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						 वह 
						दफ्तर जाने को तैयार था... कार की चाबी, रूमाल, बटुआ, फोन 
						इत्यादि समेट रहा था कि पिताजी धीरे धीरे छड़ी टेकते कमरे 
						से बाहर निकले, एक हाथ छड़ी पर दूसरा कुर्ते की जेब में, 
						पिता को इस समय इस मुद्रा में बाहर आता देख वह मन ही मन 
						बुदबुदाया- हो गयी देर! 
 उसका अंदाज़ा सही था, पिता ने उसे ही पुकारा और जेब में से 
						हाथ निकाला तो उसमें घड़ी थी, आगे बढ़ाते हुए बोले- "बेटा 
						इसका पट्टा घिस गया है ज़रा बदलवा देना."
 
 चुपचाप पिता के हाथ से घड़ी ले वह बाहर निकल आया। दशकों 
						पुरानी इस घड़ी से पिता के लगाव को समझ नहीं पाता था 
						वह...जब से होश सँभाला इसे पिता के हाथ में बंधे देखा था। 
						जब वह आर्थिक रूप से बहुत सुदृढ़ थे उन्होंने तब भी वह घड़ी 
						नहीं बदली थी। सेवानिवृत्ति पर कार्यालय से दो घड़ियाँ 
						उपहार मिलीं किन्तु पिता ने एक उसे और एक उसके बड़े भाई को 
						दे दी थी। यों ऐसे कंजूस भी न थे... हाँ सोच-समझकर खर्च 
						करने की आदत ज़रूर थी, पर अपने लिए वह भी कम। आज उसने पिता 
						की घड़ी बदलने का निर्णय लिया और लगभग वैसी ही नई घड़ी 
						खरीद शाम को घर पहुँचा। सीधे पिता के कमरे में गया और कहा 
						बाबूजी हाथ आगे करिए, पिता उसकी उत्कंठा देख मुस्कुराए और 
						कलाई आगे की। कलाई सामने आते ही उसने झट से नई घड़ी बाँध 
						दी। उसे देखते ही पिता का मुँह उतर गया। धीरे से बोले -
 "बेटा मेरी घड़ी क्या हुई?"....
 "पिताजी मैं चाहता हूँ अब आप वह घड़ी बदल दें..."
 "बेटा मुझे वही घड़ी चाहिए...पट्टा न बदला हो तो भी कोई 
						बात नहीं।"
 "क्यों पिताजी, इस घड़ी में कोई कमी है?"
 "हाँ बेटा जो मेरी उस घड़ी में है वह किसी और में हो ही 
						नहीं सकता"
 "तो उसमें ऐसा क्या है?"
 "वह तुम्हारी माँ की भेंट थी, गृहस्थी आरंभ की तब आर्थिक 
						रूप से हम बहुत सुदृढ़ नहीं थे, तुम्हारी माँ भी एक स्कूल 
						में अध्यापिका बन गई थी...यह उनके पहले वेतन की घड़ी थी, 
						जानते हो पूरे सात सौ रुपए की थी..."
 "पिताजी आज मैं आपके लिए जो घड़ी लाया वह पाँच हज़ार की 
						है।"
 "मेरी बात पूरी होने दो बच्चे...तुम्हारी माँ उस समय तीन 
						सौ वेतन पाती थी...घर का सामान लेने गए तब मैंने बस एक बार 
						उस घड़ी को देखकर कहा था, कुछ अच्छा समय होगा तब ऐसी घड़ी 
						लूँगा और तुम्हारी माँ अगले दिन अपनी सब जमा पूँजी लगा वह 
						घड़ी ले आई थी और बोली थी- इस घर में सदा अच्छा समय होगा।"
 
 यह सुनकर उसकी आँखे नम हो गई थीं.
 आज बरसों बाद उसने वही घड़ी अपने बेटे को पट्टा बदलवाने को 
						दी।
 
                      १ दिसंबर २०१८ |