दीप ज्योति परम
ब्रह्म
- लीला कृपलानी
संसार के लगभग सभी धर्मों में धार्मिक अनुष्ठान,
आराधना, पूजा-पाठ आदि अग्नि को साक्षी मानकर किये जाते
हैं और दीपक अग्नि का प्रतीक है, फिर चाहे मोमबत्ती के
रूप में हो या दिये के रूप में। दीपक का सच क्या है?
दीपक का सच उसके स्वरूप में सन्निहित है। वह मिट्टी का
बना हुआ, अपने अंदर ज्योति को धारण करता है। स्वयं को
जलाकर आलोक बिखेरता है और अंत में मरणधर्मा मिट्टी में
ही समाहित हो जाता है। यदि यही दीपक प्रकाश न देता, तो
क्या इसका मोल होता? कदापि नहीं।
ऐसे ही मनुष्य की देह भी मिट्टी की ही है, परंतु उसकी
आत्मा मिट्टी की नहीं है, अत: वह अपनी ही आत्म-ज्योति
से प्रकाशित होकर अन्य भटकते हुओं को राह दिखायेगा।
उसकी आत्म-ज्योति तभी प्रज्ज्वलित होगी, जब वह काम,
क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के पर्दों से उसे न ढके।
आत्म-ज्योति की लौ यदि इन पाँचों विकारों से ढकी, तो
निश्चित मानिये सच ही जाता रहेगा। माटी के दीपक में भी
जब तक ज्योति प्रकट नहीं होती, तब तक वह भी अपने
स्वरूप से अनभिज्ञ रहता है। मानव जीवन का आंतरिक विकास
ही उसका सच्चा शृंगार है। जीवन रूपी दीपक की लौ तभी
प्रज्ज्वलित हो पायेगी, जब उसमें हृदय की पवित्रता की
छवि समायेगी। भगवान बुद्ध ने कहा था — `अप्प दीपो भव'।
अर्थात् प्रकाश तुम्हारे अंदर है, बस उसको प्रज्ज्वलित
करने की आवश्यकता है, जो हमें स्वयं करना है।
संसार के छलछिद्रों से परे अंतस में प्रेम, करुणा,
दया, सेवा, सहयोग और परोपकारिता का उजास लेकर
वैमनस्यता और अमानवीयता के अंधकार को दूर किया जा
सकेगा। मन के स्वच्छ आकाश में स्वच्छ विचारों की चादर
बिछाकर बैठने से शरीर रूपी दिये के स्वच्छ प्रकाश को
देखना संभव होगा। परंतु ईश कृपा बिना यह बाती जल ही
नहीं पायेगी। ज्ञानी जनों ने कहा है— `सदगुरु की कृपा
से परमात्मा की कृपा का पात्र बनकर ही शरीर रूपी दीपक
में आत्म-ज्योति का आलोक फैलेगा।' इसीलिए कहा गया है —
`दीपज्योति परम् ब्रह्म'। जब तक दीपक जलता नहीं, तब तक
तो वह केवल मिट्टी का एक ठीकरा है। जलने के बाद उसकी
ऊर्ध्वगामी लौ हमें निर्देशित करती है — उठो! अपनी
संकीर्णताओं से ऊँचे उठो। और मेरी तरह तिल-तिल
जलने-गलने का संकल्प लेकर अपनी मरणधर्मा देह का मोह
छोड़कर आत्म प्रकाश को फैलाओ। लेकिन हम सब भ्रम में ही
जीते हैं और मरणधर्मा शरीर को ही सच मान लेते हैं।
प्रसिद्ध शायर इकराम राजस्थानी ठीक फरमाते हैं —
युगों-युगों से जल रहा है, एक माटी का दिया
दे रहा संदेश यह दिन-रात जलना जिंदगी है।
हर अमावस के अँधेरे को निगलना जिंदगी है,
तम स्वयं पीकर उजाले को उगलना जिंदगी है।
हम लोग अक्सर ईश-प्रार्थना में कहते हैं — `तमसो मा
ज्योतिर्गमय', `असतो मा सद्गमय', `मृत्योर्मा अमृतं
गमय'। अर्थात् हे ईश्वर! हमें अंधकार से प्रकाश की ओर,
असत्य से सत्य की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले
चलें, परंतु यह सब तो अंत:ज्योति जलाये बिना संभव नहीं
है।
आइए, थोड़ा पहले ज्योति के बारे में कुछ जान लें। वैदिक
ऋषियों का कहना है कि हमें पाँच स्रोतों से ज्योति
मिलती है। सूर्य, चंद्रमा, अग्नि, वाणी और आत्मा।
सूर्य हमें जीवन भी देता है और प्रकाश भी। जब सूर्य
अस्त होता है, तो चंद्रमा हमें प्रकाश देता है।
चंद्रमा के कृष्ण पक्ष में अग्नि प्रकाश प्रदान करती
है। दीपक उसी अग्नि का प्रतीक है। जिस प्रकार
अग्निशिखा ऊर्ध्वगामी होती है, उसी प्रकार दीपशिखा भी
और जब कभी भी दीपक का प्रकाश न हो, तो वाणी हमें
प्रकाश देती है। अर्थात् जोर से चिल्लाकर आवाज की दिशा
की ओर बढ़ा जा सकता है, परंतु जब वाणी भी काम न करे, तो
आत्मा का प्रकाश हमें राह बताता है। राह भटक जाने पर
अंत:करण से एक आदेश मिलता है — यह सही राह है और जो
आत्मा की आवाज को नहीं सुनता, निश्चित रूप से वह राह
भटक जाता है। दीपक पाँचों ज्योतियों का एक मंगल प्रतीक
है।
किसी भी शुभ कार्य में एक बत्ती अथवा चार बत्तियों
वाला दीपक जलाकर स्तुति की जाती है —
शुभं करोतु कल्याणम् आरोग्यं धन सम्पदा ।
शत्रुर्बुद्धि विनाशाय दीप ज्योतिर्नमोऽस्तुते।।
अर्थात् हे दीप-ज्योति! हमारा मंगल करो, कल्याण करो
हमें आरोग्य, धन-संपत्ति प्रदान करो। साथ ही हमारे
शत्रुओं की दुर्बुद्धि का नाश करो। हम आपको नमन करते
हैं। चार बत्तियों का दीपक जलाने का उद्देश्य है कि
चारों दिशाओं में मंगल हो। इसके विपरीत किसी की मृत्यु
हो जाने पर दीपक को बुझाकर उल्टा पटक देते हैं,
क्योंकि दीपक को जीवन की समाप्ति और मृत्यु का प्रतीक
भी माना जाता है।
सनातन परंपरा के अनुसार किसी भी धार्मिक अनुष्ठान की
सफलता के लिये अखंड दीपक जलाया जाता है। अखंड दीपक
जलाने के पीछे ऐसी धारणा है कि जब तक कार्य पूर्ण न हो
जाये, तब तक दीपक जलता रहना चाहिए। रामायण के अखंड पाठ
के समय अखंड दीप प्रज्ज्वलित किया जाता है और ऐसा माना
जाता है कि जब तक रामायण पाठ चलता है भगवान राम हनुमान
और अपने पूरे परिवार सहित वहाँ अवश्य मौजूद रहते हैं।
नवरात्रि में भी माँ दुर्गा की उपस्थिति मानी जाती है
और नौ दिनों तक अखंड दीप जलाया जाता है। अखंड दीप
प्रज्ज्वलन एक कठिन साधना है, जिसमें पूर्ण सतर्कता
रखते हुए यह संकल्प लिया जाता है कि जिस मनोवांछित
इच्छापूर्ति के लिए मैं यह अनुष्ठान कर रहा हूँ और
जितने समय के लिए कर रहा हूँ, उतने दिनों तक मैं अखंड
दीप प्रज्ज्वलित करता हूँ।
बात जब दीपक की चली है, तो कुछ आरती के बारे में भी
जान लिया जाय, क्योंकि किसी भी आराध्या की आरती दीपक
जला कर ही की जाती है। आरती के लिए पंचप्रदीप यानी
पाँच बत्तियों वाला दिया ही श्रेष्ठ माना जाता है।
इसके अतिरिक्त एक, सात अथवा विषम संख्या वाले दीप
जलाकर भी आरती की जा सकती है। एक विशेष बात यह है कि
शास्त्रों के साथ विज्ञान भी यह स्वीकार करता है कि
पूजन, आरती, आराधना में दीपशिखा वातावरण में व्याप्त
कीटाणुओं का नाश करती है। दीप प्रज्ज्वलन का ध्येय
शास्त्र सम्मत होना चाहिए। यथा — देवताओं को प्रसन्न
करने के लिए शुद्ध घी का दीपक जलाना, शत्रु दमन और
क्रूर ग्रहों की शांति के लिए सरसों के तेल का दीपक
जलाना उचित है। साथ ही धन-धान्य की वृद्धि और कष्ट
निवारण के लिए जलते दीपक के नीचे सप्त धान्य रखना
चाहिए।
दीपावली के अवसर पर धन त्रयोदशी लेकर भैजादूज तक मनाये
जाने वाले पाँच दिवसीय दीपोत्सव की विशेषता यही है कि
जब निविड़ अंधकार से निपटने के लिए माचिस की तीली अपने
को जलाने का साहस करती है, तो दीपक उस तीली के बुझने
से पहले ही अपने को ज्योतिर्मय करके सर्वत्र प्रकाश
फैला देता है, क्योंकि जग में उजियाला लाने के लिए वह
संकल्पबद्ध था। स्वयं को जलाने के लिए उसके अंदर छिपी
क्षमता थी, जो तीली का संपर्क पाकर प्रकट हुई।
दीपक श्रम का प्रतीक है, उसकी लौ तप का, उसके प्रकाश
में आशा की किरण है, त्याग का भाव है और आत्म-विश्वास
के साथ अंधकार से जूझने का उपक्रम है। आत्मा के अलौलिक
प्रकाश में दिये के लौकिक प्रकाश को ले आयें तो तय है
कि एक प्रकाश स्तंभ बन जाएगा। आवश्यकता इस बात की है
कि हम दीपक की लौ को साक्षी मानकर संकल्प लें कि हम भी
दीपक की भाँति अपना सर्वस्व जलाकर, अपने अहं को गलाकर
विश्व कल्याण की भावना को मन में संजोकर ईश्वर से यह
प्रार्थना करें कि आप हमें ऐसी सामर्थ्य देना कि हम
उच्च आदर्शों की ओर बढ़ते जायें और समवेत स्वरों में
गाएँ —
ममता के दीप जले
समता के दीप जले
गली-गली, आँगन-आँगन क्षमता के दीप जले
अँधियारी रात ढले, मानस प्रीत में पले
आओ सखी जलाओ ज्योति दीपोत्सव के दीप जले।
१ नवंबर २०१८ |