अनुभूति

 24. 12. 2004

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पिछले सप्ताह

हास्य व्यंग्य में
प्रदीप मैथानी का व्यंग्य
हम ऐसे क्यों हैं

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पर्यटन में
दीपिका जोशी के साथ दक्षिण अफ्रीका में 
रोमांचक जंगलों का सफ़र

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आज सिरहाने में
विश्वनाथ त्रिपाठी परिचित करवा रहे हैं सांझी कथा यात्रा
कहानी संग्रह से

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साक्षात्कार में
लवलीन से मधुलता अरोरा की बातचीत
सवाल आपकी सामर्थ्य का है

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कहानियों में
भारत से सुकेश साहनी की कहानी
खरोंच

वे सब शहर के बाहर स्थित चूजे़ (चिकेन) तैयार करने वाली फैक्ट्री के वर्कर थे। दिन भर काम करने के बाद रात में वे फैक्ट्री के बेसमेंट में जमा हो जाते थे। फिर शुरू होता था हंसी–मज़ाक, किस्से–कहानियां सुनने–सुनाने का सिलसिला, जो देर रात तक जारी रहता था। जब उनकी आंखें झपकने लगतीं, ज़बान साथ छोड़ देती, तभी वे सोने का नाम लेते थे। इस तरह वे वर्षों से एक परिवार की तरह वहां रहते आ रहे थे। इसी परिवार के सबसे वरिष्ठ सदस्य–मास्टर ने आज अचानक नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया था। उसने इस्तीफ़े की वजह किसी को नहीं बताई थी।
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इस सप्ताह

कहानियों में
यू के से उषा राजे सक्सेना की कहानी
रूख़साना

चौबीस दिसंबर की शाम यानी क्रिसमस ईव। बाहर तेज़ बर्फ के साथ दक्षिणी तूफ़ानी हवा चल रही थी। जया ने एटिक की खिड़की से बाहर झांक कर देखा। सड़कों, छतों और पेड़ों पर बर्फ के फाहे सफ़ेद चादर फैलाते जा रहे थे। लोगों ने अपने घर के बाहर और अंदर रंग–बिरंगी नन्हीं–नन्हीं जलती–बुझती 'फेयरी–लाइट' लगा रखी थी। पूरा मिचम हज़ारों क्रिसमस ट्री से जगमग करता परियों के देश जैसा अदभुत, अनोखा और रहस्यमय लग रहा था। जया थोड़ी देर इस खूबसूरत दृश्य को आंखों में भरती, कल स्कूल में बच्चों को सुनाई कहानी पीटर–पैन और टिंका–बेल परी के बारे में सोच रही थी।
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प्रकृति और पर्यावरण में
प्रभात कुमार पर्यावरण की कलम से
पर्यावरण बनाम जनावरण

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प्रौद्योगिकी में
रविशंकर श्रीवास्तव का आलेख
विश्वजाल पर हिन्दी समूह

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विज्ञान वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप से जानकारी
सदुपयोग मकड़ी के जाले का

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परिक्रमा में
लंदन पाती के अंतर्गत शैल अग्रवाल
का चिर परिचित अंदाज़
पहचान

1सप्ताह का विचार1
आंख के अंधे को दुनिया नहीं दिखती, काम के अंधे को विवेक नहीं दिखता, मद के अंधे को अपने से श्रेष्ठ नहीं दिखता और स्वार्थी को कहीं भी दोष नहीं दिखता।
चाणक्य

 

अनुभूति में

आलोक श्रीवास्तव, राकेश कौशिक, चंदन सेन और अभिनव कुमार 'सौरभ' की 
नई रचनाएं

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
आज सोमवार है–परशु प्रधान
काहे को ब्याही विदेशउत्कर्ष राय
कैक्टस–प्रत्यक्षा
काला सागर तेजेन्द्र शर्मा
रामलीला–प्रेमचंद
पिटी हुई गोट–शिवानी

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सामयिकी में
रहीम के जन्मदिवस पर
डा दर्शन सेठी की विशेष रचना
रहिमन धागा प्रेम का

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दृष्टिकोण में
रामनिवास लखोटिया का आलेख
शाकाहार उतम आहार

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संस्कृति में
नवीन नौटियाल बता रहे हैं
चाय की ऐतिहासिक यात्रा
के विषय में

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रचना प्रसंग में
प्राण शर्मा के धारावाहिक साहित्य
विवेचन की अगली किस्त
उर्दू ग़ज़ल बनाम हिन्दी ग़ज़ल
(भाग–4)

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मंच मचान में
अशोक चक्रधर के शब्दों में 
इस वास्ते अनुरोध है

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फुलवारी में माइक्रोवेव अवन, साबुन
और वाशिंग मशीन के आविष्कारों 
की कहानी
साथ ही शिल्पकोना
में सूंड़ हिलाता हाथी

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों  अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन    
      सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी सहयोग :प्रबुद्ध कालिया
  साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार शुक्ला