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पिछले
सप्ताह
परिक्रमा
में
शैल
अग्रवाल
की लंदन पाती
कब
तक
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साहित्यिक निबंध
में
अचला शर्मा द्वारा रेडियो नाटकों के संबंध में
महत्वपूर्ण जानकारी रोचक अंदाज़ में
रेडियो
नाटक का पुनर्जन्म
°
पर्व परिचय में
दीपिका जोशी के शब्दों में
आषाढ की एकादशी का संक्षिप्त परिचय
शयनी एकादशी
°
उपहार
में
शिशुजन्म के अवसर पर
शुभकामनाएं भेजने के लिए एक नयी कविता
नये जावा आलेख के साथ
एक
सितारा
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उपन्यास
अंश में
भारत से विभूति नारायण राय के
उपन्यास तबादला से एक अंश
दफ्तर
अफसरों को करने के लिए इस देश में
बहुत सारे काम हैं। उन्हें दौरा करना पड़ता है, अपने से बड़े
अफसरों को खुश रखना पड़ता है, लंच पर जाना पड़ता है और काफी
समय बाथरूम में रहना पड़ता है। इतनी सारी व्यस्तताएं होती हैं कि
वे दफ्तर में बैठ नहीं पाते। बाबुओं को दफ्तर में इतना बैठना
पड़ता है कि वे किसी काम लायक नहीं रहते। कभीकभी किसी फाइल की
किस्मत अच्छी होती है। बाबू उसे नोटिंगड्राफ्टिंग करके
सजासंवार कर ले आता है और अफसर उसमें एक अमूर्त पच्चीकारी करता
है। इसे कुछ लोग चिड़िया बैठाना कहते हैं, और कुछ लोग हस्ताक्षर।
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!इस
सप्ताह
कहानियों
में
यूके से शैल अग्रवाल की कहानी
कनुप्रिया
कनुप्रिया
लड़की नहीं एक पहाड़ी नदी थी जब अपनी रौ में बहती तो सबको
अपने साथ बहा ले जाती। सब कुछ अपने में समेटे हुए फिर भी
सबसे दूर। एक ऐसा पुराना बरगद का पेड़, जो जितना बाहर दिखता
था उससे कहीं ज्यादा जमीन के भीतर था। जिसकी छांव में थके
लोग सहारा ले सकते थे और भूले भटके शांति और ठहराव। इसकी
नित उठती शाखें पूरे तारों भरे आसमान को अपनी बाहों में भरने
की सामर्थ्य रखती थी। कनुप्रिया नाम कब और कैसे रखा गया उसे याद
नहीं पर जब भी बच्चे चिढ़ाते कि उसका नाम कन्नुप्रिया इसलिए
हैं क्योंकि उसकी दोनों कंचे जैसी आंखें खेलते समय हरे, पीले,
भूरे अलगअलग रंगों में चमकती हैं, तो दादी अपना डंडा लेकर
उस वानर सेना के पीछे पड़ जातीं।
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नगरनामा
में
ट्रांधाईम से रंजना सोनी का नगर वृतांत
आनंद
का समंदर
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रचना प्रसंग में
विज्ञान साहित्य से साक्षात्कार
संदीप निगम की
शोधपरक बयानगी
में
संकल्पना है
विज्ञान कथा
°
मंच मचान में
अशोक चक्रधर प्रस्तुत कर रहे हैं
तीन तरह की बत्तीसी
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फुलवारी
में
जंगल के पशु श्रृखला में
वनमानुष
के बारे में जानकारी, वनमानुष
का चित्र
रंगने
के लिए
और कवितावनमानुष
ॐ°ॐ
!सप्ताह का विचार!
गरीबों
के समान विनम्र अमीर और अमीरों के समान उदार ग़रीब
ईश्वर के
प्रिय पात्र होते हैं।
सादी |
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पिछले अंकों से°
कहानियों
में
राजा निरबंसियाकमलेश्वर
ग़लतफ़हमीसुरेश कुमार
गोयल
चरमराहट तेजेन्द्र शर्मा
चोरीप्रत्यक्षा
कोठेवाली(उपन्यास)स्वदेश
राणा
पीठममता कालिया
°
प्रकृति
और पर्यावरण में
प्रभात कुमार का जानकारीपूर्ण आलेख
अभावों
का ऋणजल
°
आज
सिरहाने
में
नईम के नवीनतम कविता
संग्रह
लिख सकूं तो
से परिचय करवा रहे हैं प्रदीप
मिश्र
°
हास्य
व्यंग्य में
महेशचंद्र द्विवेदी सुना रहे हैं
हकीम नुसर की खुसर पुसर
°
साहित्य समाचार में
घोषित हुए उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के
पुरस्कार
°
सस्मरण में
शेरजंग गर्ग की यादें पुराने
दिन और
साहित्यिक मित्रों के साथ
एक था टी हाउस
° वैदिक
कहानियों में
डा रति सक्सेना
की कलम से
सौर देवता
°
रसोईघर
में
पुलावों के स्वादिष्ट संग्रह में
पुदीना
पुलाव
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