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चौबीस दिसंबर की शाम यानी
क्रिसमस ईव। बाहर तेज़ बर्फ़ के साथ दक्षिणी तूफ़ानी हवा चल
रही थी। जया ने एटिक की खिड़की से बाहर झाँक कर देखा। सड़कों
छतों और पेड़ों पर बर्फ़ के फाहे सफ़ेद चादर फैलाते जा रहे
थे। लोगों ने अपने घर के बाहर और अंदर रंग–बिरंगी
नन्हीं–नन्हीं जलती–बुझती 'फेयरी–लाइट' लगा रखी
थी। पूरा मिचम हज़ारों क्रिसमस ट्री से जगमग करता परियों के
देश जैसा अदभुत,
अनोखा और रहस्यमय लग रहा था।
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जया थोड़ी देर इस खूबसूरत दृश्य को आँखों में भरती कल स्कूल
में बच्चों को सुनाई कहानी पीटर–पैन और टिंका–बेल परी के
बारे में सोच रही थी। लगता है आज टिंका–बेल ने बजाए सुनहरी
पाउडर के सफ़ेद जादुई पाउडर बिखेरा है। वह
मन–ही–मन मुसकराई।
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नन्हें–मुन्ने बच्चे जया के जीवन की धुरी हैं, रस हैं। वह
यहीं बच्चों के स्कूल गॉरिंज पार्क में पिछले पंद्रह
वर्षों से पढ़ा रही है। उसका मन स्वयं बच्चो सा कोमल और
संवेदनशील हैं। बच्चों की तरह उसे भी यह वस्तु–संसार
अदभुत, आश्चर्य और कौतूहल से परिपूर्ण रहस्यमय लगता है।
रोज़ जीवन उसे कुछ–न–कुछ नया अनुभव देता है और रोज़ उसका
मोह–भंग होता है पर मोह–भंग उसे कोई त्रासदी नहीं देता। वह
भी शायद 'पीटर पैन' है। पीटर पैन सदा बारह बरस का रहेगा और
वह सदा बच्चों सी संवेदनशील और स्वप्निल रहेगी, उसने सोचा।
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