होली
विशेषांक
पर्व
परिचय में
मनोहर पुरी की झोली से
देश
विदेश की होली
हास्य
व्यंग्य में
शैल अग्रवाल की चटपटी मसालेदार
चुटकी
गुलाल की
°
संस्मरण
में
रति सक्सेना के रंगभीने संस्मरण
आंगन
में उतरा इंद्रधनुष
ललित
निबंध में
जयप्रकाश मानस की कलम से
रंग
बोलते हैं
°
कहानियों में
यू के से तेजेन्द्र शर्मा की कहानी
एक
बार फिर होली
दूरदूर से एक
दूसरे को देख कर ख़ुश हो जाने वाले चंदर और नजमा ने
धीरेधीरे भविष्य के सपने बुनने भी शुरू कर दिए थे।
चंदर वैसे तो डाक्टर बनना चाहता था लेकिन उसके मन में
एक कवि पहले से विद्यमान था। कृष्ण और राधा की होली के
नग़में वह इतनी तन्मयता से गाता था कि नजमा भाव
विभोर हो जाती। उसे होली के त्यौहार की प्रतीक्षा रहती। अपनी
सहेलियों के साथ मिल कर होली खेलती और अपनी मां से
डांट खाती। उसका होली के रंगों में रंग जाना उसकी
आवारगी का प्रतीक था। किंतु मां को उन रंगों का ज्ञान ही
कहां था जो नजमा के व्यक्तित्व पर चढ़ रहे थे। नजमा अब
चंदर की सुधा बनने को व्यग्र थी।
ं
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इस
सप्ताह
गौरवगाथा
में
प्रेमचंद की ऐतिहासिक कहानी
राजा
हरदौल
फाल्गुन
का महीना था, अबीर और गुलाल से ज़मीन लाल
हो रही थी। कामदेव का प्रभाव लोगों को भड़का रहा
था। रबी ने खेतों में सुनहला फ़र्श बिछा रखा था
और खलिहानों में सुनहले महल उठा दिए थे। इन्हीं दिनों दिल्ली का नामवर फेकैती कादिरखां ओरछे
आया। बड़ेबड़े पहलवान उसका लोहा मान गए थे। ठीक
होली के दिन उसने धूमधाम से ओरछे में
सूचना दी,"खुदा का शेर दिल्ली का कादिरखां
ओरछे आ पहुंचा है। जिसे अपनी जान भारी हो, आ कर
अपने भाग्य का निपटारा कर ले।" ओरछे के
बड़ेबड़े बुंदेले सूरमा वह घमंडभरी वाणी
सुन कर गरम हो उठे। फाग और डफ की तान के बदले
ढोल की वीरध्वनि सुनाई देने लगी।
हास्य
व्यंग्य में
टी आर चमोली का व्यंग्य
निरख
सखी फिर फागुन आया
°
घर
परिवार में
दीपिका जोशी बता रही हैं कि
कैसे
रंगों से
बदलें दुनिया
संस्मरण
में
नीरजा द्विवेदी के साथ
परदेस में
अटलांटा की
होली और वसंत
°
रसोइघर
में
इस बार घर पर बनाएं
होली के पकवान
सप्ताह का
विचार
ईश्वर
बड़ेबड़े साम्राज्यों से ऊब उठता है लोकिन छोटेछोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। रवींद्रनाथ ठाकुर
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अनुभूति
में
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होली और वसंत
की
मस्ती से रंगारंग
छंद मुक्त
और छंदबद्ध
नयी
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