1
जानकारी ज़रूर छुपी होती है। अगर हम इस छुपी हुई कहानी को खोज
सकें तो यह हमारे सामने ज्ञान की रहस्यमय दुनिया का नया पन्ना
खोल देता है। इसीलिए तो डाक-टिकटों का संग्रह विश्व के सबसे
लोकप्रिय शौक में से एक है। डाक-टिकटों का संग्रह हमें स्वाभाविक
रूप से सीखने को प्रेरित करता है इसलिए इसे प्राकृतिक शिक्षा-उपकरण कहा जाता है। इसके द्वारा
प्राप्त ज्ञान हमें मनोरंजन के माध्यम से मिलता है इसलिए इन्हें
शिक्षा का मनोरंजक साधन भी माना गया है। डाक-टिकट किसी भी देश की विरासत की चित्रमय
कहानी हैं। डाक टिकटों का एक संग्रह विश्वकोश
की तरह है, जिसके द्वारा हम अनेक देशों के इतिहास, भूगोल, संस्कृति, ऐतिहासिक
घटनाएँ, भाषाएँ, मुद्राएँ, पशु-पक्षी,
वनस्पतियों और लोगों की जीवनशैली एवं देश के महानुभावों
के बारे में बहुत सारी जानकारी प्राप्त कर सकते है।
डाक-टिकट का इतिहास करीब १६९ साल पुराना है। विश्व का पहला डाकटिकट
१
मई १८४० को ग्रेट ब्रिटेन में जारी किया गया था जिसके ऊपर
ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया का चित्र छपा था। एक पेनी मूल्य
के इस टिकट के
किनारे सीधे थे यानी टिकटों को अलग करने के लिए जो छोटे छोटे छेद
बनाए जाते हैं वे प्राचीन डाकटिकटों में नहीं थे। इस समय तक
उनमें लिफ़ाफ़े पर चिपकाने के लिए गोंद भी नहीं लगा होता था।
इसके उपयोग का प्रारंभ ६ मई १८४० से हुआ। टिकट
संग्रह करने में रुचि रखने वालों के लिए इस टिकट का बहुत महत्व
है, क्यों कि इस टिकट से ही डाक-टिकट संग्रह का इतिहास भी शुरू
होता है।
भारत में पहला डाक-टिकट १ जुलाई १८५२ में सिंध
प्रांत में जारी किया गया जो केवल सिंध प्रांत में उपयोग के लिए सीमित
था। आधे आने मूल्य के इस टिकट को भूरे कागज़ पर लाख की लाल सील
चिपकाकर जारी किया गया था।
यह टिकट बहुत सफल नहीं रहा
क्यों कि
लाख टूटकर झड़ जाने के कारण इसको संभालकर रखना संभव नहीं था। फिर
भी ऐसा अनुमान किया जाता है कि इस टिकट की लगभग १०० प्रतियाँ
विभिन्न संग्रहकर्ताओं के पास सुरक्षित हैं। डाक-टिकटों के
इतिहास में इस टिकट को सिंध डाक के नाम से जाना जाता है। बाद में
सफ़ेद और नीले रंग के इसी प्रकार के दो टिकट वोव कागज पर जारी
किए गए लेकिन इनका प्रयोग बहुत कम दिनों रहा क्यों कि
३० सितंबर १८५४ को सिंध प्रांत पर ईस्ट इंडिया कंपनी का अधिकार
होने के बाद इन्हें बंद कर दिया गया। ये एशिया के पहले
डाक-टिकट तो थे ही, विश्व के पहले गोलाकार टिकट भी थे। संग्रहकर्ता इस प्रकार के टिकटों को
महत्वपूर्ण समझते हैं और आधे आने मूल्य के इन टिकटों को आज सबसे
बहुमूल्य
टिकटों
में गिनते हैं।
समय के साथ जैसे जैसे टिकटों का प्रचलन बढ़ा,
१८६० से १८८० के बीच बच्चों और किशोरों में टिकट संग्रह का शौक
पनपने लगा। दूसरी ओर अनेक वयस्क लोगों ने इनके प्रति गंभीर
दृष्टिकोण अपनाया। टिकटों को जमा करना शुरू किया, उन्हें
संरक्षित किया, उनके रेकार्ड रखे और उन पर शोध आलेख प्रकाशित
किए। जल्दी ही इन संरक्षित टिकटों का मूल्य बढ़ गया क्यों कि
इनमें से कुछ तो ऐतिहासिक विरासत बन गए थे। ये अनुपलब्ध हुए और
बहुमूल्य बन गए। ग्रेट ब्रिटेन के बाद अन्य कई देशो द्वारा
डाक-टिकट जारी किये गये।
१९२० तक यह टिकट संग्रह का शौक आम जनता तक
पहुँचने लगा। उनको अनुपलब्ध तथा बहुमूल्य टिकटों की जानकारी होने
लगी और लोग टिकट संभालकर रखने लगे। नया टिकट जारी होता तो लोग
डाकघर पर उसे खरीदने के
लिए
भीड़ लगाते। लगभग
५० वर्षों तक इस शौक का
ऐसा नशा जारी रहा कि उस समय का शायद ही कोई व्यक्ति हो जिसने
जीवन में किसी न किसी समय यह शौक न अपनाया हो। इसी समय टिकट
संग्रह के शौक पर आधारित टिकट भी जारी किए गए। ऊपर दाहिनी ओर
जर्मनी के टिकट में टिकटों के शौकीन एक व्यक्ति को टिकट पर अंकित
बारीक अक्षर आवर्धक लेंस (मैग्नीफाइंग ग्लास) की सहायता से पढ़ते
हुए दिखाया गया है। आवर्धक लेंस टिकट-संग्रहकर्ताओं का एक
महत्वपूर्ण उपकरण है। यही कारण है कि अनेक डाक-टिकटों के संग्रह
से संबंधित अनेक टिकटों में इसे दिखाया जाता है। ऊपर हरे रंग के
८ सेंट के टिकट को अमेरिका के डाक-टिकटों की १२५वीं
वर्षगाँठ के अवसर पर १९७२
में जारी किया गया था।
दाहिनी ओर एक रुपये मूल्य का भारतीय टिकट,
नीचे बायीं ओर का यू.एस. का टिकट तथा उसके नीचे बांग्लादेश के
लाल रंग के तिकोने टिकटों का एक जोड़ा टिकट संग्रह के शौक पर
आधारित महत्वपूर्ण
टिकटों
में से हैं। दाहिनी ओर प्रदर्शित १
रुपये मूल्य के डाक-टिकट को १९७०
में भारत की राष्ट्रीय डाक-टिकट प्रदर्शनी के अवसर पर जारी किया
गया था। इसी प्रकार नीचे दाहिनी ओर जारी बांग्लादेश के
तिकोने टिकटों का जोड़ा १९८४ में पहली बांग्लादेश डाक-टिकट
प्रदर्शनी अवसर पर जारी किया गया था। कभी कभी डाक-टिकटों के साथ
कुछ मनोरंजक बातें भी जुड़ी होती हैं। उदाहरण के लिए ऊपर तथा
दायीं ओर के दोनो टिकटों में से पहले यूएस के टिकट में यूएस का
ही एक और टिकट तथा भारत के टिकट में भारत का ही एक और टिकट
प्रदर्शित किया गया है। जबकि नीचे की ओर यूएस के टिकट में दिखाए
गए दोनों टिकट स्वीडन के हैं। इस प्रकार के मनोरंजक तथ्य
डाक-टिकटों के संग्रह को और भी मनोरंजक बनाते हैं।
१९४०-५० तक डाक-टिकटों के शौक
ने देश-विदेश के लोगों को मिलाना शुरू
कर दिया था। टिकट इकट्ठा करने के लिए
लोग पत्र-मित्र बनाते थे,
अपने देश के डाक-टिकटों को दूसरे देश के मित्र को भेजते थे और
दूसरे देश के डाकटिकट मँगवाते थे। पत्र मित्रता के इस शौक से
डाक-टिकटों का आदान प्रदान तो होता ही था लोग एक विभिन्न देशों
के विषय में अनेक ऐसी बातें भी जानते थे जो किताबों में नहीं
लिखी होती हैं। उस समय टीवी और आवागमन के साधन आम न होने के
कारण देश विदेश की जानकारी का ये बहुत ही रोचक साधन बने।
पत्र-पत्रिकाओं में टिकट से संबंधित स्तंभ होते और इनके विषय में
बहुत सी जानकारियों को जन सामान्य तक पहुँचाया जाता। पत्र
मित्रों के पतों की लंबी सूचियाँ भी उस समय की पत्रिकाओं में
प्रकाशित की जाती थीं।
धीरे धीरे डाक टिकटों के संग्रह की विभिन्न
शैलियों का भी जन्म हुआ। लोग इसे अपनी जीवन शैली, परिस्थितियों और
रुचि के अनुसार
अनुकूलित करने लगे। इस परंपरा के अनुसार कुछ लोग एक देश या
महाद्वीप के डाक-टिकट संग्रह करने लगे तो कुछ एक विषय से संबंधित
डाक-टिकट। आज अनेक लोग इस प्रकार की
शैलियों का अनुकरण करते हुए और अपनी अपनी पसंद के किसी विशेष
विषय के डाक टिकटों का संग्रह करके आनंद उठाते है। विषयों से संबंधित डाक टिकटों के संग्रह में
अधिकांश लोग पशु, पक्षी, फल, फूल, तितलियाँ, खेलकूद, महात्मा
गांधी, महानुभावों, पुल, इमारतें आदि विषयों और दुनिया भर की
घटनाओं के रंगीन और सुंदर चित्रों से सजे डाक टिकटों को एकत्रित
करना पसंद करते है।
प्रत्येक देश हर साल भिन्न भिन्न विषयों पर डाक-टिकट जारी करते
हैं और जानकारी का बड़ा खजाना विश्व को सौप देते हैं। इस प्रकार
किसी विषय में गहरी जानकारी प्राप्त करने के लिए उस विषय के
डाकटिकटों का संग्रह करना एक रोचक अनुभव हो सकता है। डाक-टिकट
संग्रह के शौक के बारे में महत्वपूर्ण बात यह है कि यह हर उम्र
के लोगों को मनोरंजन प्रदान करता है। बचपन में ज्ञान एवं
मनोरंजन, वयस्कों में आनंद और तनावमुक्ति तथा बड़ी उम्र में
दिमाग को सक्रियता प्रदान करने वाला इससे रोचक कोई शौक नहीं। इस
तरह सभी पीढ़ियों के लिये डाक टिकटों का संग्रह एक प्रेरक और
लाभप्रद अभिरुचि है। दोस्तों, क्यों न आप भी डाक-टिकट के संग्रह
के इस अनोखे शौक की शुरूआत करें जो आपको हर उम्र में क्रियाशील
और गतिशील रखे।