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हास्य व्यंग्य

सर्वर डाउन है
- आलोक सक्सेना


जी हाँ, फिलहाल अभी तो हमारा सर्वर डाउन है लेकिन फिर भी हम आपको चुनाव की हवा का रुख बताने के लिए तैयार हो चुके हैं। वैसे तो आपको मुझसे ज्यादा अनुभव है कि किसी भी सरकारी विभाग की खिड़की समय से पहले और समय के बाद नहीं खुलती। प्रातः कार्यालय खुलने के समय से एक-दो घंटे बाद व शाम को कार्यालय बंद होने के समय से लगभग आधा घंटा पहले वहाँ ड्यूटी पर तैनात कर्मचारी को या तो लघुशंका के लिए जाना पड़ जाता है, जो कि बिना वजह लंबी हो जाती है या फिर वह खिड़की पर आपाधापी कर रही जनता की परवाह किए बिना चाय-नाश्ता करने ही चला जाता है। उच्चाधिकारी से जाकर मिलना चाहो तो वहाँ पर उसका चश्मा व पेन तो टेबल पर रखा होता है मगर वह आपको पूरे कार्यालय की अनेक बार परिक्रमा लगाने के बावजूद भी नहीं मिलता। आप जरूरत से ज्यादा समझदार और जिद्दी हैं तो आपको पता करने पर पता चलता है कि साहब आए तो हैं मगर कहाँ गए हैं पता नहीं संभवतः मंत्रालय गए होंगे या डायरेक्ट्रेट की मीटिंग में। दूसरी तरफ हमारे देश में आजकल के कार्यालयों में एक नई समस्या आ घिरी है कि जनाब कर्मचारी मौजूद है तो कंप्यूटर जी को कोमा में जाते हुए ज्यादा देर नहीं लगती, आपका नंबर आते ही उनका सर्वर डाउन हो जाता है। कर्मचारी द्वारा बार-बार रीस्टार्ट करने पर भी काम नहीं करता, ऐसे में बेचारा कर्मचारी भला क्या करे? काम न करने के स्वभाव वाले कर्मचारी सर्वर डाउन करना अच्छी तरह से जानते हैं।

इन सब विषम परिस्थितियों के बावजूद हमने अपने कंप्यूटर महाशय के सर्वर अप होते ही उसे आगामी दिनों में सर्वर डाउन न होने की शपथ दिलाते हुए गूगल महाशय को अपलोड करके केवल सत्य बोलने हेतु तैयार कर दिया है कि वह आपको समय से पहले आगामी चुनावी पोल की पोल खोल-खोल कर बताए। आगामी चुनाव की इस पोल खोलने की प्रक्रिया को सर्वेक्षण नाम दिया गया है। आजकल अपने देश में चुनाव सर्वेक्षण का दौर जारी है। सभी चुनावी पार्टियों के पार्टी प्रमुख व कार्यकर्ताओं की चैतन्यता देखते ही बनती है। सूर्य के प्रकाश की व्यापकता के समान उनकी चैतन्यता का प्रभाव सभी पर है। सर्वे-पर-सर्वे हो रहे हैं। सब अपनी-अपनी पार्टियों की शतप्रतिशत जीत की विश्वसनीयता की मोहर लगा रहे व जमकर लगवा रहे हैं। रोटी, कपड़ा और मकान की प्रमुखता की बातों का ध्यान रखे बिना केवल अपनी-अपनी जीत के लिए विज्ञापन नीति का इस्तेमाल हो रहा है। नमो चाय और रागा दूध का महत्व राजनीति में जमकर दिखाई दे रहा है। कुलमिलाकर अपने देश में विज्ञापन की नीति पर काम करने का गुर सभी राजनैतिक पार्टियों ने बखूबी सीख लिया है। विज्ञापन नीति का अधिक प्रभाव कभी-कभी धोखा भी देता है। राजनीति का वास्तविक अर्थ भी जो दिखता है वह होता नहीं और जो होता है वह दिखता नहीं ही होता है। इसलिए यहाँ यह कहना उचित होगा कि चुनावी सर्वेक्षण एक भ्रम बनकर रह गया है, जो अपना दिमाग नहीं रखते वह ऐसे भ्रम में फँस ही जाते हैं। अपने देश की जनता को भोलीभाली होने का खिताब पहले से ही मिला हुआ है इस बात का लाभ उठाकर मक्खन और पनीर खरीदने के दाम के बराबर रुपए-पैसे बाँटकर मनमाफिक समर्थन प्राप्त कर लेना भी चुनावी पार्टियों की आन-शान-बान बनती जा रही है। वैसे अध्धे-पउए से काम चलना मुश्किल हो गया है और कंबल भी अब काम नहीं आते।

हमारे कंप्यूटर की स्क्रीन पर गूगल महाशय ने सत्य बोलने की शपथ ले रखी थी इसलिए उसने हमें बताया कि इस बार आम के आम गुठलियों के दाम भी जनता से वसूलने में कुछ पार्टियाँ सामने आ रही हैं और चुनाव के इस नए दौर में खट्टे लगने वाले अंगूर भी मीठे साबित हो सकते हैं। गुपचुप घोटाले और घपले भी सावधानीपूर्वक करके आगे निकलने का प्रयास किया जा रहा है। हर बार की तरह इस बार भी निर्वाचन आयोग अपनी कड़ी नजर रखने के लिए विशेष तौर की किस्म से बना हुआ चश्मा पहनने को तैयार है ताकि निष्पक्ष चुनाव की पारदर्शी प्रक्रिया संभव हो सके। वैसे निर्वाचन आयोग का चश्मा दिखने में पारदर्शी होता है मगर इस देश की चुनावी पार्टियाँ उस पर काली फिल्म लगा देती हैं कि उसको कुछ भी साफ-साफ नजर ही नहीं आ पाता। ऐसे में निर्वाचन आयोग को एक छड़ी और पकड़ा दी जाए तो उसे अपनी नैया सावधानीपूर्वक पार लगाने में कुछ हद तक तो मदद मिलेगी। बुरा न मानें तो अंधे को अपने निजी निर्वाह के लिए सहारे की जरूरत तो पड़ती ही है, ना। वह खुश होकर नहीं बल्कि मजबूर हो कर सहारा ढूँढता ही है।

जिस देश की जनता को प्रतिदिन दो वक्त की रोटी की जुगाड़ के लिए मशक्कत करने से फुर्सत ही न हो तो ऐसे में भला वह किस शेर की दहाड़ की परवाह करे। ऊपर से शेर यदि शहर का हो तो उसे सर्कस का शेर ही कहा जाएगा। जिसे योग्य मास्टर द्वारा नियंत्रित रखा जाता है। आजकल यह बात भी खूब सामने आ रही है कि चाबुक के डर से तो सर्कस का शेर भी कूद कर सीट पर बैठ जाता है परंतु ऐसे शेर को हम वेलट्रेंड यानी अच्छी तरह से प्रशिक्षित कहते हैं, वेलएज्यूकेटिड यानी अच्छी तरह से शिक्षित नहीं। पेट की भूख केवल चाय से नहीं मिटती उसकी भूख को शांत करने के लिए इंसान को खून-पसीना एक करके दो वक्त की रोटी के लिए श्रम करना ही पड़ता है।

किसी भी राजनैतिक पार्टी की बात हो और वहाँ पर झाड़ूवाला, चायवाला या फिर दूधवाला कोई भी हो यदि वह राजनीति में उतरा है और अपना दमखम दिखाने का जनता से वादा करके अपना विश्वास बनाता है तो वोट डालने से पहले प्रत्येक मतदाता को चुनाव का रुख तो बताना ही चाहिए ताकि जनता चुनाव के समय मतदान करने में अपना दिमाग कम भेड़चाल में ज्यादा से ज्यादा शामिल होकर अपना कीमती वोट डाल आए। भारत के भोलेभाले मतदाता का स्वास्थ्य तो भ्रष्टाचार और दिनप्रतिदिन बढ़ती महँगाई की मार से पहले से ही खराब हो चुका है। ऐसे में जनता के दिमाग पर पक्ष-विपक्ष की सोच का बोझ डालना कदापि उचित नहीं होगा। डेमोक्रेसी का चौथा स्तंभ मीडिया को कहा जाता है परंतु इस स्तंभ में बाराखंभा यानी बारह स्तंभ समाहित होना भी अब संभव है। सत्ता में मौजूद कोई भी पार्टी इन स्तंभों का भरपूर इस्तेमाल कर सकती है। एक जादूगर बन कर। जिसमें स्तंभ तो एक दिखाई देगा मगर उसमें अदृश्य स्तंभ अनेक होंगे।
थोड़ी देर बाद चुनावी सर्वेक्षण और चुनाव की सरगर्मियों की मिलीजुली बातों को बताते-बताते हमारे कंप्यूटर जी थोड़ा थरथराए मगर हमने उन्हें सर्वर डाउन यानी कोमा की अवस्था में जाने से पहले ही उनके दिल की सप्लाई यानी पॉवर सप्लाई पर अपना सिद्धहस्त हाथ रख कर बचा लिया तो वह आगे बोले-

"सक्सेना साहब, आप ठहरे इस देश के महान व्यंग्यकार और मैं इस देश में मौजूद समग्र विसंगतियों का पिटारा। दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रही इस देश की तमाम सारी विसंगतियों पर आप कुछ नया लिखें या न लिखें मगर मैं आपको बता दूँ कि मैं आपके सामने चाहे जितनी भी शपथ ले लूँ मगर मैं आपका सगा कभी नहीं हो सकता। मेरा बिलकुल भी भरोसा मत करिएगा क्योंकि मेरा सर्वर कभी भी डाउन हो सकता है। आप जैसे समझदारों को तो मेरे द्वारा चुनावी सर्वे के बताए हुए आँकड़ों से ज्यादा अपने दिमाग की खिड़की खुली रख कर ही अपना कीमती वोट डालने जाना चाहिए। फिर आप मेरे भरोसे पर इतना क्यों आश्रित होते हैं?"

इस बार मैंने अपने कंप्यूटर जी की बात सुन कर उसे सर्वर डाउन होने की अवस्था में जाने से पहले ही तुरंत शटडाउन कर दिया और आगामी चुनाव में सोच-समझकर ही अपना कीमती वोट देने की मानसिक तैयारी में जुटने का प्रयास करने लगा।

मेरे द्वारा आजकल राजनीति में उतरे नए ब्रेंडों व पोल खोल अभियान के बारे में शत-प्रतिशत अपने दिमागी कंप्यूटर जी द्वारा ढेर सारा शोधकार्य करना अभी बाकी है, इसलिए फिलहाल अब मुझे एक कप गरमागरम चाय की चुस्की की आवश्यकता महसूस हो रही है। आप कहीं जाइएगा मत। बने रहिए यों ही हमारे साथ। मैं यों गया और यों आया, राजनीति के रंग में सराबोर चौराहे पर फ्री में मिलने वाली एक कप गरमागरम चाय पीकर। अच्छा तो हम चलते हैं, फिर मिलेंगे, तब तक के लिए इजाजत।..........नमस्कार।
 

१ दिसंबर २०१६

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