भावना सक्सेना की कहानी-
नयी भोर
कई
दिन ऐसे बीतते हैं जैसे कि एक दिन में सैकड़ों जिंदगियाँ जी आए
हैं, लेकिन फिर भी कोई एक काम रह जाता है अधूरा और वह भी ऐसा
जिसे आप सबसे ज्यादा मन से करना चाह रहे थे। सुबह उठते ही जिसे
सोचा लेकिन वही नहीं हो पाता। पिछले दो दिन से वह उर्मिला काकी
से मिलने और उन्हें विद्यालय के नववर्ष के उत्सव का निमंत्रण
देने जाने की सोच रही थी लेकिन...
आगे-
और
लकी राजीव की कहानी
मोह के धागे
अलार्म
बंद करके मैं रजाई में दुबकी रही! सवा छ: ही था, आधा घंटा और
सही। वैसे भी टहलने तो जाना नहीं था...पार्क याद आते ही मन
खिन्न हो गया! कल तक तक तो केवल यही वजह ही रह गई थी, खुश रहने
की, अब वो भी खत्म हो चुकी थी। सामने वाले घरों की सफेद, पीली
बत्तियाँ जल चुकी थीं। एक-एक करके सब ताला लगाकर
पार्क की ओर निकलने भी लगे होंगे...
आगे...
*
त्रिलोचना कौर की
लघुकथा-
गरमाहट
*
परिचय दास का ललित निबंध-
नव
वर्ष - संकल्प की आँच
*
अपर्णा द्विवेदी का आलेख
नव वर्ष के
विभिन्न रूप
*
पुनर्पाठ
में बृजेश कुमार शुक्ला का आलेख
नई कविता में नया
साल
|