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साहित्य संगम  

साहित्य संगम के इस अंक में प्रस्तुत है परशु प्रधान की नेपाली कहानी का
हिन्दी रूपांतर 'आज सोमवार है' रूपांतरकार हैं
कुमुद अधिकारी


इडा याद करने लगी कि आज कौन सा दिन है, टीवी के मनोरंजक दृश्यों से लग रहा था आज रविवार है अच्छा सा रविवार है, फिर उसे लगा आज सोमवार है और हेरेश से मिलना है हेरेश की याद आते ही इडा को सोमवार से ही बोरियत सी होने लगी कितना पियक्कड़ है हेरेश! रातभर व्हिस्की की कितनी ही बोतलें खाली करता है और फिर बातें करता है ज़मीन आसमान की जैसे सारी रात उसी की है और किसी की तो है ही नहीं जैसे फिर वह विद्यार्थी न हो कर किसी रईस का इकलौता वारिस हो जैसे उसके साथ डॉलर की बोरियाँ हो उसका बहुत अच्छा बैंक बैलेंस हो

वह बोरियत से खुसुर-फुसुर करता है, 'इडा, "मैं इस सेमिस्टर के बाद यहाँ नहीं रहनेवाला कितना छोटा और तंग है यह शहर शायद न्यूयार्क नहीं तो वाशिंग्टन डी सी जाऊँगा वहाँ से डॉक्टरेट भी आसानी से किया जा सकता है।' पर अपनी बुद्धि और ज्ञान से बहुत परे था वह

इडा कमरे को निहारती है दीवाल में पुता हुआ पीला रंग कितना ज़्यादा पीला है इडा को सख्त पीले रंग से चिढ़ है ज़्यादा नमक, ज़्यादा चीनी... उफ् कितना बोर... कमरे का पर्दा भी उतना ही पुराना परदे की आड़ी धारियाँ इडा को कैसे डराती हैं, मानो वे धारियाँ साँप का फन बनकर उठती हों कभी कभी रातों में वह ड
र जाती है व चिल्लाती भी है इडा को अब पूरी तरह समझ में आ गया, आज सोमवार है? पक्का सोमवार ही है।
 
हाँ आज सोमवार ही है, और आज की रात बलिष्ठ हेरेश के नाम है महीने में चार सोमवार की रातों को हेरेश का साथ देने पर इडा निर्णय करती है, हेरेश के साथ हुए समझौते को रद्द कर देगी हेरेश से स्पष्ट कह देगी 'मुझे भी तो एक दिन की फुरसत चाहिए हेरेश तुम और कोई गर्लफ्रेंड ढूँढो और मुझे छुट्टी दो
'तुम्हें छुट्टी दूँ इडा, नामुमकिन बिलकुल असंभव बल्कि तुम्हारे डॉलर बढ़वाने हैं तो निसंकोच कहो, "मैं तो तैयार ही हूँ न।"

'ऐसा नहीं है हेरेश- बहुत वर्षों से स्वास्थ्य ठीक नहीं है लगता है यह काम अब छोड़ दूँ लेकिन परिस्थितियाँ, विवशताएँ भी कुछ होती हैं हेरेश मैं कर नहीं पा रही हूँ लेकिन छोड़ने का प्रयास जरूर करूँगी।' इडा उसे समझाने की कोशिश करती है कभी-कभी देर होने पर हेरेश स्वयं ही गाड़ी लेकर उसे लेने आ पहुँचता था फिर लगातार कॉलबेल बजाता था, क्या करती वह- खुद दरवाजा खोलने को विवश हो जाती और वही एक किस्म की दुर्गन्ध के साथ रात बिताने को बाध्य हो जाती।

टेलिफोन की घंटी बजने लगी रिसीवर उठाने को मन नहीं करता संभव है हेरेश कहता हो, आज दस बजते ही मेरे यहाँ आ जाओ इडा मैंने दो चार कैन बीयर ठीक कर रखे हैं क्यों न दिन भर अपने आपको बीयर से बदल दें फिर टेलिफोन की घंटी बन्द होने का नाम नहीं ले रही इडा रिसीवर उठाती है सौभाग्य से रांग नंबर है वह घड़ी की तरफ नज़र डालती है दस बजने को है शाम का अपाइंटमेन्ट सारा दिन खराब कर देता है अन्य दिनों में उसे ऐसा महसूस नहीं होता रविवार जोन्स के यहाँ, मंगलवार रॉबर्ट के यहाँ, फिर शुक्रवार जैक्सन के यहाँ

सबसे अच्छा तो शुक्रवार ही है एक तो वीकएंड, उपर से खुशमिजाज जैक्सन जैक्सन का व्यक्तित्व ही कितना मनमोहक व प्रभावशाली है जिसकी हेरेश से किसी भी अंश में तुलना नहीं की जा सकती जैक्सन का नाम याद आते ही इडा की निरुत्साहित इच्छाएँ जाग उठीं पोखर में कहीं नई मछलियाँ कुलबुलाई सी लगती हैं अब इडा को बहुत दूर अपने घर की याद सता रही है जहाँ पिताजी की चिठ्ठियों के हर्फों को याद करते ही इडा को कुछ भी अच्छा नहीं लगता, तुझे घर की फिक्र करने की जरूरत नहीं है सिर्फ अपने स्वास्थ्य का खयाल कर तेरी जॉब क्या है व कॉलेज में पढ़ाई कैसी चल रही है- हमें कुछ मालूम नहीं, जिससे हम दुविधाग्रस्त हैं, इडा अनुभव करती है ये हर्फ बढ़ रहे हैं या बड़े हो रहे हैं उसे लगता है इन्हीं हर्फों के तले दब कर कहीं वह अकाल ही मर न जाए इडा क्या जॉब करती है इस छोटे से शहर में, उसके जॉब को किस तरह से परिभाषित किया जाए- इडा को मालूम नहीं वह कह भी नहीं सकती इडा इस शहर में क्या करती है व कैसे जी रही है- उसे लगता है वह जी रही है निरुद्देश्य, अर्थविहीन जीवन व प्रयोजनहीन जीवन।

आज दिन भर का काम याद करने लगी इडा सारे अपाइंटमेंट व काम भूलकर दिन यों फिसल जाता है फिर आती है काली रात, वही हेरेश की रात वह घबरा जाती है, हेरेश की रात से उसने हेरेश को सलाह न दी हो ऐसा नहीं है, 'हेरेश तुम किसी से शादी क्यों नहीं कर लेते- ३५ बरस की उमर क्या छोटी है- अब सिर्फ ५ बरस हैं हेरेश, तुम अपना जीवन साथी ढूँढो- तुम तो १७-१८ साल के किशोर लगते हो, कुछ तो कहो, क्यों गुस्सा करते हो?"

'तुम गलत हो इडा, "अभी शादी करके मैं क्या बूढ़ा हो जाऊँ- क्या तुम मुझे बूढ़ा देखना चाहोगी? क्या है शादी में? एक साधारण सत्य जिसे स्वीकार भी किया जा सकता है, अस्वीकार भी।' हेरेश हर बात को हँसी में टाल देता।

इधर इडा को हर सोमवार को शरीर भारी पड़ता है मितली सी होती है कमरा घूम रहा सा प्रतीत होता है बहुत महीनों से सम्हाले हुए निर्णय को उगलने को मन करता है, 'मैं आज नहीं आऊँगी हेरेश मुझे माफ करना।'

वह पूछ सकता है 'सिर्फ मेरे यहाँ नहीं आओगी या जॉब ही छोड़ दोगी?
'पहली बात तो तुम्हारे यहाँ नहीं आऊँगी जॉब छोड़ने के बारे में अभी नहीं सोचा है।'
'यह सिर्फ तुम्हारा विचार है इडा, निर्णय नहीं अभी क्या वजह है निराश होने की, हेरेश फिर हँसी में ही टाल देता है इडा के हृदय के शूलों को उसने कभी समझने की कोशिश ही नहीं की, न ही तैयार है

हर किस्म के लोगों से व्यवहार करना सचमुच ही मुश्किल काम है यह सिर्फ नादानी है, अपने आपको खत्म करना हर पुरुष के प्यार करने व चाहत रखने का एक समय होता है जब वह वक्त गुजर जाता है या यों कहें जब किनारा टूट जाता है तो फिर कुछ नहीं होने वाला आकाश में हवाई जहाज निरन्तर उड़ रहे हैं किसी भी हवाईजहाज ने अब तक इडा को कहीं उड़ाकर दूर नहीं फेंका किसी जहाज ने भ्रमण के लिए कहीं नहीं बहाया कितना छोटा है उसका बैंक बैंलेंस हर महीने उसे बढ़ाने का संकल्प भी जॉब छोड़ने जैसा हास्यास्पद हो गया है कभी कास्मेटिक्स का हाहाकार तो कभी कपड़ों की ज़िद कभी दवाइयाँ सारे बज़ट को तोड़मरोड़ देती हैं फिर कमरे के एक कोने में बीयर की एक बोतल को खोलकर सारे सत्य को भूल जाना अच्छा लगता है इडा को लोगों के मुखड़ों को कहीं दूर फेंक देने को जी करता है

पना घर है कहीं दूर, प्यार करने वाले माँ बाप हैं, इस बात को भूलकर एकाकी सोचने को जी करता है उसका मगर सप्ताह के पूरे दिनों से बँधी हुई है वह वे दिन उसकी जिन्दगी को रूटीन बनाए हुए हैं यह रूटीन जिन्दगी, दीवाल पर टँगा है यह जिन्दगी का रूटीन, इम्तहान के रूटीन माफिक :
रविवार- जॉन्स
सोमवार- हेरेश
मंगलवार- रॉबर्ट
बुधवार- ग्रीन
गुरुवार- जेम्स
शुक्रवार- जैक्सन
शनिवार- सिल

क्यों बाहर नहीं निकल सकती इस बाड़े से इडा? ब्रेकफास्ट का समय खत्म हो चला है और लन्च के लिए नज़दीकी ड्रग हाउस तक जाना जरूरी है फिर माथे पर सोमवार घुसकर उसे भारी बना डालता है हेरेश का रूखा व्यवहार आकर उसको ठण्डा बना डालता है काश अभी फोन करके मैं बीमार हूँ, नहीं आ सकती, कह सकती पर बहुत जिद्दी है वह हफ्ते में एक बार ही तो है, मैं तो नहीं मानता बोलकर गाड़ी लेकर आ धमका तो फिर फोन करने का कोई मतलब नहीं दस सेन्ट खर्च करने का कोई औचित्य नहीं इडा खुद से निस्पृह सी हो जाती है कैसे काटेगी यह लम्बा दिन? पार्क तक जाए, उधर भी खर्चा ही है कमरे के बाहर कदम रखते ही डॉलरों के पग बनाते हुए चलना पड़ता है दिन पर दिन भाव आसमान छू रहे हैं इस बढ़ती महँगाई में जीना दूभर हो गया है कमरे में ही झूलकर कितना वक्त काटा जा सकता है? यह शहर भी सठिया गया है इडा जाएगी कहाँ, कौन सी जगह बाकी है, सेन्ट्रल पार्क में भी कितना झूला जाए, दर्जनों आदमियों के दर्जनों सवाल, जवाब देते देते परेशान जिधर देखो आदामियों की भीड़ ऐसी झल्लाहट किसी दिन नहीं
होती, बगैर सोमवार के, नीरस सोमवार।

लन्च का वक्त भी खत्म हो चला है इडा को भूख नहीं है गाड़ी लेकर निरुद्देश्य चलूँ तो कितनी देर चलूँ? कितनी दूर चलूँ? किस हाईवे तक पहुँचकर लौटूँ? जिधर देखो सड़कों के जाल बिछे हुए लगते हैं कौन सा रास्ता उसे कितनी देर तक कहाँ तक ले जा सकता है? कहीं कोई दुर्घटना हो गई तो? कहीं कोई संभावना नहीं दिखती सिवाय रात का इन्तज़ार करने के, दिल को मोम सा पिघलाकर बाहर जाऊँ? फिर मन को सपनों के नंगे तार छू रहे हैं इडा फोन लगाती है उधर हेरेश ही है वह बोल भी न पाई थी कि उधर से हेरेश की आवाज़ उसको हिलाकर रख लेती है, 'फुरसत हो तो अभी आ जाओ इडा, क्यों शामका इन्तज़ार करती हो? मैं तुम्हारे ही लिए बगैर कॉलेज गए बैठा हूँ तुम अभी आओ।'
'मेरी तबीयत आज... '
फोन में बात को बीच में ही टोककर बोलने की आवाज़ आती है, 'अकेले रहने से कैसे तबीयत अच्छी रहेगी? इधर आ जाओ, सब ठीक हो जाएगा नाइट क्लब भी जाना है न थोड़ी देर के लिए...
'कह तो रही हूँ... मेरी तबीयत ठीक नहीं... '
'नो नो तुरन्त आ जाओ।' हेरेश फोन काट देता है अब इडा सोच रही है, इस शहर से उसे मुक्ति नहीं है इस सोमवार से भी उसकी मुक्ति नहीं है उसे न चाहते हुए भी जाना है उसके न चाहने से भी सोमवार आ ही जाता है न चाहते हुए भी उसे हेरेश के साथ रात बितानी है हेरेश, हेरेश, हेरेश? इडा बाथरूम में घुस जाती है

 

९ दिसंबर २००४

 
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