हिन्दी के एक सुनिश्चित पाठ्यक्रम की
भी आवश्यकता है। वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय के उपप्रधानाचार्य
गुरूमोहन कोछर ने अपने सम्बोधन में कहा कि भारतवंशियों
के दैनिक जीवन से धीरेधीरे हिन्दी गायब होती जा रही है।
युवा पीढ़ी की इसमें रूचि कम है। आवश्यकता है नई पीढ़ी में
इसके प्रति रूचि जाग्रित करने की। हिन्दी निधि के अध्यक्ष चंका
सीताराम ने हिन्दी के प्रचार प्रसार में हिन्दी निधि के प्रयासों
को रेखांकित किया तथा इस दिशा में आ रही समस्याओं की ओर
ध्यान आकर्षित किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए
डॉसिल्विया मूदी कुबलालसिंह ने विश्वास दिलाया कि
विश्वविद्यालय का सेंटर फॉर लैग्वेज लर्निंग हिन्दी के शिक्षण
तथा नए पाठ्यक्रमों के लिए हर सम्भव प्रयत्न करता रहेगा। कार्यक्रम
का आरम्भ मुख्य अतिथियों द्वारा द्वीपप्रज्वलन तथा दिल्ली से
पधारीं बागेश्री चक्रधर द्वारा सरस्वती वंदना से हुआ। कार्यक्रम
का कुशल संचालन बॉब गोपी तथा डॉराजकुमार डफ्फू ने
किया।
पहले सत्र का विषय था
"विदेशी भाषा के रूप में हिन्दी शिक्षण : चुनौतियां"
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता कैरिकॉम के पूर्व राजदूत कमालुदीन
मोहम्मद साहब ने की। इस सत्र में प्रोनित्यानंद पांडेय,
निदेशक केंद्रिय हिन्दी संस्थान भारत, ने 'विदेशी भाषा के रूप
में हिन्दी का शिक्षण', दिल्ली
विश्वविद्यालय के डॉप्रेम जनमेजय ने 'त्रिनिदाद और
टुबैगो में हिन्दी शिक्षण की चुनौतियां', जामिया मिलिया
इसलामिया विश्वविद्यालय के प्रोअशोक चक्रधर ने 'हिन्दी के
स्वर', त्रिनिदाद के डॉकुमार महाबीर ने 'कैरेबियाई
शब्दकोश में हिन्दी प्रविष्टियों की चुनौतियां' तथा त्रिनिदाद
की ही श्रीमती कुंवारी जोगी दुखी ने 'हिन्दी व्याकरण की
समस्याएं' विषय पर अपने विचार रखे। आरंभिक वक्तव्य
डॉराजकुमार डफ्फू ने दिया। अध्यक्ष ने बताया कि वह अनेक
वर्षों से हिन्दी के पठनपाठन को बहुत समीप से देख रहे हैं
तथा पा रहे हैं कि उसकी चुनौतियां बढ़ती ही जा रही हैं।
दूसरे सत्र का विषय था
'कैरेबियाई देशों में हिन्दी'। इस सत्र के अध्यक्ष थे भारतीय
सांस्कृतिक परिषद् में निदेशक डॉमधुप मोहता। इस सत्र में
त्रिनिदाद के हिन्दू प्रचार केन्द्र के अध्यक्ष रवीन्द्रनाथ महाराज ने
'पिचकारी की भाषा' त्रिनिदाद के ही राजनैतिक विश्लेषक डॉकिर्क
मेघू ने 'त्रिनिदाद में हिन्दी सीखने की सामाजिक, सांस्कृतिक
एवं राजनैतिक चुनौतियां', गुयाना से पधारे हरिशंकर ने
'गुयाना में हिन्दी शिक्षण' की समस्याएं 'त्रिनिदाद टोबैगो की
हिन्दी निधि' की अकादमिक समिति के अध्यक्ष बॉब गोपी ने 'हिन्दी
शिक्षण में हिन्दी निधि के योगदान' तथा त्रिनिदाद के ही
सुभाष रामदीन ने 'हिन्दी अध्ययन की सीमाओं' पर अपने
विचार व्यक्त किए। अपने अध्यक्षीय भाषण में डॉमधुप
मोहता ने त्रिनिदाद और टुबैगो में हिन्दी के पठन पाठन के
संदर्भ में हो रहे प्रयासों की प्रशंसा की तथा त्रिनिदाद और
टुबैगो वासियों के हिन्दी प्रेम को सराहा। उन्होंने कहा कि
बहुत आवश्यकता है कि त्रिनिदाद और टुबैगो में हिन्दी के प्रचार
और प्रसार की दिशा में हो रहे कार्यों का फिल्मीकरण हो तथा
उसे अन्य देशों में दिखाया जाए। इस दिशा में उन्होंने
परिषद् की ओरसे सभी सहायता देने का आश्वासन दिया।
तीसरे सत्र का विषय था,
'विदेशों में हिन्दी के सातत्य में साहित्य का योगदान'। इस
कार्यक्रम की अध्यक्षता रवीन्द्रनाथ महाराज ने की। इस सत्र में
दिल्ली विश्वविद्यालय की डॉ श्रीमती बागश्री चक्रधर ने 'हिन्दी
शिक्षण में लोकतत्व का योगदान' सूरीनाम में हिन्दी की
अतिथि आचार्य पुष्पिता ने 'कैरेबियाई में हिन्दी भाषा तथा
अस्मिता संघटन' भारत से पधारीं कवियित्री सुश्री नेहा शरद ने,
'विदेशों में हिन्दी के प्रचार में हिन्दी साहित्य की भूमिका',
त्रिनिदाद की श्रीमती लक्ष्मणी जैरीबन्दन ने 'कैरेबियाई देशों
में पूर्वी भारत की भाषाओं का योगदान', त्रिनिदाद की ही
श्रीमती रूक्मणी ने 'कैरेबियाई में हिन्दी भाषा के संरक्षण में
भोजपुरी का योगदान' तथा सेंटर फॉर लैंग्वेज लर्निंग
वेस्ट इंडीज विश्वविद्यालय की डॉ अनु बेडफोर्ड ने
'बहुसंस्कृतिधर्मी समाज में हिन्दी की भूमिका' विषय पर अपने
विचार व्यक्त किए। अपने अध्यक्षीय भाषण में रविजी ने कहा कि
तुलसी और कबीर के इस देश में हिन्दी साहित्य की महत्वपूर्ण
भूमिका है। उन्होंने प्रेम जनमेजय, सुरेश ऋतुपर्ण,
वीआरजगन्नाथन तथा राजकुमार ड्फ्फु समेत सभी अतिथि
आचार्यों की प्रशंसा की जिन्होंने समय समय पर हिन्दी के
प्रचार प्रसार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
अन्तिम सत्र 'हिन्दी अध्यापकों एवं
विद्यार्थियों के लिए कार्यशाला' को समर्पित था। इस सत्र के
संयोजक थे डॉप्रेम जनमेजय, रिसोर्स पर्सन थे
प्रोनित्यानंद पांडेय एवं प्रोफेसर अशोक चक्रधर तथा
पर्यवेक्षक डॉराजकुमार डफ्फु एवं विनोद संदलेश थे। अपने
आरम्भिक संबोधन मे पीसीभारद्वाज ने विश्वास व्यक्त
किया कि यह सत्र त्रिनिदाद और टुबैगो के हिन्दी शिक्षकों एवं
हिन्दी प्रेमियों के लिए पठनपाठन से जुड़ी समस्याओं पर
चर्चा के लिए सहायक होगा। इस सत्र में श्रीमती कला रामलखन,
जैसी सम्पत, रफी हुसैन, सुभाष रामदीन, सुजाता श्रीराम,
स्नेह प्रभा सक्सेना, देवसरन विश्वनाथ, सावित्री तथा लक्ष्मी
रघुनन्दन ने अपनी समस्याएं और सुझाव रखे।
इस सेमिनार का मुख्य का आकर्षण
था, प्रोअशोक चक्रधर के संयोजन में रविवार 18 मई को
दीवाली नगर में आयोजित 'कवि सम्मेलन'। इस कवि
सम्मेलन के मुख्य अतिथि थे भारतीय उच्चायुक्त श्री वीरेंद्र
गुप्ता। कवि सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर उन्होंने कहा कि
कविता ही हमारे अंदर गहरे घुसती है और वह हमें प्रेरित भी
करती है। कविता हमारा मनोरंजन तो करती ही है पर वह हमें एक
दूसरे से जोड़ती भी है। त्रिनिदाद में कवि सम्मेलन का
आयोजन एक ऐतिहासिक अविस्मरणीय घटना है। उन्होंने
विश्वास व्यक्त किया कि यह परम्परा जारी रहेगी। इस अवसर पर
अशोक चक्रधर ने श्रोताओं को अपनी मत्रमुग्ध शैली में बांध
लिया। अशोक चक्रधर के अतिरिक्त दिल्ली से पधारे डॉमधुप
मोहता, प्रेम जनमेजय, नित्यानंद पांडेय, बागेश्री चक्रधर,
नेहा शरद, सूरीनाम से पधारी डॉपुष्पिता, गुयाना से
पधारे हरिशंकर आदेश तथा त्रिनिदाद के राजकुमार डफ्फु, विनोद
संदलेश, नीलिमा श्रीवास्तव, स्नेह प्रभा सक्सेना, कुंवारी
जोगी दुखी आदि ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।
प्रस्तुति डॉ प्रेम
कुन्द्रा
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