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 १५. ६. २०१५

इस सप्ताह-

अनुभूति में-1
बेला के फूल को केन्द्र में रखकर लिखे गए अनेक कवियों के मोहक गीत-नवगीत।

- घर परिवार में

रसोईघर में- मौसम है शीतल पेय का और हमारी रसोई-संपादक शुचि लेकर आई हैं शर्बतों की शृंखला में- आम का शर्बत

बागबानी में- आसान सुझाव जो बागबानी को उपयोगी और रोचक बनाने में उपयोगी सिद्ध हो सकते हैं-
२०- बगीचे में बेला

कला और कलाकार- निशांत मिश्र द्वारा भारतीय चित्रकारों से परिचय के क्रम में रामकिंकर बैज की कला और जीवन से परिचय 

सुंदर घर- घर को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो आपको घर के रूप रंग को आकर्षक बनाने में काम आएँगे- १९- केवल सोफा और मेज  

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- आज के दिन- (१५ जून को) तारकनाथ दास, शायर इब्ने इंशा, अभिनेत्री सुरैया, समाज-सेवक अन्ना हजारे... विस्तार से

नवगीत संग्रह- में इस सप्ताह प्रस्तुत है- संजीव सलिल की कलम से राधेश्याम बंधु के नवगीत संकलन नवगीत के नये प्रतिमान का परिचय।

वर्ग पहेली- २४१
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- बेला विशेषांक के अंतर्गत

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है यू.के. से अचला शर्मा की कहानी उस दिन आसमान में कितने रंग थे

नर्स चली गई। और जाने से पहले हिदायतें दोहरा गई कि जो प्लास्टिक की बोतल दी गई उसी का इस्तेमाल किया जाए। नर्स के जाने के बाद अभिनव ने पहली बार कमरे को गौर से देखा। सफेद दीवारें, सफेद छत, बिस्तर पर बिछी चादर भी सफेद, कमरे के साथ जो बाथरूम है, उसमें रखा तौलिया भी सफेद। इतनी सफेदी कि जैसे पूरे कमरे को ब्लीच किया गया हो। फिर जाते जाते शायद कमरे की सजावट करने वाले को कमरे का प्रयोजन याद आया तो उसने रंग छिड़कने के लिए कमरे की एकमात्र खिड़की पर हल्के नीले रंग का पर्दा टाँग दिया, बस। खिड़की के नीचे एक बाईस इंच का टीवी और डीवीडी प्लेयर। सबकुछ बड़ा क्लिनिकल। रुपाली के हाथ में होता तो इस कमरे का मूड रोमानी होता। दीवारों का रंग हल्का क्रीम होता, खिड़की के पर्दे से मैच करता बिस्तर के पास एक लैंप होता, बिस्तर पर इंडिया से लाया गया कोई रेशमी बैडकवर होता, सिरहाने ढेरों रंगबिरंगे कुशन होते, कम से कम एक गुलदान जरूर होता और कुछ किताबें।... आगे-
*

आभा सक्सेना की लघुकथा
बेला महका
*

सुधा उपाध्याय का निबंध
लोकगीतों के बहाने बेला की याद मे

*

मुक्ता की कलम से
बेला का सुगंधित संसार
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पुनर्पाठ में सुधीर बाजपेयी का
आलेख- फूलों से रोगों का इलाज

पिछले सप्ताह-

शुचिता श्रीवास्तव का व्यंग्य
कोई गारंटी नहीं
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राजेन्द्र वर्मा का रचना प्रसंग
दोहे का शिल्प 

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राजकुमार दाधीचि की कलम से
बूँदी की पानीदार कटार
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पुनर्पाठ में अभिज्ञात की
आत्मकथा तेरे बगैर का नवाँ भाग

*

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
सुशांत सुप्रिय की कहानी एक उदास धुन

"रात वह होती है जब तुम सोए हुए हो और तुम्हारे भीतर अँधेरा भरा हो। "
-- अपनी ही डायरी में से।
आजकल मेरे लिए सारे दिन रातों जैसे हैं। भरी दुपहरी है। फिर भी चारों ओर अँधेरा है। आकाश लोहे की चादर-सा मेरे ऊपर तना है। भीतर एक अचीन्हा-सा दर्द है। बाहर एक अनाम-सी उदासी है। मेरी जेब ठंडी है। आँखों में अँधेरा है। सीने में रात है। दुख मेरे पैरों में लिपटा है। मेरे सिर पर बेकारी का कँटीला ताज है। बेरोज़गारी की मार मुझ पर भी पड़ी है। मैं सड़क पर आ खड़ा हुआ हूँ। कहीं कोई नौकरी मुझे नहीं तलाश रही। मेरे चारों ओर एक उदास धुन-सा बजता हुआ यह समय है। और इस अनिश्चित समय की उपज मैं हूँ। अब मैं भीड़ में अकेला हूँ। अपनों के बीच एक अजनबी हूँ। समय मुझे बिताता जा रहा है। मैं यूँ ही व्यतीत हो रहा हूँ। मेरा होना भी जैसे एक 'नहींपन' में बदलता जा रहा है। लगता है जैसे सारे धूसर और मटमैले रंग मेरे ही हिस्से में आ गए हैं और दिन एक... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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