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संस्मरण

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वन झरने की धार
- स्वाती तिवारी


आह! धार वह वन झरने की
भरती अंजुरी से
झरती रही...

नदी जब बहुत खुश होती है तो वो गाती है, जीवन का कोई नया राग सुनाती है जल का जल में सृजन और विसर्जन दिखाती है। नदी जब अल्हड़ हो जाती है तो अपने कुल किनारों से इठलाती किसी दुर्गम पहाड़ों से नीचे कूद जाती है। नदी का यही रूप झरना कहलाता है। मुझे नदी का झरना बनना और झरने का फिर नदी बन जाना अच्छा लगता है। नदी भी तो बदलाव चाहती है, जरूरी है नदी का बदलाव, प्रवाह का परिवर्तन एक अनिवार्यता है उसकी गति के लिए।

संयुक्त राज्य अमेरिका के सबसे बड़े स्टेट वर्जीनिया के अन्न जल में जाने कौन सी शक्ति है यह स्टेट राष्ट्रपति की माँ कहलाता है। कहलाएगा भी क्यों नहीं अमेरिका को इसने अब तक सबसे ज्यादा छ: राष्ट्रपति दिए हैं। पोटोमैक नदी के मुहाने से १०० मील ऊपर, चेसापीक खाड़ी से ३० मील पश्चिम बाल्टीमोर शहर से ४० मील दक्षिण-पश्चिम, वर्जीनिया एवं मेरीलैंड के मध्य पोटोमैक तथा अनाकोशिया नदियों के संगम पर बसा नगर है। नगर का क्षेत्रफल ६९.२४५ वर्ग मील और जनसंख्या ८,०२,१७८ (१९५०) है। जाड़े में साधारण शीतोष्णता, गरमी में अत्यधिक गरम तथा बीच बीच में अत्यधिक आर्द्रता, यहाँ की जलवायु की विशेषता है। जनवरी का औसत ताप १.५० सें. तथा जुलाई का ताप लगभग २२० सें. है। औसत वार्षिक वर्षा ४२.०२ इंच तथा औसत वार्षिक हिमपात २०.४ इंच है। वाशिंगटन का असली महत्व केंद्रीय सरकार की राजधानी के रूप में ही है।

हमारी यात्रा न्यूजर्सी से यहीं के लिए थी, देखना था हमें वाशिंगटन डी सी, पर यात्रा के बीच में हमारे पहले से तय शुदा दो पड़ाव थे। हमें देखना था वर्जीनिया के ग्रेट फॉल्स को, हमारा दूसरा पड़ाव था लूरे केव्स। रास्ता हमने सड़क मार्ग का ही लिया। गाड़ी रेंट पर ली और भारतीय परंपरा अनुसार खाना घर के टिफिनों में पैक किया। रास्ते का ज्यादा अंदाजा नहीं था बस जीपीएस का सहारा था और यह पता था कि सर्विस सेंटर पर रेस्टॉरेंट, शॉपिंग सेंटर तो मिलेंगे ही। हम गाजर, काले अंगूर, बेरीस, सेब संतरे जैसे फल गाड़ी में लेकर चल पड़े, सूखा मेवा ख़ास कर नमकीन पिस्ते, अखरोट और बादाम थी मगर सारे रास्ते मन अपनी देशी रेत में सिंकी मूँगफली को याद करता रहा, हम एक रास्ता निहारते पहुँचते हैं पहले ग्रेट फॉल्स।

फॉल्स नदी पर निर्मित झरना है पर उसे पिकनिक स्पॉट तो मनुष्य ने ही बनाया है। सीधे सीधे फॉल्स तक नहीं पहुँच सकते। पहले आता है एक पार्क यह पार्क ग्रेट पार्क कहलाता है जो देश की राजधानी से केवल १५ मील की दूरी पर स्थित एक विशाल हरा भरा मैदान है। लगभग ८०० एकड़ में विस्तृत यह पार्क प्रकृति से संवाद का अवसर सुलभ करवाता है। साफ़ सुथरा इतना कि शायद हमारे घरों के बगीचे भी संभव नहीं जगह जगह कचारा ना डालने की हिदायतें आगे एक साइन बोर्ड पढ़ती हूँ ग्रेट फॉल्स पार्क सम्पूर्ण रूप से कचरा मुक्त पार्क है कागज के बेग रखें है कई जगह पर आप उनका उपयोग घूमते हुए करें और फिर वापसी पर डस्टबिन में डाल दीजिये।

याद आते हैं मुझे हमारे देश के कई पार्क, मंदिर परिसर कॉलोनियों के पार्क, पड़ोसी के खाली प्लॉट जिन्हें हम सब मिल कर कुछ देर में ही कचरा घर में बदल देते हैं हँसी आती है अपने ही विचार पर। गाड़ी पार्क की तो पार्किंग का चार्ज देना था पार्क नि:शुल्क ही था हम अपना खाने का बैग, कैमरे, पानी की बोतल सब चैक करवा कर ले गए बोतल की गिनती हुई कहीं हम वहीं ना फैंक आएँ। मैं मजाक करती हूँ उसको पता है सब भारतीयों की आदत, रेल में, सड़क पर सिनेमाहॉल में नदी किनारे हमने प्लास्टिक के कितने पहाड़ खड़े कर दिए हैं बोतल को क्रश कर फैंकना हमें आता ही नहीं। रिसायकल से ज्यादा हम रीयूस में विश्वास करते हैं।

आगे हरे भरे झुरमुटों से पगडंडीनुमा एक रास्ता था बस यहीं अमेरिकी मिट्टी दिखी पगडंडी भर, सब हरा हरा, हाँ पार्क में यदि आपने अपनी जिम्मेदारी नहीं दिखाई तो कैमरे आपको पकड़ चालान बनवा सकते हैं पहली बार कोई पार्क अमेरिका में ऐसा देखा जहाँ आप अपने पेट यानी पालतू को भी ले जा सकते हैं लेकिन उसकी पॉटी आप को मिट्टी डाल उठा कर कचरा पेटी में खुद डालनी है, कुछ लोग वहाँ अपने तरह तरह के कुत्ते घुमाते हुए आये थे और एक को मैंने सफाई करते भी देखा था। यहाँ एक छोटा सा लकड़ी के पट्टों का मचान दिखा पानी की कलकल यहीं से सुनाई देने लगी। आगे बढ़ते हैं तो उफनती नदी कई धाराओं में बँटती हुई झरने को बनाने में सतत लगी दिखाई दी।

काले पत्थरों वाले दाँतेदार पहाड़ों के बीच से जल धाराएँ किसी कंघी से होकर निकलते बालों की लटों जैसी सफ़ेद जलराशि, चाँदी सा चमकता पानी जहाँ उफान पर था वहाँ वह संगमरमरी सा दिखाई दिया नदी का चौड़ा पाट, दोनों तरफ हरियाली, साफ़ निर्मल जल देख मन खुश होने से ज्यादा व्याकुल हुआ अपनी गंगा-जमुना को याद कर, याद आये वे दृश्य जहाँ नदियों में पॉलीथिन का टनों कचरा अटक कर दूर से दिखाई देने लगता है। कितने कलर की पॉलीथिन लाल, सफ़ेद, काली, पीली, नीली, हरी, गंदे कपड़े चिंदे, हार फूलमालाएँ, गाड़ी के टायर कारखानों-जहरीली फैक्ट्रियों का गंदा पानी, नालियों की गंदगियों का नदी में विसर्जन, मुर्दों को जल प्रवाहित करने की परम्परा, नदी के किनारे कपड़े और जाने क्या क्या धोना। कुम्भ और सिंहस्थ में भभूतिधारी नागा साधुओं का स्नान, पानी की निर्मलता से संस्कृति के नाम खिलवाड़, सरकारों के मगरमच्छ जैसे आँसू? दानी की साफी के नाम पर मंत्रियों-मुख्यमंत्रियों के फोटो पोज़, अखबारों का कवरेज, सब ढकोसले...।

कौन किसको समझाए? हमें गणेशजी का, दुर्गाजी का, जवारों का, पता नहीं किस किस का विसर्जन करना होता है बस नदी का कोई ख्याल कभी नहीं आता कि नदी इससे कितनी बीमार होगी कितना मुश्किल होता होगा नदी के लिए दूसरों के विसर्जन को लादे हुए बहना। नदी कितनी मरती होगी, उसके कुल किनारे कैसे सिमट जाते हैं यह हम कभी नहीं सोचते। ग्रेट फॉल मेरे सामने था अपनी सफ़ेद निर्मलता के प्रत्यक्ष प्रमाण देते हुए, मैं नदी को संस्कृति की माँ मानती हूँ, हर नदी अपने किनारों पर मनुष्य को बसने का न्यौता देती है, आओ यहाँ एक सभ्यता को विकसित करो, संस्कृति को निर्मित करो। नमस्कार में हाथ जोड़ती हूँ। कोई हँसता है ये पोटोमैक नदी है, गंगा मैया नहीं। मेरा तर्क भारी पड़ता है मैं कहती हूँ ये प्रणाम इस निर्मलता को है, नदी तो सभी मैया होती हैं देखो सुनो पोटोमैक नदी कितने किस्से सुना रही है? गंगा हो या पोटोमैक या कोलोराडो, चाहे हडसन ही क्यों ना हो कौन किसी के घर गई है कभी... पर हर घर कभी ना कभी किसी नदी के किनारे जरूर जाता है अपने दुःख सुख सुनाने। नदी हर घर को पहचानती है। मन कहता है पोटोमैक कह रही है नदी जोड़ने की ना ही नदी तोड़ने की कोई परम्परा पहले कभी रही है बस नदी बहाने की परंपरा सदियों पुरानी है, बहने दो उसे।

हम सब नदी प्रेमी हैं। कई घंटे उस मचान नुमा जगह से झरने से गिरते हुए पानी के फोटो खींचते हैं। वहीं कहीं इधर-उधर पत्थरों पर बैठते हुए आते-जाते लोगों को देखते हैं। ना भीड़ ना गंदगी, किनारे पर कुछ हरी-भरी झाड़ियाँ, हरे भरे लॉन हैं यहाँ भी। ३.६५ किलोमीटर क्षेत्र वाले इस पार्क में भी लॉन? आश्चर्य होता है कैसे मेंटेन होते हैं यहाँ पार्क? याद आता है इंदौर का रेसीडेंसी एरिया और रेसीडेंसी पार्क जो कहता है उजड़ा हुआ चमन है रोते हुए माली हैं। सारे सरकारी माली तो साहब लोगों की हरियाली मेंटेन कर रहे होते हैं। कोई किसी बँगले में बर्तन धो रहा होता है तो कोई साहब की पत्नी के गमलों, लॉनो, बोंसाइयों को तराश रहा होता है सरकारी जगह तो केवल नियुक्ति के लिए रिक्ति भर होती है एक बार भी यदि इन जगहों को मेंटेन करवाया तो लोगों का ध्यान जाने लगेगा?

मैं अपनी विचार श्रृंखला से बाहर निकलती हूँ और लौटती हूँ पोटोमैक नदी की ओर जिसके उत्तरी क्षेत्र में फेयर फेक्स काउंट्री है जिसका एक अभिन्न हिस्सा काट दिया गया है जॉर्ज वाशिंगटन मेमोरियल पार्कवे में। ग्रेट फॉल्स इसके उत्तरी हिस्से में ही है। कहीं पढ़ा था कि अमेरिका के मूल निवासियों को इन्हीं पोटोमैक की पहाड़ियों में अन्दर कंदराओं में खोजा गया था। पोटोमैक की एक नहर जॉर्ज वाशिंगटन को आंशिक वित्तीय पोषण भी देती है। इससे एक एक मील लंबी बायपास नहरें निकाली गई हैं जो सिंचाई का काम करती हैं, यह पार्क ओल्ड डोमेनिक रेलवे द्वारा संचालित होता है।

हम लौटने लगते हैं पानी की खाली बोतलों को उठाते हुए फलों के छिलकों को बैग में डाले। सामने दिखाई देता है बड़े सघन पेड़ों की छाया में एक प्राकृतिक लकड़ी का (बिना छिले) बड़ा सा हिंडोलेनुमा बैठने का स्थान जो पुराने पेड़ से बना है और काला सा हो गया है। यहीं बैठकर टिफिन खोलती हूँ यहाँ हवा बहुत सुगंधित सी आ रही है, यह सुगंध पेड़ों की है, पानी की है और शायद खाने की भी है। तभी कोई संगीत यहाँ हवाओं में बजने लगता है, जैसे छल छल छलकता हुआ कोई गागर हो, ज़रूर यह झरने का कोई गीत है। मैं सभी से नज़र बचाते हुए एक पूरी पर थोड़ा पुलाव रखती हूँ प्लास्टिक के दोने में चुपचाप घने पेड़ के नीचे रख देती हूँ यह आस्था है हमारी, किसी अजनबी जगह में अनजानी आत्माओं को भोजन से तृप्त करने की। दंड से डरती नहीं होगा तो भर दूँगी, पर देखती हूँ सामने रेस्टॉरेंट वाला मुझे देख रहा है पर वो चिल्लाता नहीं बल्कि मुस्कुराता है, इशारे से कहता है वेल्डन, दो बड़ी गिलहरियाँ मेरे आतिथ्य को स्वीकारती हैं और वे भी हमारे साथ लंच ख़त्म करती हैं। मेरे आसपास मँडराती हैं और मिलने की मंशा में। बच्चे रोकते हैं माँ फाइन लगेगा और कोई नया झमेला हो जाएगा।
पल्लवी किस्सा सुनाती है कि कैसे सड़क पर किसी को बचाने के लिए उसने जेब्रा लाइन तोड़ी थी और चालान राशि नहीं बताती, कहती है आपके होश उड़ सकते हैं मत पूछो। उसकी बात सुनकर मैं चुपचाप पेड़ के नीचे रखा गिलहरी का दोना उठा लेती हूँ और डस्टबिन में डाल देती हूँ और चल देती हूँ कार पार्किंग की ओर।

कार पार्किंग का हमें १० डॉलर लगा था यहीं पता चला कि यहाँ मद्य निषेध है एन पी एस केंद्र पार्क में इसी निगरानी और हमारी सहूलियत के लिए बना है ट्रेल्स के लिए भी यहाँ उपयुक्त जगह दिखाई देती है। पार्क के अन्दर एक डांस मंडप भी है। कहते हैं कि यहाँ एक तूफ़ान ‘एग्नेस’ ने बहुत नुकसान किया था। सोचती हूँ पार्क उस तूफ़ान के बावजूद अब भी शांत और आकर्षक लगता है। पोटोमैक को एक बार फिर देखने जाती हूँ फिर कभी अवसर मिला तो आने का वादा करती हूँ। मन है वे सभी जगह जहाँ हमारे साथ बड़ी बेटी रुचि और दामाद आनंद नहीं जा पाए हैं एक बार उन्हें भी यहाँ लाना है, तब मैं भी दुबारा आ जाऊँगी। हँसती हूँ खुद पर, लेखक ना होती तो और सभी यात्रियों की तरह देखती और चली जाती... पर मैं खुद को थोड़ा सा छोड़ आती हूँ, थोड़ा सा कुछ वहाँ से ले आती हूँ... पोटोमैक मेरे साथ चली आई है अन्दर और अन्दर आत्मा के गहन हिस्से में बहती हुई एक उज्जवल नदी बनकर, जिसके ग्रेट फॉल्स मैं कभी नहीं भूल सकती और वैसे भी उनका वो छल-छल छलकता सा संगीत कौन भूल सकता है...!

मैं ग्रेट फाल्स से आते हुए याद करती हूँ अज्ञेय जी की कुछ पंक्तियाँ-
और याद से सिहरती
मेरी मति
तुम्हारी लहराती गति के
साथ विचरती रही
मैं ठिठक रहा
मुड़ गयी डगर
वन झरने सी तुम
मुझे भिंजाती
चली गयीं
सो... चली गयीं...।

 

१५ नवंबर २०१६

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