समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है
यू.के. से अचला शर्मा की कहानी
उस दिन आसमान में
कितने रंग थे
नर्स
चली गई। और जाने से पहले हिदायतें दोहरा गई कि जो प्लास्टिक की
बोतल दी गई उसी का इस्तेमाल किया जाए। नर्स के जाने के बाद
अभिनव ने पहली बार कमरे को गौर से देखा। सफेद दीवारें, सफेद
छत, बिस्तर पर बिछी चादर भी सफेद, कमरे के साथ जो बाथरूम है,
उसमें रखा तौलिया भी सफेद। इतनी सफेदी कि जैसे पूरे कमरे को
ब्लीच किया गया हो। फिर जाते जाते शायद कमरे की सजावट करने
वाले को कमरे का प्रयोजन याद आया तो उसने रंग छिड़कने के लिए
कमरे की एकमात्र खिड़की पर हल्के नीले रंग का पर्दा टाँग दिया,
बस। खिड़की के नीचे एक बाईस इंच का टीवी और डीवीडी प्लेयर।
सबकुछ बड़ा क्लिनिकल। रुपाली के हाथ में होता तो इस कमरे का मूड
रोमानी होता। दीवारों का रंग हल्का क्रीम होता, खिड़की के पर्दे
से मैच करता बिस्तर के पास एक लैंप होता, बिस्तर पर इंडिया से
लाया गया कोई रेशमी बैडकवर होता, सिरहाने ढेरों रंगबिरंगे कुशन
होते, कम से कम एक गुलदान जरूर होता और कुछ किताबें।... आगे-
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आभा सक्सेना की लघुकथा
बेला महका
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सुधा उपाध्याय का निबंध
लोकगीतों के बहाने बेला की याद में
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मुक्ता की कलम से
बेला का सुगंधित
संसार
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पुनर्पाठ में सुधीर बाजपेयी का
आलेख- फूलों से
रोगों का इलाज |