलक पर थाप दे रहा, एक
पतला–दुबला साथी लिए, हिजड़ा सुबह–सुबह आ धमका। मेहमान नाश्ते
पर जुटे थे। स्त्रियाँ सजी–सँवरी, रसोई से आँगन, आँगन से रसोई
नाप रही थीं। बेड़मी, कचौरी, हलवा, मलाई, पान, एक–एक का नाम
लेकर मनुहार करतीं, "और लीजिए ना प्लीज़, आपने तो कुछ खाया ही
नहीं।"
लखनवी ख़ातिरदारी की मिसाल
नहीं और फिर लड़के की शादी।
राहुल और करिश्मा की शादी अभी कल ही हुई थी। हफ़्ते से पूरा घर
मेहमानों की चहल–पहल से भरा था। आज ही रात को रिसेप्शन होगा।
राहुल नहाकर निकला है अभी–अभी। घर में बहू की अगवानी, कंगना
खेलने आदि की रस्में अभी बाकी हैं। मैं, राहुल की बड़ी मौसी
करिश्मा को तैयार करवा रही हूँ।
ढोलक की तालबद्ध आवाज़ से सब चौंक उठते हैं। जो खा–पी चुके थे,
बाहर बरामदे में जा बैठे। राहुल की दादी जी, उर्फ़ 'बीबी' का
हुक्म हुआ, "दुल्हा–दुल्हन को बैठाकर हिजड़े से नज़र उतरवा लो।"
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