इस पखवारे- |
अनुभूति-में-
मुकुंद कौशल, अनीता मांडा, ब्रजेश नीरज, सपना मांगलिक और अनिल कुमार वर्मा की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक
शुचि लाई हैं पर्वों के अवसर पर विशेष रूप से अभिव्यक्ति के
पाठकों के लिये- समोसे।
|
फेंगशुई
में-
२४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर
जीवन को सुखमय बना सकते हैं-
२३- बेसमेंट फ्लैट में फेंगशुई |
बागबानी-
के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव-
२३-
स्वीट पी की फूल टोकरी। |
सुंदर घर-
शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को
आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
२३- लुभावना बहुरंगी
संतुलन |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- आज के दिन (१ दिसंबर को) काका कालेलकर, राजा
महेन्द्र प्रताप, मेजर शैतान सिंह, मेधापाटकर, उदित कुमार ...
विस्तार से
|
संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है-
मालिनी गौतम की कलम से गणेश गंभीर के नवगीत संग्रह-
संवत बदले का परिचय। |
वर्ग पहेली- २८१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
|
हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
|
साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
दिव्या विजय की कहानी-
बिट्टो
कभी कभी ज़िन्दगी में घटने वाले
हादसे ज़िन्दगी का विभाजन कर देते हैं। ज़िन्दगी दो हिस्सों में
बँट जाती है। एक हादसे के पहले वाली। दूसरी हादसे के बाद वाली।
हर बात ऐसे ही याद रह जाती है, उस घटना की लकीर से कटी हुई।
जैसे नीलाभ हर बात यों ही याद करता है। बिट्टो के पहले और
बिट्टो के बाद। छोटा सा कस्बा था।
पेइंग गेस्ट जैसी सुविधाएँ तब यहाँ प्रचलित नहीं थीं।
किरायेदार को खाना खिलाने की आफत मोल लेना मध्यमवर्गीय घरों
में नयी बात थी जिसके लिए घर की स्त्रियाँ राजी नहीं होती थीं।
नए आदमी का घर के भीतर प्रवेश सावधानी की दृष्टि से ठीक नहीं
माना जाता था। जवान होती लड़कियाँ हर घर में थीं। एक अलग दरवाजे
से किरायेदार का आना जाना तय रहता था। और उसमें भी वक़्त तय था।
ज़्यादा देर होने पर किच किच होने की पूरी सम्भावना रहती थी।
गुजरात में दूरांत स्थित इस कस्बे में बगैर 'खाने पीने' वाले
किरायेदार को ही तरजीह दी जाती थी। मकान पक्के थे पर कस्बे के
मुहाने पर कच्चे मकानों की लड़ियाँ खेतों के संग संग पिरोई हुई
चलती थीं।
...
आगे-
*
आलोक सक्सेना का व्यंग्य
सर्वर डाउन है
*
अशोक कुमार शुक्ल के साथ
हरदोई के प्रमुख पर्यटन स्थल
*
हजारी प्रसाद द्विवेदी का
ललित निबंध-
कुटज
*
पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के संस्मरण
''बड़ी
सड़क की तेज गली में'' का पाँचवाँ भाग |
|
कल्पना रामानी की
लघुकथा-
मातृ-मन
*
रवीन्द्र उपाध्याय का आलेख
द्यूतक्रीडा इतिहास के
झरोखे से
*
पर्यटन में स्वाती तिवारी की
कलम से-
वन
झरने की धार
*
पुनर्पाठ में अतुल अरोरा के संस्मरण
''बड़ी
सड़क की तेज गली में'' का चौथा भाग
*
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है यू.एस.ए. से अनिल प्रभा
कुमार की कहानी-
जिनकी गोद भराई नहीं होती
चाय
का प्याला साथ की तिपाई पर रखते हुए, माँ ने प्यार से उसके सिर
पर हाथ फेरा।
"उठ जा बेटे, आज तो तेरे लिये तेरी भाभी ने बहुत सा इन्तज़ाम
किया हुआ है। चलना नहीं।"
उसने कुनमुना कर आँखे खोलीं। निगाहें माँ की बजाए साथ लगी
बैसीनेट में लेटी बच्ची पर पड़ीं। मुस्कुरा उठी, हाथ बढ़ा कर
उसका पाँव सहला दिया।
बच्ची उठ चुकी थी, किलकारियाँ मार रही थी। माँ ने बच्ची को उठा
कर उसे पकड़ा दिया। ढेर सारी चुम्मियाँ लेने के बाद वह हड़बड़ा कर
उठी - "अरे यह तो गीली है?"
"मैं इसका ख़्याल कर लूँगी, तू उठ कर तैयार हो जा।" कहते हुए
माँ ने बच्ची को उससे ले लिया।
"माँ, भाभी को इतना ताम-झाम करने की क्या ज़रूरत थी। बेबी -
शॉवर तो बच्चा पैदा होने से पहले किया जाता है, बाद में थोड़े
ही।"
"मैंने ही उसे रोका था। जब तक गोद लेने की सारी औपचारिकताएँ
पूरी होकर, बेबी...
आगे- |
|