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अनुभूति

9. 3. 2006 

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होली विशेषांक

पर्व परिचय में
मनोहर पुरी की झोली से
देश विदेश की होली

हास्य व्यंग्य में
शैल अग्रवाल की चटपटी मसालेदार
चुटकी गुलाल की

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संस्मरण में
रति सक्सेना के रंग–भीने संस्मरण
आंगन में उतरा इंद्रधनुष

ललित निबंध में
जयप्रकाश मानस की कलम से
रंग बोलते हैं

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कहानियों में
यू के से तेजेन्द्र शर्मा की कहानी
एक बार फिर होली

दूर–दूर से एक दूसरे को देख कर ख़ुश हो जाने वाले चंदर और नजमा ने धीरे–धीरे भविष्य के सपने बुनने भी शुरू कर दिए थे। चंदर वैसे तो डाक्टर बनना चाहता था लेकिन उसके मन में एक कवि पहले से विद्यमान था। कृष्ण और राधा की होली के नग़में वह इतनी तन्मयता से गाता था कि नजमा भाव विभोर हो जाती। उसे होली के त्यौहार की प्रतीक्षा रहती। अपनी सहेलियों के साथ मिल कर होली खेलती और अपनी मां से डांट खाती। उसका होली के रंगों में रंग जाना उसकी आवारगी का प्रतीक था। किंतु मां को उन रंगों का ज्ञान ही कहां था जो नजमा के व्यक्तित्व पर चढ़ रहे थे। नजमा अब चंदर की सुधा बनने को व्यग्र थी।


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इस सप्ताह

गौरवगाथा में
प्रेमचंद की ऐतिहासिक कहानी
राजा हरदौल

फाल्गुन का महीना था, अबीर और गुलाल से ज़मीन लाल हो रही थी। कामदेव का प्रभाव लोगों को भड़का रहा था। रबी ने खेतों में सुनहला फ़र्श बिछा रखा था और खलिहानों में सुनहले महल उठा दिए थे। इन्हीं दिनों दिल्ली का नामवर फेकैती कादिरखां ओरछे आया। बड़े–बड़े पहलवान उसका लोहा मान गए थे। ठीक होली के दिन उसने धूम–धाम से ओरछे में सूचना दी,"खुदा का शेर दिल्ली का कादिरखां ओरछे आ पहुंचा है। जिसे अपनी जान भारी हो, आ कर अपने भाग्य का निपटारा कर ले।" ओरछे के बड़े–बड़े बुंदेले सूरमा वह घमंड–भरी वाणी सुन कर गरम हो उठे। फाग और डफ की तान के बदले ढोल की वीर–ध्वनि सुनाई देने लगी।

हास्य व्यंग्य में
टी आर चमोली का व्यंग्य
निरख सखी फिर फागुन आया

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घर परिवार में
दीपिका जोशी बता रही हैं कि कैसे
रंगों से बदलें दुनिया

संस्मरण में
नीरजा द्विवेदी के साथ परदेस में
अटलांटा की होली और वसंत

°

रसोइघर में
इस बार घर पर बनाएं
होली के पकवान

 सप्ताह का विचार
श्वर बड़े–बड़े साम्राज्यों से ऊब उठता है लोकिन  छोटे–छोटे पुष्पों से कभी खिन्न नहीं होता। — रवींद्रनाथ ठाकुर

 

अनुभूति में 

होली और वसंत
की
मस्ती से रंगारंग
छंद मुक्त और छंदबद्ध 
नयी रचनाएं

–° होली विशेषांक समग्र °–

उपहार में 

कहानियों में

संस्मरण

फुलवारी में बच्चों के लिए

हास्य व्यंग्य में

कलादीर्घा में

घर परिवार में

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        और . . .

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

     

 

 
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