फैक्ट्री में असेम्ब्ली लाइनों और कन्वेयर बेल्टों के
माध्यम से हज़ारों चूज़ों को मांस के लिए रोज़ मारा जाता था।
इस काम को करने में दूसरे वर्कर कतराते थे, पर मास्टर इसे
'मोगैम्बो खुश हुआ' की तर्ज़ पर करने को हरदम तैयार रहता
था।
गोदाम में चूज़ों को पंक्तिबद्ध क्रेटों में जिस तरह
ठूंस–ठूंसकर रखा जाता था, उसमें उनके एक–दूसरे को चोंच
मार–मारकर मार डालने का खतरा बना रहता था। इस समस्या के
समाधान के लिए चूज़ों के पैदा होते ही उनकी चोचों को गर्म
ब्लेड वाली मशीन (डिबीकर) से काट दिया जाता था। यह काम
भी मास्टर के ज़िम्मे था। चोचें काटने का काम वह इतनी तेजी
से करता था कि देखने वाले दंग रह जाते थे। यह काम करते हुए
उसके होठों पर सदैव एक क्रूर मुस्कान चिपकी रहती थी।
पिछले हफ्ते मास्टर को मालिकों के आदेश पर अंडों से लदे
ट्रकों के साथ लखनऊ जाना पड़ा था। वहाँ से लौटने के बाद वह
काफ़ी बदला–बदला नज़र आने लगा था। रात की महफ़िलों में उसकी
रुचि खत्म हो गई थी। ब्लेड़ से चूज़ों की चोंचें काटते हुए
उसके होठों पर रेंगने वाली चिरपरिचित क्रूर मुस्कान नदाराद
थी, हाथ काँपने लगे थे। उसकी इस कमज़ोरी की वजह से बहुत से
चूज़ों के मुँह में फफोले पड़ गए थे, जीभें कट गई थीं। इस
घटना ने उसे इतना विचलित कर दिया था कि वह घंटों गुमसुम–सा
बैठा रहा था। इसी घटना के बाद उसने इस्तीफा दे दिया था। |