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नवरात्र में नवदुर्गा
- जितेन्द्र चौधरी
नवरात्रि पर्व पूरे भारत में बड़े हर्षोउल्लास के साथ
मनाया जाता है, यह नौ दिनों तक चलता है। इन नौ दिनों
मे हम तीन देवियों पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती के नौ
स्वरूपों की पूजा करते हैं। पहले तीन दिन पार्वती के
तीन स्वरूपों (कुमार, पार्वती और काली), अगले तीन दिन
लक्ष्मी माता के
स्वरूपों और आखिरी के तीन दिन सरस्वती माता के
स्वरूपों की पूजा करते हैं। ये तीनों
देवियाँ
शक्ति, सम्पदा और ज्ञान का प्रतिनिधित्व करती हैं।
आइये जाने इन नौ रूपों के बारे कुछ विस्तार से-
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प्रथम दुर्गा श्री शैलपुत्री-
आदिशक्ति श्री दुर्गा का प्रथम रूप श्री शैलपुत्री है।
पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण ये शैलपुत्री
कहलाती हैं। नवरात्र के प्रथम दिन इनकी पूजा और आराधना
की जाती है। शैलपुत्री का वाहन वृषभ है। इनके दो हाथ
हैं। वे दाहिने हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं, और
उनके बाएँ हाथ में कमल सुशोभित है। इनके पूजन से
मूलाधर चक्र जाग्रत होता है, जिससे साधक को मूलाधार
चक्र जाग्रत होने से प्राप्त होने वाली सिद्धियाँ
स्वतः प्राप्त हो जाती हैं।
द्वितीय दुर्गा श्री ब्रह्मचारिणी-
आदिशक्ति श्री दुर्गा का द्वितीय रूप श्री
ब्रह्मचारिणी है। यहाँ ब्रह्मचारिणी का तात्पर्य
तपश्चारिणी है। इन्होंने भगवान शंकर को पति रूप से
प्राप्त करने के लिये घोप तपस्या की थी। अतः ये
तपश्चारिणी और ब्रह्मचारिणी के नाम से विख्यात हैं।
इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में
कमण्डल है। नवरात्रि के द्वितीय दिन इनकी पूजा और
अर्चना की जाती है। इनकी उपासना से मनुष्य के तप,
त्याग, वैराग्य सदाचार, संयम की वृद्धि होती है तथा मन
कर्तव्य पथ से विचलित नहीं होता।
तृतीय
दुर्गा श्री चंद्रघंटा-
आदिशक्ति श्री दुर्गा का तृतीय रूप श्री चंद्रघंटा है।
माँ का यह स्वरूप शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके
माथे पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसी लिये
इन्हें चंद्रघंटा कहा जाता है। इनका शरीर स्वर्ण के
समान उज्ज्वल है, इनके दस हाथ हैं। दसों हाथों में
खड्ग, बाण आदि शस्त्र सुशोभित रहते हैं। इनका वाहन
सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिये उद्यत रहने वाली
है। इनके घंटे की भयानक चंडध्वनि से दानव, अत्याचारी,
दैत्य, राक्षस डरते रहते हैं। नवरात्रि के तृतीय दिन
इनका पूजन और अर्चन किया जाता है। इनके पूजन से साधक
को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियाँ स्वतः
प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति
मिलती है।
चतुर्थ दुर्गा श्री कूष्मांडा-
आदिशक्ति श्री दुर्गा का चतुर्थ रूप श्री कूष्मांडा
है। अपने उदर से अंड अर्थात् ब्रह्मांड को उत्पन्न
करने के कारण इन्हें कूष्मांडा देवी के नाम से पुकारा
जाता है। इनकी आठ भुजायें हैं इसीलिये इन्हें अष्टभुजा
कहा जाता है। इनके सात हाथों में कमण्डल, धनुष, बाण,
कमल पुष्प, अमृतपूर्ण कलश, चक्र तथा गदा है। आठवें हाथ
में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है।
नवरात्रि के चतुर्थ दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती
है। श्री कूष्मांडा के पूजन से अनाहत चक्र जाग्रति की
सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं। श्री कूष्मांडा की उपासना
से भक्तों के समस्त रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इनकी
भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है।
पंचम दुर्गा श्री स्कंदमाता-
आदिशक्ति
श्री दुर्गा का पंचम रूप श्री स्कंदमाता है। श्री
स्कंद (कुमार कार्तिकेय) की माता होने के कारण इन्हें
स्कंदमाता कहा जाता है। स्कन्द मातृस्वरूपिणी देवी की
चार भुजायें हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान
स्कन्द को गोद में पकड़े हैं और दाहिनी निचली भुजा जो
ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकड़ा हुआ है। माँ का वर्ण
पूर्णतः शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती
हैं। इसी से इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता है।
इनका वाहन भी सिंह है। नवरात्रि के पंचम दिन इनकी पूजा
और आराधना की जाती है। इनकी आराधना से विशुद्ध चक्र के
जाग्रत होने वाली सिद्धियाँ स्वतः प्राप्त हो जाती हैं
तथा मृत्युलोक में ही साधक को परम शांति और सुख का
अनुभव होने लगता है। उसके लिये मोक्ष का द्वार
स्वंयमेव सुलभ हो जाता है।
षष्ठम दुर्गा श्री कात्यायनी-
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आदिशक्ति श्री दुर्गा का षष्ठम् रूप श्री कात्यायनी।
महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर आदिशक्ति
ने उनके यहाँ पुत्री के रूप में जन्म लिया था। इसलिये
वे कात्यायनी कहलाती हैं। इनकी चार भुजायें हैं, इनका
दाहिना ऊपर का हाथ अभय मुद्रा में है, नीचे का हाथ
वरदमुद्रा में है। बाएँ ऊपर वाले हाथ में तलवार और
निचले हाथ में कमल का फूल है और इनका वाहन सिंह है।
नवरात्रि के षष्ठम दिन इनकी पूजा और आराधना होती है।
श्री कात्यायनी की उपासना से आज्ञा चक्र जाग्रति की
सिद्धियाँ साधक को स्वयंमेव प्राप्त हो जाती हैं। वह
इस लोक में स्थित रहकर भी अलौलिक तेज और प्रभाव से
युक्त हो जाता है तथा उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि
सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं।
सप्तम दुर्गा श्री कालरात्रि-
आदिशक्ति श्रीदुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि है।
काल का नाश करने के कारण ये कालरात्रि कहलाती हैं।
इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्माण्ड की तरह गोल हैं,
जिनमें से बिजली की तरह चमकीली किरणें निकलती रहती
हैं। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से अग्नि की
भयंकर ज्वालायें निकलती रहती हैं। इनका वाहन 'गर्दभ'
है। दाहिना ऊपर का हाथ वरद मुद्रा में है, दाहिना नीचे
वाला हाथ अभयमुद्रा में है। बायीं ओर के ऊपर वाले हाथ
में लोहे का काँटा और निचले हाथ में खड्ग है। माँ का
यह स्वरूप देखने में अत्यन्त भयानक है किन्तु सदैव शुभ
फलदायक है। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना
की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र में
स्थिर कर साधना करनी चाहिए। श्री कालरात्रि की साधना
से
साधक को भानुचक्र जाग्रति की सिद्धियाँ स्वयंमेव
प्राप्त हो जाती हैं।
अष्टम दुर्गा श्री महागौरी-
आदिशक्ति श्री दुर्गा का अष्टम रूप श्री महागौरी हैं।
इनका वर्ण पूर्णतः गौर है, इसलिये ये महागौरी कहलाती
हैं। इनका दाहिना ऊपरी हाथ में अभय मुद्रा में और
निचले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। बाएँ ऊपर वाले हाथ
में डमरू और बायाँ नीचे वाला हाथ वर की शान्त मुद्रा
में है। नवरात्रि के अष्टम दिन इनका पूजन और अर्चन
किया जाता है। इन दिन साधक को अपना चित्त सोमचक्र
(उर्ध्व ललाट) में स्थिर करके साधना करनी चाहिए। श्री
महागौरी की आराधना से सोम चक्र जाग्रति की सिद्धियों
की प्राप्ति होती है। इनकी उपासना से असंभव कार्य भी
संभव हो जाते हैं।
नवम दुर्गा श्री सिद्धिदात्री-
आदिशक्ति श्री दुर्गा का नवम् रूप श्री
सिद्धिदात्री है। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता
हैं, इसीलिये ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। माता
सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं। इनका वाहन सिंह है।
ये कमल पुष्प पर आसीन होती हैं। इनकी दाहिनी नीचे वाली
भुजा में चक्र, ऊपर वाली भुजा में गदा और बाईं तरफ
नीचे वाले हाथ में शंख और ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प
है। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना की जाती
है। इस दिन साधक को अपना चित्त निर्वाण चक्र (मध्य
कपाल) में स्थिर कर अपनी साधना करनी चाहिए। श्री
सिद्धिदात्री की साधना करने वाले साधक को सभी
सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी
उसके लिये
अगम्य नहीं रह जाता।
१
अक्तूबर २०१८ |