मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


घर-परिवार बागबानी


ज्योतिष से वृक्ष और पौधों
का संबन्ध
(संकलित)


११- सर्व समृद्धि के लिये लक्ष्मीतरु।

लक्ष्मी तरु, कल्प तरु या सीमारुबा (वैज्ञानिक नाम- Simarouba Glauca) एक बहूपयोगी वृक्ष है जिसके सभी अंग उपयोग में आते हैं। इसके आस-पास साँप, मच्छर प्रायः नहीं आते। इसकी पत्तियाँ केंसर, उच्च रक्तचाप, मधुमेह सहित अनेक रोगों में उपयोगी पाई गई हैं। इसके फल से रस और मदिरा बनाई जाती है। इसके बीज से लाभकारी खाद्य तेल निकाला जाता है। इससे बायोडीजल बनता है और इससे तेल निकालने के बाद बचे अवशेष को खाद के रुप में उपयोग किया जाता है। यह वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करता है और अनुपजाऊ धरती पर भी इसे उगाया जा सकता है।

लक्ष्मी तरु आकार में बहुत बड़े नहीं होते। एक वृक्ष को बड़ा होने में ६ से ८ वर्ष का समय लगता है और वयस्क होने के बाद यह वृक्ष ४-५ वर्षों तक उत्पादन सक्षम होता है। दिसंबर के महीने में इनमें फूल आने शुरू होते हैं और फरवरी मार्च-अप्रैल तक ये फूल वयस्क हो जाते हैं। यह पेड़ १०-४० डिग्री सेल्सियस के तापमान में आसानी से फलता फूलता है अतः भारत के लगभग सभी प्रांतों के अनुकूल है। इसे गाय, भेड़, बकरी नहीं खाते, इसकी घनी पत्तियाँ बडी मात्रा में झर कर मिट्टी को उपजाऊ बनाती हैं। इसलिये इसे इसे बंजर एवं बेकार भूमि में भी विकसित किया जा सकता है। इसका जीवन ७० वर्ष का होता है। इसकी लकड़ी दीमक प्रतिरोधी है तथा इसमें कीट व कीड़े नहीं लगते। अतः इसकी देखभाल की ज्यादा जरूरत नहीं पड़ती। इसकी लम्बी जड़ें मिट्टी के कटाव को रोकती हैं अतः कटाव रोकने के लिये इसका अच्छा प्रयोग किया जा सकता है।

यह पौधा एक प्राकृतिक औषधि भी है। स्वदेशी भारतीय जनजातियाँ इसकी छाल से मलेरिया व पेचिश का इलाज करती हैं। दक्षिणी अमेरिका में लक्ष्मीतरु की छाल का बुखार, मलेरिया, पेचिस को रोकने व रक्तचाप को रोकने में टॉनिक के रूप प्रयोग किया जाता है। इसकी पत्तियों और कोमल टहनियों को उबाल कर बनाए गए काढ़े से केंसर, और अल्सर सहित कई प्रकार की बीमारियों का उपचार होता है।

१ नवंबर २०१८

पृष्ठ- . . . . . . . . . १०. ११. १२.

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।