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 १. ११. २०१८

इस माह-

अनुभूति में-
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दीपावली के अवसर पर विविध विधाओं में अनेक रचनाकारों की मनभाव रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस माह दीपावली के अवसर पर हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं - दीपावली के पकवान

स्वास्थ्य में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के २७ उपाय- २६- मालिश है महत्वपूर्ण।

बागबानी में- वनस्पति एवं मनुष्य दोनो का गहरा संबंध है फिर ज्योतिष में ये दोनो अलग कैसे हो सकते हैं। जानें- ११- सब प्रकार की समृद्धि के लिये लक्ष्मीतरु।

जानकारी में- भारत के ऐसे अजब गजब गाँव- जैसे विश्व में अन्यत्र शायद ही कहीं हों-  ११- कलाकारों का गाँव रघुराजपुर।

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (नवंबर) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- डॉ. ईश्‍वर सिंह तेवतिया की कलम से जगदीश पंकज के नवगीत संग्रह- ''समय है संभावना का'' से परिचय।

वर्ग पहेली- ३०७
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य--संस्कृति-में---दीपावली के अवसर पर

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
अशोक कुमार प्रजापति की कहानी- कर्ज के दस रुपये

कार्तिक के शुरुआती दिन थे। दिन उजला और धूप गुनगुनी होने लगी थी। मीलभर कच्ची डगर की धूल फाँकता स्कूल से जब घर लौटा, उस वक्त मेरी माँ मिट्टी की मूर्तियों के नाक नक्श दुरुस्त करने के काम में बड़ी तन्मयता से लगी थी। वह यह उबाऊ काम अपने सधे हाथों से अत्यंत धीमे-धीमे कर रही थी ताकि उनकी आकृति सही सलामत रहे। खंडित मूरत को कोई कौड़ी के भाव भी नहीं पूछता। तनिक भी टूट-फूट हुई नहीं कि सप्ताह भर की मेहनत अकारथ। सुडौल और सुन्दर, आभायुक्त मूरत ही लोगों के घरों के छोटे-छोटे मंदिरों और बच्चों के घरौंदों में अपना स्थान पाती है। दीपावली नजदीक थी। मुझे आता देख गीले मिट्टी से सने हाथ रोक कर माँ मेरी तरफ देखने लगी- ''क्या हुआ रे मकनू? आज फिर से रोनी सूरत क्यों बना रखी है? लगता है आज फिर तू परमेसर पासी की ताड़ी जमीन पर उड़ेल आया है...कि मैं झूठ बोल रही हूँ?" जवाब में मैं चुप ही रहा और खूँटी से अपना बस्ता लटका कर हाथ-मुँह धोने कुएँ पर चला गया। आगे...

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जयराम सिंह गौर
की लघुकथा- वृंदावन में राम
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ललित शर्मा से कलादीर्घा में
श्रीराम के पुरातात्विक कला शिल्प
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लीला कृपलानी का आलेख
दीप ज्योति परम ब्रह्म
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दीपावली के अवसर पर-
मनोहर पुरी का आलेख- पर्वपुंज दीपावली

पिछले अंकों से- नवरात्र के अवसर पर

प्रदीपकुमार सिंह कुशवाह
की लघुकथा- नवरात्र
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पर्व परिचय में-
लोक पर्व टेसू-झाँझी
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सुधा अरोड़ा का दृष्टिकोण-
स्त्रीशक्ति की भूमिका से उठते सवाल
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नवरात्र के अवसर पर-
जितेन्द्र चौधरी का आलेख- नवरात्रि में नव-दुर्गा

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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
नासिरा शर्मा की कहानी- असली बात

शहर में फसाद हुए आज पहला ही दिन था। हिंदू-मुसलमान मोहल्लों के बीच तमतमाती हवा बह रही थी। प्रशासन ने मौके की नजाकत देख कड़े पहरे और बंदूक के जोर पर उनके जोश पर रोक जरूर लगा दी थी, मगर अंदर खदबदाते लावे को शांत नहीं कर पाए थे। खाली सड़क और गली में पुलिस की गश्त के बावजूद गुनजान घरों की छतों से कभी-कभार सनसनाती बोतलों और अद्धों का आदान-प्रदान जारी था, जिसका पता लगाना पुलिस के लिए मुश्किल था कि किस घर से हमला किस घर पर हुआ है। सो गोलियों की बौछार और हवाई फायर के दबदबे ने या फिर कबाड़ा खत्म हो जाने के कारण दोनों मोहल्लों में रात के आखिरी पहर के लगभग खामोशी छा गई। सिपाही रामदीन की ड्यूटी बताशे वाली गली में लगी थी। आज दंगे का दूसरा दिन था। पूरा शहर होशियार की मुद्रा में खड़ा था। नए एस.पी. ने कड़े आदेश देते हुए पुलिसकर्मियों से साफ शब्दों में कहा था कि तुम्हारी ड्यूटी है कि कोई घटना न घटे, वरना सबको लाइन हाजिर करवा दूँगा। आगे...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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