वृंदावन
प्रवास पर था कि एक मंदिर से रामायण की चौपाइयों की ध्वनि
आ रही थी, महान आश्चर्य! वृंदावन में रामायण, मैं खिंचता
हुआ उस मंदिर में पहुँच गया वहाँ भगवान श्री राम की मूर्ति
देख कर पुजारी से पूछा, "बाबा वृंदावन में श़्री राम!"
"पहली बार आए हो?" उसने प्रतिप्रश्न किया
"हाँ! "
"तभी!"
"क्या मतलब?"
"तभी नहीं जानते!"
"क्या?"
उसने बताना शुरू किया, "इतना तो जानते ही होंगे, तुलसी राम
भक्त थे और वृंदावन कृष्ण भक्ति का केंद्र, वह एक बार इसी
मंदिर में आए थे, पुजारी ने उनसे कृष्ण के विग्रह को
प्रणाम करने के लिए कहा, इस पर तुलसी ने हाथ जोड़ कर यह
दोहा पढ़ा-
"का छवि वरनुहुं आपकी, भले बने है नाथ!
तुलसी माथा तब झुकय, धनुष-बाण लो हाथ!!."
"फिर?"
मूर्ति के हाथ में वंशी के स्थान पर धनुष-बाण आ गया, और
तुलसी ने साष्टांग प्रणाम किया, तब से यहाँ अखंड रामायण चल
रही है!
१ नवंबर २०१८ |