नूतन प्रभात का सुंदर समय।
अंधकार और चंद्रिका अपने-अपने घर जा चुके हैं, हँसती हुई
उषा नव वर्ष का स्वागत करने दौड़ी आ रही है। घोसलों से
बाहर निकल कर नए साल की पहली उड़ान भरते हुए पक्षियों का
कलरव, मंद-मंद बहती सर्द हवाओं मे गुंजायमान हो रहा है।
सहसा प्राची के क्षितिज पर दृष्टिगोचर होते भगवान भुवन
भास्कर की किरणों को देखकर प्रदीप मिश्र की कविता के ये
अंश मानस पटल पर तैरने लगते हैं :
सूरज की नन्हीं किरणें
चुपके से उतर आई हैं घर के अंदर
और खेल रहीं हैं छुपन-छुपाई
खुशी से खुल गई हैं खिड़कियाँ
हवा की शुद्धता हृदय में घुल रही हैं
ये सुबह तुम्हारी है।
मंगलमय क्षितिज पर उग रहा है नव वर्ष
ये सुबह तुम्हारी है।
नव वर्ष का प्रारंभ अगर
मंगलमय क्षितिज पर इस सौंदर्य के साथ हो, खुशी की
खिड़कियाँ खुल जाएँ और सुख की किरणें छुपन-छुपाई खेलते हुए
घर में नव जीवन भर दें तो नव वर्ष का आरंभ इससे बेहतर क्या
हो सकता है! प्रकृति मनुष्य की चिरसंगिनी रही है। हर खुशी
में हर दुख में और समय के हर मोड़ पर वह साथ चलती है।
मनुष्य के साथ बदलती हुई जीवन के हर कोने में नए रंग भरती
हुई। यही कारण है कि हर युग के कवि ने उसका यशगान किया है।
नई कविता के नए कवियों ने भी उसको नए अंदाज़ में नए साल के
साथ पिरो कर साहित्य की माला रची है। गिरीश चंद्र
श्रीवास्तव की इस रचना को देखें-
नया वर्ष लेकर आया है
सुंदर नवल प्रभात
आशाओं के पंख उगे हैं
सपनों की बारात!
कलरव करती सोन चिरैया फूल करें अठखेली
रंगों का संसार खिला है पुरवैया अलबेली
घूँघट पट से नयन झाँकते
बिखराएँ पारिजात!
शुभकामनाओं की महक है
वातावरण में, साल भर के लिए भावनाओं के आदान-प्रदान का
सुखद अवसर, उपहारों का मौसम है यह। कहीं पुराने रिश्तों को
ताज़ा करने का समय है तो कहीं रूठे हुओं की मनुहार का,
कहीं पारिवारिक उल्लास है तो कहीं मित्रों का भावात्मक
ज्वार, कही दोस्ती का माधुर्य है तो कहीं बचपन की कोमल
अनुहार, प्रकृति की प्रेरणाप्रद मुस्कान का तो कहना ही
क्या? हर ओर प्रसन्नता, हर मुख सजीला और देखिए तो सूर्यनाथ
सिंह एक ऐसा ही दृश्य किस प्रकार रचते हैं अपनी लेखनी से -
चीड़वन में
सर्द हवाओं ने
गाना शुरू कर दिया है
जिंगलबेल
ठंड से ठिठुरती
अपने घुटनों के बीच ठुड्डी टिकाए
सिकुड़कर बैठी घाटी के ऊपर
अभी-अभी गर्म मुलायम धूप का गुमदा
डाल गया है सूरज
एक पेड़ के नीचे
बहुत देर से खड़े एक नन्हें बच्चे ने
घाटी की तरफ़ से आई
बस से उतरी
लाल स्वेटर वाली अपनी दोस्त के
माथे को अभी-अभी चूमा है
और पीठ पर बस्ते लटकाए
एक-दूसरे का हाथ पकड़
दोनों ऊपर पहाड़ी वाले स्कूल की तरफ़
बढ़ गए हैं
मैं प्रार्थना में हूँ
लो इस ऋतु का यह एक दिन
मैं तुम्हें उपहार देता हूँ।
ईश्वर की कृतियों में
मानव सर्वोत्कृष्ट है, उसमें जहाँ एक ओर विलक्षण प्रज्ञा
है वहीं दूसरी ओर हृदय में रागात्मक वृत्तियों का
वैविध्यपूर्ण समावेश भी है। मात्र भौतिकता ही जीवन में
संतुष्टि का कारण नहीं बन सकती, सदभावना दिलों में हो तो
जीवन सुंदर एवं आनंदमय हो उठता है। आपसी सौहार्द भी उसी की
एक कड़ी है। इसी सौहार्द की पराकाष्ठा पर जहाँ एक ओर
सूर्यनाथ सिंह एक पूरा दिन उपहार में दे देते हैं वहीं नव
वर्ष के अवसर पर कविवर अशोक चक्रधर २००४ में लिखी गई अपनी
कविता में प्यार और सदभावनाओं की शुभकामनाएँ देते हुए कहते
हैं :
मन में इसी सुविचार का
सुविचार हो
सन चार में बस - प्यार का संचार हो
दिलमें -गुणों -की -गुनगुनी -गुंजार हो
सन -चार -में -बस प्यार का संचार हो
नए साल को हिंदी कवियों
ने नए-नए अंदाज़ में प्रस्तुत किया है। कहीं प्रकृति के
साथ उसको कोमल भावों में बाँधा है तो कहीं मनुष्य की कठिन
जीवनधारा के दर्द में ढाला है। नई सदी के प्रारंभ में लिखी
गई यश मालवीय के कुछ दोहों में सारे सुख और विकास के साथ
यही दर्द उभर कर आता है। वे एक ओर प्रकृति के सौंदर्य का
वर्णन करते हैं, दूसरी और ग्रीटिंग कार्ड का और फिर समय और
सदी के अतीत में खोई अनेक आपदाओं और अभावों का भी। कुछ
दोहे प्रस्तुत हैं -
हमें बाँधता गूँथ कर कोई
मीठा शोर
सूरज नया सहेजती नई सदी की भोर।
बादल की है ओढ़नी बादल का
है शाल
नई सदी ने धूप में खोले अपने बाल।
कैलेंडर को क्या पता
तारीखों की भूल
नई सदी की आँख में दहक रहे हैं फूल।
नई सदी तक आ गई, गई सदी
की चीख
हम थे गहरी नींद में बदल गई तारीख।
धुँध - अंधेरा - त्रासदी
धूल - धुआँ - अपमान
किस पर किस पर किस तरह नई सदी दे ध्यान।
ग्रीटिंग पर शुभकामना
होठों पर एक नाम
नई सदी में लग रही सूर्योदय-सी शाम।
नई सदी की देह पर गई सदी
के घाव
अट्टाहास करने लगे घर-घर नए अभाव।
बहुत औपचारिक हुए आपस के
संबंध
टूट न जाएँ देखिए नई सदी के छंद।
नए साल का समय यानि कुछ
छोड़ कर कुछ पाने का समय। पुराने साल के जाने का समय नए
साल के आने का समय। और पुराना वक्त जब जाता है तो अनेक
स्मृतियों को पीछे छोड़ जाता है। ये स्मृतियाँ शामिल होती
हैं नए साल की अभिलाषाओं को नया रूप देने में में। मित्रों
में अपनों में शुभकामना संदेश भेजते हुए कुछ ऐसी ही
भावनाओं को शब्द दिए हैं कवि कृष्ण मोहन ने-
कितनी अतीत की
संस्मृतियाँ
कितनी भावी अभिलाषाएँ
आया है लेकर वर्ष नया
कितनी नव जीवन आशाएँ
नव युग के नव संदेशों का
स्वागत है आज सहर्ष सखे!
आया है नूतन वर्ष सखे!
सन 2005 में प्रवेश के
साथ बीते बरस की अनेकों खट्टी-मीठी यादें मन मे चहलकदमी
करती है। बीते बरस की बड़ी घटना के रूप में विश्व के सबसे
बड़े लोकतांत्रिक देश के जनमत ने अटल सरकार को दुबारा मौका
नहीं दिया। अपना कार्यकाल पूरा कर चुके अटल जी न केवल कवि
है बल्कि राष्ट्रनिर्माता और संवेदनशील देशभक्त भी हैं।
युगपुरुष अटल जी की भावुकता और कवि हृदय को प्रतिबिंबित
करती उनकी यह कविता -
एक बरस बीत गया
झुलसाता जेठ मास, शरद चाँदनी उदास
सिसकी भरते सावन का अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
सींकचों में सिमटा जग,
किंतु विकल प्राण विहग
धरती से अंबर तक, गूँज मुक्ति गीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन, गिनते
दिन पल छिन,
लौट कभी आएगा, मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
नव वर्ष की इस पावन बेला
पर विश्व के हर कोने से हर भारतीय जन मन से शुभकामना दे
रहा है कि 21 वी सदी की पाँचवीं पायदान पर भारत संयुक्त
राष्ट्र संघ का स्थायी सदस्य बन कर विश्वपटल पर देश का
गौरव बढाएँ। देश की माटी से जुड़े हर तन मन को नव वर्ष की
शुभकामनाएँ अर्पित करती कवि सर्वेश्वर दयाल सक्सेना जी की
रचना के साथ हम सबकी शुभकामनाएँ हर किसी के लिए प्रस्तुत
है :
नए साल की शुभकामनाएँ!
खेतों की मेड़ों पर
धूल-भरे पाँव को,
कुहरे में लिपटे उस छोटे-से गाँव को,
नए साल की शुभकामनाएँ!
जाते के गीतों को, बैलों
की चाल को,
करघे को, कोल्हू को, मछुओं के जाल को,
नए साल की शुभकामनाएँ!
इस पकती रोटी को, बच्चों
के शोर को,
चौके की गुनगुन को; चूल्हे की भोर को,
नए साल की शुभकामनाएँ!
कोट के गुलाब और जूड़े के
फूल को,
हर नन्ही याद को, हर छोटी भूल को,
नए साल की शुभकामनाएँ!
उनको जिनने चुन-चुनकर
ग्रीटिंग कार्ड लिखे,
उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे,
नए साल की शुभकामनाएँ!
यह कविता एक ओर जहाँ भारत
के ग्रामीण परिवेश से हमारी मुलाक़ात करवाती है वहीं कोट
और जूड़े की शहरी संस्कृति से गुज़रते हुए अपने गमले में
चुपचाप रहने वाली ग्रीटिंग कार्ड का आदान-प्रदान करने वाली
महानगरीय संस्कृति की पड़ताल भी करती है। अंत में बस इतना
ही कि आप गाँव में हों या शहरों में, देस में हों या परदेस
में, नया साल तो आखिर नया साल है इसलिए एक बार फिर से नव
वर्ष की मंगल कामनाएँ!
१
जनवरी २००५
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